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जीवन, समाज और प्रेम का प्रतिनिधित्व करती ग़ज़लें समय-सापेक्ष

पटना (बिहार)।

इक्कीसवीं सदी के इस दौर में मानवता, प्रेम और संवेदना को बचाने की दिशा में डॉ. सुशील साहिल की ग़ज़लें अपना अहम स्थान रखती हैं। जीवन, समाज और प्रेम का प्रतिनिधित्व करती इनकी ग़ज़लें समय-सापेक्ष हैं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए मशहूर शायर डॉ. मंजू सक्सेना ने यह बात कही। अवसर रहा भारतीय युवा साहित्यकार परिषद द्वारा आभासी माध्यम से आयोजित कवि सम्मेलन का, जिसका संचालन करते हुए संयोजक सिद्धेश्वर ने कहा कि, डॉ. सुशील साहिल अपने दिल, जिगर और अपनी जान शायरी में उतार चुके हैं। ग़ज़ल को कविता के चश्मे से ना देखें। शेर कहना बहुत आसान है, लेकिन खूबसूरत शेर कहना बहुत कठिन है। ग़ज़ल की अपनी एक अलग शैली है, जिसमें सुशील साहिल पूरे खरे उतरते हैं। जब वे कह उठते हैं कि, ‘बड़ा ज़हीन है मुश्किल में डाल देता है,/वह हर सवाल को हँस-हँस के टाल देता है/बड़े कमाल के होते हैं फैसले उसके, /जो एक सिक्का हवा में उछाल देता है॥’ निश्चित तौर पर सुशील साहिल की ग़ज़लें तरन्नुम और स्वरों में अपना अलग अंदाज-ए-जलवा बिखेरती हैं। डॉ. साहिल की ग़ज़लों पर समीक्षात्मक डायरी पढ़ते हुए सिद्धेश्वर ने यह भी कहा कि, सुशील साहिल की अधिकांश ग़ज़लों में ऐसे ही तल्ख भरे अंदाज और अंदरूनी, रूमानी कशिश आपको देखने को मिलती है। उनकी ग़ज़लों में मुहावरों का प्रयोग भी खूब हुआ है।
मुख्य अतिथि समकालीन ग़ज़ल के प्रमुख हस्ताक्षर डॉ. साहिल ने कहा कि, ग़ज़ल की खूबसूरती उसके शब्दों की तासीर और अर्थ पूर्ण मिसरों के साथ बनते संगीतमय जादू बिखेरने वाले शेरों से होती है। ग़ज़ल आज के दौर में पाठक या श्रोता के बीच एक उत्सव की भांति उनके जीवन में रच बस गई है।
द्वितीय सत्र में लगभग २४ कवि-कवयित्रियों ने अपनी रचना से मूल्य, मनुष्यता और प्रेम को बचाने का आह्वान किया। सम्मेलन में देशभर के कवियों ने मंत्रमुग्ध कर दिया। सुरेश वर्मा, अविनाश बंधु, नमिता सिंह, ऋचा वर्मा, पुष्प रंजन, विजय कुमारी मौर्य और डॉ. अनुज प्रभात आदि ने पाठ किया।
सम्मेलन की सह संचालिका सपना चंद्रा ने सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापन किया।