कुल पृष्ठ दर्शन : 310

जीवन-मृत्यु

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
*********************************************************************************-
जीवन-मृत्यु खेल निराला
विधि का सारा देखा भाला,
राज मृत्यु का जाना किसने !
मनुज हो रहा है मतवाला।

विधना जो जीवन देता है
अच्छे कर्मों से मिलता है,
मृत्यु सत्य है जीवन मिथ्या
ये सबसे पहले लिखता है।

तन है इक माटी का ढेला
दो दिन आया दो दिन खेला,
जीवन क्या है समझो इसको,
जीवन इक पानी का रेला।

जो जैसा भी कर्म करेगा
वो वैसा ही फल पाएगा,
शुभ कर्मों से जन्म मरण का
सारा चक्कर छूट जाएगा।

क्यों तू धन के पीछे भागे
सिर पे पाग न पगहा आगे,
मृत्यु ऐसी नींद है प्यारे
अब सोए तो कभी ना जागे।

झूठे सारे नाते-रिश्ते
मौत के आगे सब हैं फीके,
जीवन बेबस हो जाता है,
देख मौत के तेवर तीखे।

मृत्यु सत्य सनातन है तो
जीवन है इक झूठा सपना,
इक शरीर को त्याग मनुज की
आत्मा का दूजा घर अपना।

मृत्यु का कुछ पता नहीं है
जाने वो किस दिन आ जाए।
जन्म-मरण का चक्कर है ये
इसको बस वो ही सुलझाए॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।

Leave a Reply