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दीपक

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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दीपावली पर्व स्पर्धा विशेष ……

झिलमिल-झिलमिल दीपक जलते,
हमें स्वप्निल-स्वप्निल दुनिया लगते।

चमचम-चमचम चमके मध्यम,
दीप माला परिमल दिखती
दीपावली में दीप अवली,
मधुरिम-मधुरिम मृदुल सजते।

रिमझिम-रिमझिम उमंग बरसे,
नन्हें दीपक बिकते सस्ते
टिमटिम-टिमटिम आँख मिचौनी,
दीपशिखा बन पवन से लड़ते।

जगमग-जगमग ज्योत्स्ना यह,
मन आँगन उजियारा भरते
बाती तेरे तेल ताल तब,
झरझर-झरझर प्रकाश झरते।

रुनझुन-रुनझुन देहरी पग,
रखती लक्ष्मी छुन-छुन करते
लप-लप लप-लप कर आलोकित,
अवनि क्या अम्बर तक सजते।

वृहद-वृहद दृश्य अलौकिक,
आँखों को नवजीवन मिलता
छंटे निशा जन-जन-मन गहन,
भोर आस की दीपक धरते।

व्योमहर्ष उत्साहित ध्वनि मिल,
गुनगुन-गुनगुन साहस भरते
झटपट-झटपट जलाओ दीप
दीपावली से रोग घटते।

पल-पल जल दे दिया संदेश,
सरल सुगम जीवट ना चलते
न डर अंधेरे से सर्वहित,
पथ पथिक तमस की ही चुनते।

जल जल निर्मल दीप दे रश्मि
सेवाभाव तल तम न तकते।
दीप जले आत्मा हो पवित्र,
नन्हें-नन्हें दीप सुन कहते॥

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।

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