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जीवन-दान

अंजना सिन्हा ‘सखी’
रायगढ़ (छत्तीसगढ़)
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बाँट रहे हो उसको जिसने, जीवन दान दिया।
उसका सीना छलनी करके, कैसा मान दिया॥

घर धन दौलत तुम सब-कुछ बाँटो, माँ कैसे बांटोगे ?
माँ को दुख देकर के कैसे तुम जीवन काटोगे।
अपनी पीर छुपाकर जिसने,
तुम पर ध्यान दिया…,
बाँट रहे हो उसको जिसने,
जीवन दान दिया॥

मात-पिता को समझ न पाए, आई लाज नहीं,
विलासिता को अपनाने से, आए बाज नहीं।
खुद जागी पर तुम्हें सुलाया, क्यों अपमान किया…,
बाँट रहे हो उसको जिसने, जीवन दान दिया॥

तिनका-तिनका जोड़ नीड़ में, तुमको था पाला,
सुख-दुख बाँटे उसे भीड़ का, हिस्सा कर डाला।
वृद्धाश्रम में छोड़ उसे कैसा प्रतिदान दिया…,
बाँट रहे हो उसको जिसने, जीवन दान दिया॥

माँ से जुड़ी हुई है सारे रिश्ते की बुनियाद,
दूर हुए तुम कौन सुनेगा उस, माँ की फरियाद।
बाबा भी तो नहीं जिन्होंने, हर सम्मान दिया…,
बाँट रहे हो उसको जिसने,
जीवन दान दिया॥