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कोई बात बने

दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
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कल रात आई थी तुम तो सपने में,
मैं तो खोया था आप ही अपने में।

हुई ढेर सारी बातें और पुरानी यादें,
रोती-हँसती-गाती, सारी मुलाकातें।

हकीकत में आओ तो कोई बात बने,
मेरी और तेरी जोड़ी कामयाब बने।

यूँ रोज-रोज सपने में आना व जाना,
क्या अच्छी बात है मुझे यूँ तड़पाना।

माना कि तुम मुझे बहुत चाहती हो,
सदा ही तुम मेरी ही यादों में रहती हो।

अब हकीकत में आओ मेरी बाँहों में,
अब तो बाधा नहीं है कोई तो राहों में।

मैं भी रहता हूँ सदा खोया तेरी यादों में,
तुम भी तो याद करती हो मुझे वादों में।

कब तक ऐसे ही चलता रहेगा,
कब तक तेरी यादों में दिल तड़पेगा ?

अब हकीकत में आओ तो बात बने,
जोड़ी हमारी दुनिया में सरताज बने।

सपनों की दुनिया से निकलना होगा,
अब तो जमाने को दिखाना ही होगा।

हम बने एक-दूजे के लिए, सब जान लें,
तू मेरी और मैं तेरा, ये सब लोग मान लें।

आओ अब हकीकत में हम दिखला दें,
‘दीनेश’ दुनिया को अपनी पहचान दें॥