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तुमसे प्रीत निभाऊं कैसे!

कवि योगेन्द्र पांडेय
देवरिया (उत्तरप्रदेश)
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मन उलझन में पड़ा हुआ है,
ज़िद पे अपनी अड़ा हुआ है
हृदय सिंधु की गहराई में,
जाकर मोती लाऊं कैसे!
तुमसे प्रीत निभाऊं कैसे॥

मेरी बाधा है दुनियादारी,
पापी पेट की जिम्मेदारी
अगर पेट की बात सुनूं तो,
दिल को फिर समझाऊं कैसे!
तुमसे प्रीत निभाऊं कैसे…॥

जाने कैसा वक्त है आया,
जो अपना था हुआ पराया
किंतु तुम मेरे भीतर हो,
तुमको फिर बिसराऊं कैसे!
तुमसे प्रीत निभाऊं कैसे…॥

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