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तुम्हारी याद…

कवि योगेन्द्र पांडेय
देवरिया (उत्तरप्रदेश)
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अक्सर तुम चली आती हो,
मेरे मौन पड़े जीवन में
दूर खड़ी तुम मुस्काती हो,
बातें करती हो आँखों से।

मैं भी तो लाचार खड़ा हूँ,
मौन पड़ा निहार रहा हूँ
तुम आँखों से बोल रही हो,
मैं आँखों से सुन रहा हूँ।

कब तक तुम खामोश रहोगी,
कब तक मैं भी क्लांत रहूंगा
अब तो तोड़ो सारे बंधन,
कब तक प्रेम विश्राम रहेगा!

तुम आगे कुछ बढ़ सको तो,
मैं भी जंजीरें तोड़ बढूं
कुछ लोक-लाज की बातें होंगी
पर, मैं सब-कुछ छोड़ चलूं।

तुम मुझको यूँ अपना लो तो,
जीवन सँवर जाएगा अपना।
मैं भी खुद को तेरी,
बाँहों को यूँ सौंप चलूं!!