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जगन रेड्डी की उल्टी पट्टी

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी ने सांप की बाॅबी में हाथ डाल दिया है। उन्होंने उप-राष्ट्रपति वेंकय्या नायडू,आंध्र के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू और आंध्र के अन्य नेताओं को अपने एक ऐसे तर्क में लपेट लिया है, जो मूलतः गलत है लेकिन जिसने सभी नेताओं की बोलती बंद कर दी है। जगन ने सारे आंध्र की सरकारी पाठशालाओं में सभी विषयों को पढ़ने-पढ़ाने का माध्यम अंग्रेजी कर देने की घोषणा कर दी है। याने अब आंध्र के बच्चे किसी भी विषय को सीखना चाहें तो उसे वे तेलुगु या उर्दू माध्यम से नहीं सीख सकेंगे। इस नई व्यवस्था को लागू करने के पीछे उनका तर्क यह है कि अंग्रेजी विश्वभाषा है और उसके माध्यम से ऊंचे रोजगार पाना देश और विदेशों में भी आसान होता है। सरकारी शालाओं में पढ़ने वाले गरीबों,ग्रामीणों और पिछड़ों के बच्चों को इस लाभ से वंचित क्यों रखा जाए ? जब जगन रेड्डी की इस घोषणा का विरोध वैंकय्या और चंद्रबाबू नायडू जैसे नेताओं ने किया तो उन्होंने पूछा कि ये नेता यह क्यों नहीं बताते कि इनके बच्चों को उन्होंने अंग्रेजी माध्यम से क्यों पढ़ाया है ? सवाल तो ठीक है, लेकिन जगन रेड्डी जैसा जवान नेता भेड़चाल क्यों चलना चाहता है ? हमारे सभी नेता बौद्धिक दृष्टि से दिवालिए हैं। हमारे सभी राजनीतिक दल ‘मत’ और ‘नोट’ के गुलाम हैं। उनकी सोच को लकवा मार गया है। यदि उनमें अक्ल होती तो ७२ साल में भारत की शिक्षा व्यवस्था में क्रांतिकारी परिवर्तन हो जाते। दुनिया के किसी भी शक्तिशाली और सम्पन्न देश में बच्चों की शिक्षा का माध्यम विदेशी भाषा को नहीं बनाया जाता है। बच्चों की शिक्षा का सर्वश्रेष्ठ माध्यम ‘मातृभाषा’ होती है। इसका अर्थ यह नहीं कि वे विदेशी भाषा न सीखें। जरुर सीखें और बहुत अच्छी तरह से सीखें। किसी एक विदेशी भाषा को अपनी मातृभाषा और पितृभाषा का दर्जा देना तो शुद्ध दिमागी गुलामी है। अगर जगनमोहन रेड्डी जैसे युवा नेता खुद को इस गुलामी से मुक्त कर सकें तो अपने बुजुर्ग नेताओं को वे उल्टी पट्टी पढ़ाना बंद कर देंगे। जगन-जैसे युवा नेता सरकारी नौकरियों,अदालतों और संसद में थोपी हुई अंग्रेजी की गुलामी से भारत को आजादी दिलाएं।
(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन,मुंबई)

परिचय-डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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