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चुनाव:जनता अशिक्षित, लालची या असमंजस में!

राधा गोयल
नई दिल्ली
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जो अशिक्षित है वे ‘लाचार’ नहीं, बल्कि ‘लालची’ हैं। मतों के सौदागर चुनाव के दौरान उन्हें शराब बाँटते हैं, कम्बल बाँटते हैं, नकदी बाँटते हैं,
जमीन बाँटते हैं और वे लोग लालचवश उसी प्रत्याशी को मत देते हैं, जबकि…पढ़ी-लिखी जनता इस ‘असमंजस’ में रहती है कि मत किसे दें ?
कौन है सही प्रत्याशी ?, कौन है ऐसा जो जीतने के बाद देश की तरक्की के बारे में सोचेगा, क्योंकि नेताओं के दर्शन तो केवल चुनाव के दौरान ही होते हैं। तब तो घर-घर जाकर सबके गले मिलते हैं। यहाँ तक कि, जिनको देखकर वह नाक पर रूमाल रख लेते हैं, उनके घर भी जाकर गले मिलते हैं। उनकी झोपड़ी में बैठकर खाना खाने का दिखावा करते हैं और तस्वीर खिंचवा कर सोशल मीडिया पर उसे साझा करते हैं। चुनाव जीतने के बाद ऐसे गायब हो जाते हैं, जैसे ‘गधे के सिर से सींग।’ फिर ५ साल के बाद ही उनके दर्शन होते हैं।
अब तो प्रत्याशियों की भी बाढ़-सी आ गई है। हर किसी को कुर्सी का मोह खींच लाता है। यह भी मालूम है कि, यदि एक बार सांसद बन गए तो जिंदगीभर के लिए बंगला भी मुफ्त और पेंशन भी मिलती रहेगी। अगली बार जीतें या न जीतें।
दूसरी बात यह कि, चुनावों में बेहिसाब पैसा बहाया जाता है। इतने पैसे से देश का विकास किया जाए तो कितना अच्छा हो। होना तो यह चाहिए कि, चुनाव से पहले ५ साल में किस प्रत्याशी ने अपने क्षेत्र में कितना काम किया, उसी के हिसाब से मत दिया जाए। यह सोचे बिना कि, प्रत्याशी किस दल का है। वैसे भी दलबाजी में नुकसान किसका हो रहा है ? देश का !!
हम किसी प्रत्याशी को उचित समझकर उसको मत दे देते हैं। वह जीत भी जाता है, लेकिन जिस दल से प्रत्याशी खड़ा हुआ है…वह दल चुनाव में समुचित मतदान प्राप्त नहीं कर पाता और दल हार जाता है।
एक पार्टी कहती है ‘जहाँ झुग्गी, वहीं मकान।’ अरे ऐसे तो हर कोई कहीं भी झुग्गी बनाकर रहना शुरु कर देगा और बाद में वहाँ मकान बना लेगा तो सड़कों का क्या हाल होगा ? यह नजारा कितना वीभत्स हो सकता है। अभी तक किसी भी राजनीतिक दल ने यह नहीं सोचा कि जिन्हें गरीब समझ २५-२५ गज जगह दी गई थी, और वह उस जगह टूटी-फूटी झुग्गी बनाकर रह रहा है तो उससे बेहतर है कि १ हजार गज में ५-७ मंजिला मकान बनाए जाएँ। बीच में बड़ा-सा मैदान हो, जहाँ वे बच्चों के विवाह के आयोजन कर सकें व इकट्ठे मिलकर अन्य उत्सव भी मना सकें। मामूली-सा किराया जरूर वसूला जाए, जिससे कि उस जमीन पर उनका मालिकाना हक न हो। उस शुल्क से भवन मरम्मत के काम किए जाएँ। मुफ्त पानी देने की बजाय जल चक्रीकरण तंत्र बनाया जाए। मुफ्त बिजली का वितरण करने की बजाय भवन की छत पर सौर ऊर्जा पैनल लगाया जाए, क्योंकि १ हजार गज में पैनल बड़े आराम से लगाया जा सकता है। उससे उन लोगों को बिजली भी मुफ्त में मिलेगी और देश को जो बिजली बाहर से खरीदनी पड़ती है, वह भी नहीं खरीदनी पड़ेगी। उससे जो पैसा बचेगा, वह आर्थिक तरक्की में खर्च होगा।
आज तक किसी भी राजनीतिक दल ने न तो ऐसा सोचा, न ही ऐसा कोई विधेयक पारित किया। उल्टा कहीं पर यदि पुल बनाने के लिए बस्तियाँ उजाड़ी हैं, तो उन लोगों को पुनर्वास के नाम पर कोई सुविधाएँ मुहैया नहीं कराईं, जिससे जनता का विश्वास नेताओं से उठ चुका है।
हाँ! जो जनता अनपढ़ है, जिन्हें हम लोग बुरा-भला व गँवार कहते हैं, वह जरूर इनके लालच में आकर चंगुल में फँस जाती है। वैसे भी ज्यादातर मत इन्हें झुग्गी वाले ही देते हैं।
चुनाव के दौरान किस तरह की अमर्यादित भाषा का प्रयोग किया जाता है कि, सारी मर्यादा तार-तार हो जाती है। किस-किस तरह के वादे किए जाते हैं और नारे लगाए जाते हैं, किस तरह के आरोप-प्रत्यारोप मढ़े जाते हैं।
सच तो यह है कि, सभी राजनीतिक दल एक जैसे रंग में रंगे हुए सियार हैं। कितनों पर तो कितने ही मुकदमे दर्ज हैं, लेकिन फिर भी चुनाव लड़ सकते हैं। एक अनपढ़ को ऐसे विभाग का मंत्री बना दिया जाता है, जिसके विषय का ककहरा भी उसे नहीं आता। वह देश का क्या खाक विकास करेगा ?
‘बेचारा’ तो पढ़ा-लिखा मतदाता है जो सही प्रत्याशी को मत देना चाहता है, लेकिन असमंजस में है। यह पहचान सकने में असमर्थ है कि, कौन सच्चा है और कौन झूठा ? किसे मत दें, किसे न दें ? कौन वास्तव में देश का विकास करेगा ? कौन पूरे देश को अपना परिवार समझेगा और कौन केवल अपने व अपने बच्चों के लिए सत्ता में आना चाहता है ? क्योंकि, सभी नेता केवल अपने स्वार्थ के लिए चुनाव के अखाड़े में उतरते हैं। उन्हें देश से कुछ लेना-देना नहीं है।
देश की समस्याओं के लिए मगरमच्छी आँसू बहाना कोई इनसे सीखे। जितने रंग ये नेता बदलते हैं, इतने तो गिरगिट भी नहीं बदलती। अब तो उसको भी शर्म आती होगी कि, ये इतने रंग बदलते हैं। मैं कौन से कुएँ में डूब मरूँ !
यदि दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सभी नेता राष्ट्रहित के बारे में सोचें तो कितना अच्छा हो। देश के राजनीतिज्ञ जब तक देश के लिए जीते हैं, तभी तक देश सुरक्षित होता है। जहाँ उन्होंने अपने लिए जीना शुरु किया कि समझ लो उसका पतन समीप है।