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कैसे लिखूँ प्रेम गीत मैं

क्षितिज जैन
जयपुर(राजस्थान)
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अनय अधर्म का वर्चस्व चतुर्दिक
प्रबल हो रहे अन्याय अत्याचार है,
कवि! कैसे मान लूँ तेरे कहने पर
प्रेममय यह मानव का संसार है?

पशुत्व पूजित किया जा रहा अब
मानवता आज त्रस्त व भयभीत है,
सेवा करना छोड़ उस मानवता की
बता तू ही कैसे लिखूँ प्रेम गीत मैं ?

सदाचार-नैतिकता बातें विगत
अब एकमेव सत्य तो धनबल है,
सज्जनता हो गयी अब मूर्खता
पग-पग पर कपट और छल है।

न्याय और धर्म बिकते हैं बाज़ार में
होते सुवर्ण मुद्राओं पर वे क्रीत हैं,
आवाज़ उठाने के स्थान पर अब
बता तू ही कैसे लिखूँ प्रेम गीत मैं ?

कायर होकर सोते हैं मेरे देशवासी
हर ओर निराशा का गहन अंधेरा,
तुझसे ही पूछता हूँ हे प्रेम पुजारी!
कहाँ है वह दिव्य-सा प्रेमलोक तेरा ?

कल्पना करूँ किसी सुंदरी की क्यों ?
सोचता अपने देश भारत की जीत मैं,
बजाय सुनने को पुकार भारत माँ की
बता तू ही,कैसे लिखूँ प्रेम गीत मैं ?

पुरुषार्थ मानव की शक्ति होती सदैव
झूठा तेरा यह प्रणय विरह का गाना,
फूल नहीं अंगारे चाहिए शौर्यवानों को
व्यर्थ कुसुमों के लिए तेरा अकुलाना।

जीवन नहीं होता है प्रणयलोक सुंदर
क्यों व्यर्थ करूँ ऐसे समय व्यतीत मैं ?
उठकर सुनाना है जागृति संदेश मुझे,
बता तू ही,कैसे लिखूँ प्रेम गीत मैं ?

परिचय-क्षितिज जैन का निवास जयपुर(राजस्थान)में है। जन्म तारीख १५ फरवरी २००३ एवं जन्म स्थान- जयपुर है। स्थायी पता भी यही है। भाषा ज्ञान-हिन्दी का रखते हैं। राजस्थान वासी श्री जैन फिलहाल कक्षा ग्यारहवीं में अध्ययनरत हैं कार्यक्षेत्र-विद्यार्थी का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत धार्मिक आयोजनों में सक्रियता से भाग लेने के साथ ही कार्यक्रमों का आयोजन तथा विद्यालय की ओर से अनेक गतिविधियों में भाग लेते हैं। लेखन विधा-कविता,लेख और उपन्यास है। प्रकाशन के अंतर्गत ‘जीवन पथ’ एवं ‘क्षितिजारूण’ २ पुस्तकें प्रकाशित हैं। दैनिक अखबारों में कविताओं का प्रकाशन हो चुका है तो ‘कौटिल्य’ उपन्यास भी प्रकाशित है। ब्लॉग पर भी लिखते हैं। विशेष उपलब्धि- आकाशवाणी(माउंट आबू) एवं एक साप्ताहिक पत्रिका में भेंट वार्ता प्रसारित होना है। क्षितिज जैन की लेखनी का उद्देश्य-भारतीय संस्कृति का पुनरूत्थान,भारत की कीर्ति एवं गौरव को पुनर्स्थापित करना तथा जैन धर्म की सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-नरेंद्र कोहली,रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हैं। इनके लिए प्रेरणा पुंज- गांधीजी,स्वामी विवेकानंद,लोकमान्य तिलक एवं हुकुमचंद भारिल्ल हैं। इनकी विशेषज्ञता-हिन्दी-संस्कृत भाषा का और इतिहास व जैन दर्शन का ज्ञान है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपका विचार-हम सौभाग्यशाली हैं जो हमने भारत की पावन भूमि में जन्म लिया है। देश की सेवा करना सभी का कर्त्तव्य है। हिंदीभाषा भारत की शिराओं में रक्त के समान बहती है। भारत के प्राण हिन्दी में बसते हैं,हमें इसका प्रचार-प्रसार करना चाहिए।

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