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कोरा ग्रंथ नहीं, जीवन-दर्शन है भगवत गीता

ललित गर्ग

दिल्ली
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गीता जयंती (२२ दिसम्बर) विशेष…

श्रीमद् भगवद गीता या गीता, कुरुक्षेत्र में महाभारत युद्ध की शुरूआत से पहले भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच होने वाला संवाद है। मान्यता के अनुसार,-जिस दिन श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था, उस दिन को ही गीता की जन्मतिथि मानते हुए ‘गीता जयंती’ मनाई जाती है। प्रत्येक वर्ष मार्गशीर्ष महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को गीता जयंती का पर्व मनाया जाता है। गीता कई सदियों पुराना ग्रंथ है, इसके हर शब्द में निहित तर्क, ज्ञान, जीवन- दृष्टि एवं संसार को देखने व जीने का सार्थक नजरिया इसे एक कालातीत, सार्वभौमिक एवं सार्वकालिक मार्गदर्शक बनाता है। भगवद गीता के चिरस्थायी मार्गदर्शक सिद्धांतों को समझने से हमें रोजमर्रा की जिंदगी में ‘कैसे’ और ‘क्यों’ की गहरी अंतर्दृष्टि प्राप्त करने में मदद मिल सकती है। यह एक अलौकिक, अद्भुत एवं कालजयी रचना है, जो हमें हमारी समृद्ध संस्कृति और परम्परा से परिचित कराती है। इसके श्लोकों में हमें रोजमर्रा की जिंदगी की विभिन्न समस्याओं का समाधान एवं झूठी मान्यताओं से मुक्ति पाने में मदद मिल सकती है। गीता का ज्ञान हमारे संदेहों एवं शंकाओं को दूर करता है और हमारे आत्मविश्वास का निर्माण करता है। सारांश रूप में देखा जाए तो गीता में आत्मा की नश्वरता (अमरता) ‘नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः’ और कर्म (कर्त्तव्य पालन) ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन’ का उपदेश दिया गया है। गीता सार है कि, अपने कर्त्तव्य से भागना कायरता है, इसकी वजह से घर-परिवार और समाज में अपमानित होना पड़ सकता है।
गीता एक प्रमुख हिंदू धर्मग्रंथ है, जो महाकाव्य महाभारत का एक हिस्सा है, जिसमें दोहे-श्लोक हैं, इसके पाठ को संरचनात्मक रूप से १८ अध्यायों में विभाजित किया गया है। गीता को एक राजकुमार अर्जुन और भगवान के अवतार श्रीकृष्ण के बीच एक संवाद के रूप में प्रस्तुत किया गया है। युद्ध शुरू होने से ठीक पहले का यह संवाद सृष्टि की अनमोल धरोहर है। असल में गीता कोरा ग्रंथ नहीं, जीवन-दर्शन है। सदियों पहले दिए गए भगवान श्रीकृष्ण के गीता के उपदेश आज के समय में लोगों के जीवन की घोर निराशा, परेशानियों, सांसारिकता से निकालने का काम करते हैं। गीता को न सिर्फ हिंदू, बल्कि दूसरे धर्म से जुड़े लोग भी अपने जीवन में अपनाते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा कि, जब-जब धर्म की हानि होती है, दुष्टों की दृष्टि का विस्तार होता है और अधर्म की वृद्धि होती है तब-तब मैं अवतार लेता हूँ, या प्रतिनिधि के रूप में किसी महापुरुष को भेजता हूँ, ताकि विश्व के अंदर शांति तथा धर्म का साम्राज्य स्थापित हो सके। गीता को ‘गीतोपनिषद’ के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि गीता में श्रीकृष्ण द्वारा बताए गए उपदेशों पर चलने से व्यक्ति को कठिन से कठिन परिस्थितियों में सही निर्णय लेने की क्षमता का विकास होता है। उपदेश में जीवन को जीने की कला, प्रबंधन और कर्म सब-कुछ है। गीता के उपदेश के जरिए श्रीकृष्ण ने मनुष्य को अच्छे-बुरे और सही-गलत का फर्क बताया है। इस दिन गीता का पाठ करने से, उपदेश पढ़ने से व्यक्ति को जीवन उजाला मिलता है, मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके अलावा इस दिन पितरों के नाम से तर्पण करने से पितरों को भी मोक्ष की प्राप्ति होती है। उपवास रखने से व्यक्ति का मन पवित्र होता है और शरीर स्वस्थ होता है। पापों से छुटकारा मिलता है एवं सुख-शांति का अनुभव होता है।
गीता के पहले अध्याय में अर्जुन के प्रश्नों की बौछार के आगे श्रीकृष्ण मौन थे। अर्जुन श्रीकृष्ण से लगातार प्रश्न कर रहे थे। युद्ध न करने के निर्णय को सही बताते हुए अपने तर्क दे रहे थे, लेकिन श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कुछ नहीं कहा। मौन देखकर अर्जुन की आँखों से आँसू बहने लगे, तब भगवान ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया। जब तक व्यक्ति स्वयं को बुद्धिमान मानता है और व्यर्थ तर्क देता है, तब तक भगवान मौन रहते हैं, लेकिन जब व्यक्ति अहंकार छोड़ भगवान की शरण में चला जाता है, तब वे भक्त के सभी प्रश्नों के उत्तर देते हैं। यानि जब हम अहंकार छोड़ देते हैं, तब ही भगवान की कृपा मिलती है। गीता में भगवान ने अर्जुन को कर्म और कर्त्तव्य का महत्व समझाया। श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि उठो और अपना कर्म करो। श्रीकृष्ण कहते हैं, ‘पार्थ! तुम केवल कर्म करो, फल की चिन्ता मत करो।’ यह संदेश केवल अर्जुन के लिए नहीं, सम्पूर्ण मानव जाति के लिए था। कर्म के प्रति आसक्ति मनुष्य के अन्दर ‘मैं’ का भाव पैदा करती है। गीता मनुष्य को इस ‘मैं’ से मुक्त करके निष्काम कर्म का संदेश देती है। भगवान कहते हैं कि अगर कोई निरंतर निराकार की भक्ति कर सकता है, तो वह भी मुझे पा सकता है।
भारतीय संस्कृति में गीता का स्थान सर्वाेच्च है। भारतीय साधु-संन्यासियों के अन्तरतम में वीणा की झंकार की तरह गीता के श्लोक झंकृत होते हैं। कथा-प्रवचनों से लेकर घर-घर तक जीवन-सुधार परक उपदेश, नीति-नियमों का जो भी ज्ञान दिया जाता है, उसमें गीता का प्रकाश कहीं न कहीं अवश्य निहित जान पड़ता है। धरती पर शायद ही ऐसा कोई स्थान हो, जो गीता के प्रभाव से मुक्त हो। भारत भूमि तो उसके स्पर्श से धन्य हो गई है। गीता को धर्म-अध्यात्म समझाने वाला अमोल काव्य कहा जा सकता है। सभी शास्त्रों का सार एक जगह कहीं यदि इकट्ठा मिलता हो, तो वह जगह है ‘गीता’। गीता रूपी ज्ञान-गंगोत्री में स्नान कर अज्ञानी सद्ज्ञान को प्राप्त करता है।

गीता को ‘माँ’ भी कहा गया है। यह इसलिए कि, जिस प्रकार माँ अपने बच्चों को प्यार-दुलार देती और सुधार करते हुए महानता के शिखर पर आरूढ़ होने का रास्ता दिखाती है, उसी तरह गीता भी अपना गान करने वाले भक्तों को सुशीतल शांति प्रदान करती है। यह मनुष्यों को सद्शिक्षा देती और नर से नारायण बनने की राह पर अग्रसर होने एवं मोक्ष प्राप्ति की प्रेरणा प्रदान करती है। गीता का गान करते-करते मनुष्य उस भाव-लोक में प्रवेश कर जाता है, जहाँ उसे अलौकिक ज्ञान-प्रकाश, अपरिमित आनन्द प्राप्त होता है। वह न कोई शास्त्र है, न ग्रन्थ है। वह तो सबको शीतल छाया देने वाला, ज्ञान का प्रकाश देने वाला, शंकाओं एवं आशंकाओं को दूर करने वाला कल्पवृक्ष है।