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जल ही जीवन,महत्व समझिए

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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शुद्ध जल अमृत के समान है। हम सबके जीवित रहने के लिए जल बहुत ही आवश्यक है। यही वजह है कि आयुर्वेद में जल या पानी को पंच महाभूतों में से एक माना गया है। साफ़ पानी पीने से ही शरीर की कई समस्याएँ ठीक हो जाती हैं।
आयुर्वेद में जल के अनेक गुणों का वर्णन है- ठंडे,गर्म,उबले और उबाल कर ठण्डे किए हुए पानी सबके अलग-अलग फायदे हैं।
बारिश के पानी को जमीन पर गिरने से पहले ही किसी भी तरह साफ़ बर्तन में इकठ्ठा कर लें,यह सबसे अच्छा जल माना जाता है। दूसरी बार की बारिश का पानी अधिक शुद्ध होता है;क्योंकि पहली वर्षा में वायुमंडल व आकाश में फैले प्रदूषण का असर होता है।
वर्षा के जल के बाद जमीन से निकले हुए जल (स्प्रिंग वाटर) को सबसे शुद्ध माना गया है। यह भी कहीं-कहीं प्राप्त होता है। इसके बाद प्रदूषण रहित स्थानों में बहने वाले झरने के जल को शुद्ध माना गया है। संसार में सबको प्राकृतिक रूप से शुद्ध पानी मिलना सम्भव नहीं इसलिए पानी को यदि उबाल कर ठण्डा कर लिया जाए तो वह पानी भी उतना ही गुणकारी होता है। इस प्रकार का पानी वात,पित्त और कफ आदि दोषों को शान्त करता है। यह पाचक व हल्का हो जाता है और जठराग्नि को बढ़ाता है।
यह सच है कि पानी हमारे शरीर को स्वस्थ रखता है और रोगों से दूर रखता है,लेकिन ज़रुरी है कि आपको यह पता हो कि कितनी मात्रा में और कब पानी पीना चाहिए। आयुर्वेद के अनुसार बहुत अधिक मात्रा में पानी पीने से पाचक अग्नि (जठराग्नि) कमजोर होती है। जठराग्नि के कमजोर होने से आपके द्वारा खाया हुआ भोजन देर से पचता है। इसके विपरीत बहुत कम मात्रा में पानी पीते हैं तो इससे भी भोजन ठीक से नहीं पचता है। इस वजह से पेट संबंधी कई तरह के रोग हो जाते हैं। पानी की कमी होने से मल-मूत्र विसर्जन में भी कठिनाई होने लगती है। इस वजह से शरीर से विषैले और हानिकारक तत्व (टॉक्सिन) बाहर नहीं निकल पाते हैं। इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर आयुर्वेद में निर्देश दिया गया है कि एक बार में बहुत अधिक पानी पीने की बजाय थोड़ी-थोड़ी मात्रा में पानी पियें।
ऐसे ही खाना खाने से ठीक पहले पानी नहीं पीना चाहिए। ऐसा करने से पाचन शक्ति कमजोर और शरीर दुर्बल होता है। आयुर्वेद में बताया गया है कि खाना खाने से लगभग आधे घन्टे पहले तक पानी नहीं पीना चाहिए। अगर आप मोटे हैं तो आप खाने के बीच में और पतले लोग खाने के आधे घंटे बाद पानी पी सकते हैं। इनके अलावा बाकी सभी लोगों को खाना खाने के १ घंटे बाद ही पानी पीना चाहिए। यह बात ध्यान रखें कि मोटे और ताकतवर लोगों के लिए भोजन के बीच में जल पीना अमृत के समान है,वहीं अंत में पानी पीना बहुत हानिकारक है।
आमतौर पर पानी हर अवस्था में फायदेमंद है, लेकिन कुछ विशेष रोगों के दौरान पानी कम ही मात्रा में पीना चाहिए। जैसे-अरुचि (भोजन करने की इच्छा न होना),पुराना जुकाम एवं कोढ़ जैसी चमड़ी की बीमारियाँ आदि। अगर बिल्कुल भी पानी नहीं पी रहे हैं तो यह भी सेहत के लिए बहुत हानिकारक है।
गर्म या ठंडा दोनों ही तरह के जल अलग-अलग परिस्थितियों में फायदेमंद हैं। मोटापा,वात व कफ रोगों में गर्म जल उपयोगी है,तो पित्त की स्थिति में ठण्डा। ठंडा पानी यदि एक के लिए अमृत के समान है,तो दूसरे के लिए हानिकारक भी हो सकता है। उदाहरण के लिए विदग्धाजीर्ण (अपच के साथ जलन भी होना) में ठंडा पानी पीने से जलन शान्त होने के साथ-साथ भोजन का पाचन भी होता है। परन्तु यदि यही ठण्डा जल खाँसी, दमा आदि के रोगी को पिलाया जाए तो कष्ट बढ़ जाता है।
ठंडे पानी का सेवन बेहोशी,पित्त की अधिकता, जलन,विषैलापन,चक्कर-उल्टी होना,शारीरिक थकावट और रक्तपित्त (अर्थात् शरीर के अंगों से रक्त निकलना) जैसे रोगों में और भोजन के पाचन में लाभकारी होता है। इसके विपरीत पसली का दर्द,,जुकाम,गले में दर्द और रुकावट,पेट फूलना, मोतियाबिन्द,दमा,खाँसी,हिचकी,तेल और घी तेल से बने पदार्थों के सेवन के बाद की स्थितियों में ठण्डा पानी पीने से रोग बढ़ता है।
गर्म जल हल्का होता है। यह पाचन शक्ति को बढ़ाता है तथा पाचन सम्बन्धी रोगों को दूर करता है। इसे पीने से पीनस, पेट में गैस, हिचकी आदि रोग तथा वात और जल का प्रकोप शान्त होता है।
उबला हुआ पानी स्वच्छ, सब दोषों से रहित और अच्छा होता है। यह हमेशा लाभकारी होता है और त्रिदोष (वात,पित्त और कफ) व उससे उत्पन्न रोगों को दूर करता है। उबालने पर जब जल का केवल एक चौथाई भाग शेष रहता है तो वह ’आरोग्याम्बु‘ कहलाता है। यह सदा पथ्य, हल्का, पाचक और जठराग्नि को बढ़ाने वाला होता है। गर्म आरोग्याम्बु के सेवन से दमा,खाँसी, कब्ज, पेट में अफारा, रक्त की कमी,शूल,बवासीर,गुल्म (पेट में गोला),बुखार, सूजन और पेट के दर्द में आराम मिलता है।
यदि स्वच्छ जल न मिल रहा हो और दूषित जल पीने की विवशता हो,तो इसे शुद्ध कर लेना चाहिए। जल को शुद्ध करने के लिए फ़िल्टर का प्रयोग करें या साफ़ मोटे कपड़े से कई बार छान लें। अच्छी सेहत के लिए रोजाना कम से कम ८ गिलास पानी ज़रूर पियें। पानी के सेवन से जुड़े नियमों का अपने दैनिक जीवन में पालन करें और स्वस्थ रहें।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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