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ख्वाहिश…तो अच्छा हो

राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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मुझे ज्यादा जीने की
अब कोई ख्वाहिश नहीं रही,
मगर जो पल भी गुजरें
सुख-शान्ति से गुजर जाएं तो अच्छा हो।

बहुत बात करने की
आदत नहीं है मेरी,
मगर ऐसा भी नहीं है
कि बात नहीं करती हूँ मैं।
जो मिल जाएं बचपन के यार दोस्त,
फिर सारी रात गप-शप हो जाए तो अच्छा हो।

सच कहें कभी ऐसा भी वक्त था
बात बात पर हँसते थे हम,
आजकल हँसने-हँसाने का
बहाना ढूंढते फिरते हैं हम।
हसीं न सही, कोई मुस्कुराहट की,
वजह, बेवजह मिल जाए तो अच्छा हो।

सोचा था जिंदगी के आखिरी पड़ाव में
एक सुंदर सा घर बनाएंगे,
सब फर्जों-कर्जों से मुक्त होकर
चादर तान बेफिक्र सो जाएंगे।
ना घर बना, न मिली राहत,
इस भाग-दौड़ से छुटकारा मिल जाए तो अच्छा हो।

भले ही फासले आए हैं रिश्तो में
लेकिन निभाना नहीं छोड़ा है हमने,
परवाह करते हैं आज भी उतनी,
पर कितनी, यह बताना छोड़ा है हमने।
बात-बात पर क्या करें तकरार,
यूँ चलते-चलते दूर निकल जाए तो अच्छा हो।

मन की गुल्लक में सहेज कर
कुछ सुरमई शामें, कुछ यादें और,
चूड़ियों की खनखनाहट, मुस्कुराहट
बहुत संभाल कर रखी है मैंने।
बहुत है यह जीने को फिर भी,
नदी का किनारा, तेरा सहारा मिल जाए तो अच्छा हो॥

परिचय– राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।

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