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प्यारा बेटा

रेणू अग्रवाल
हैदराबाद(तेलंगाना)
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हम ३ बहनें और १ भाई थे। माँ-बाप ने हमें बड़े प्यार और दुलार से पाला-पोसा और बड़ा किया। ये १९८० के दशक की बातें हैं। मुझे इतनी समझ तो ,(जब मैं छठी कक्षा में थी) आ चुकी थी कि माँ मेरे भाई को हम सब बहनों से ज़्यादा प्यार करती है।
हम सरकारी विद्यालय में हिंदी माध्यम से दसवीं तक पढ़े और भाई पांचवी कक्षा के बाद इंग्लिश माध्यम के विद्यालय में पढ़ कर अंग्रेजी बोलना सीख चुका था।
दिन बीते,साल बीते। मैं अटकी थी मेरी सहेली संध्या की वजह से,क्योंकि वो दसवीं में अनुत्तीर्ण हो गई थी और मेरे साथ महाविद्यालय जाने को कोई सहेली नहीं थी। लिहाज़ा,उसके लिए १ साल इंतज़ार करने के बाद हम दोनों ने महाविद्यालय में इकट्ठे प्रवेश लिया और इंटर उत्तीर्ण कर लिया। मुझे वक़ालत करने का बहुत शौक़ था। मेरी सटीक बातों से सभी प्रभावित रहते थे और मुझे वकील बनने को प्रोत्साहित करते रहते थे।
उसे हिंदी शिक्षक और ग्रेजुएट बनना था,पर सब तैयारी होने के बाद मेरे भाई ने मुझे ऐसी बात कह दी जिससे मुझे महाविद्यालय नहीं जाने को मजबूर किया गया। तब अगर हिम्मत कर लेती और भाई की झूठी-डरावनी बात नहीं मानती तो आज बहुत बड़ी वकील होती।
मेरे माँ-बाप ने भी मेरी पढ़ाई की इच्छा को दफन कर दिया और १ साल के भीतर मेरी शादी कर दी। तब मैं सिर्फ १९ साल और ६ महीने की मासूम भोली लड़की थी।
किस तरह से बेटे-बेटी में भेद करके,बेटी को घर का कचरा समझ कर शादी करके घर से बाहर फेंक दिया जाता था।
शादी के बाद मुझे लगातार ३ बेटियाँ हुई,फिर २ पुत्र। अब मैंने ठान लिया था कि,जो शिक्षा मुझे नहीं मिली-वो मैं अपने बच्चों को हर हालत में दिलाऊंगी।
आज मेरी बड़ी बेटी एक विदेशी कम्पनी में प्रबंधक है तो छोटी बेटी ने नामी कम्पनी में ११ साल अच्छे-खासे वेतन पर शादी के बाद भी नौकरी की। सबसे छोटी बेटी ने भी नौकरी की,बड़ा बेटा एक विदेशी कम्पनी में कार्यरत है,तो सबसे छोटा कम्पनी सेक्रेटरी है।
मैं ज़्यादा पढ़ी नहीं थी,या पढ़ने नहीं दिया गया मुझसे छल करके,लेक़िन मैंने मेरे पांचों बच्चों की ज़िन्दगी संवार दी। चाहे ससुराल हो,ननिहाल हो या मेरे माँ-बाप हो,आज मेरी तारीफ़ करते नहीं थकते हैं।
तो ये है मेरी भीष्म प्रतिज्ञा का परिणाम,जो कोई मज़ाक नहीं था अंग्रेजी मीडियम के विद्यालय की फ़ीस भरना-वो भी ५ बच्चों की,मैंने मेरी हर ख़्वाहिश का गला घोंटकर बच्चों का भविष्य संवारा है।
मुझे गर्व है कि मेरे त्याग ने मेरे बच्चों को सफ़ल बनाया। बच्चों की हर साल की प्रगति रिपोर्ट पर सिर्फ़ मेरे हस्ताक्षर आज भी हैं। उनके पापा को तो ये भी नहीं मालूम था कि उनका कौन-सा बच्चा किस कक्षा में पढ़ता और पढ़ा था या किस विद्यालय में कौन पढ़ता रहा था…! है न आश्चर्य की बात ?

परिचय-रेणू अग्रवाल की जन्म तारीख ८ अक्टूबर १९६३ तथा जन्म स्थान-हैदराबाद है। रेणू अग्रवाल का निवास वर्तमान में हैदराबाद(तेलंगाना)में है। इनका स्थाई पता भी यही है। तेलंगाना राज्य की वासी रेणू जी की शिक्षा-इंटर है। कार्यक्षेत्र में आप गृहिणी हैं। सामाजिक गतिविधि के तहत समाज में शाखा की अध्यक्ष रही हैं। लेखन विधा-काव्य(कविता,गीत,ग़ज़ल आदि) है। आपको हिंदी,तेलुगु एवं इंग्लिश भाषा का ज्ञान है। प्रकाशन के नाम पर काव्य संग्रह-सिसकते एहसास(२००९) और लफ़्ज़ों में ज़िन्दगी(२०१६)है। रचनाओं का प्रकाशन कई पत्र-पत्रिकाओं में ज़ारी है। आपको प्राप्त सम्मान में सर्वश्रेष्ठ कवियित्री,स्मृति चिन्ह,१२ सम्मान-पत्र और लघु कथा में प्रथम सम्मान-पत्र है। आप ब्लॉग पर भी लिखती हैं। इनकी विशेष उपलब्धि-गुरुजी से उज्जैन में सम्मान,कवि सम्मेलन करना और स्वागत कर आशीर्वाद मिलना है। रेणू जी की लेखनी का उद्देश्य-कोई रचना पढ़कर अपने ग़म दो मिनट के लिये भी भूल जाए और उसके चेहरे पर मुस्कान लाना है। इनके लिए प्रेरणा पुंज-हर हाल में खुशी है। विशेषज्ञता-सफ़ल माँ और कवियित्री होना है,जबकि रुचि-सबसे अधिक बस लिखना एवं पुरानी फिल्में देखना है।

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