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नारी ही नारायणी

राजकुमार अरोड़ा ‘गाइड’
झज्जर(हरियाणा)
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‘नारी’
माँ है,
बहन है
बीवी है,
बेटी है
और हाँ,
एक मित्र भी
सदा सर्वदा से,
मैं तेरे इन रूपों की
पूजा करता आया हूँ,
परन्तु कब,जब तूने
माँ बन कर,
वात्सल्य से मीठी-मीठी
लोरियाँ गा कर
खुद गीले में रह कर
मुझे सूखे में सुलाया है,
तो मैंने भी श्रवण बन
तेरी हर प्रकार से
सेवा की है।
भर्त्सना की है मैंने
तेरे उस रूप की,
जब तूने मुझे
आया के सहारे
कृत्रिम प्यार पाने
को भी,
तरसता-बिलखता छोड़
स्वयं क्लबों में और,
किट्टी पार्टियों में
समय बिताया है।

अर्चना की है मैंने
तेरे उस स्नेहमय रूप की,
जब तूने बहन बन
मेरे माथे पर,
रोली का टीका लगा
मेरी मंगल कामना की है,
और कलाई पर राखी बांध
अपनी सुरक्षा का
वचन लिया है,
तो मैंने भी
हुमांयू बन कर,
ऐ कर्मवती
अपने वचन का
भरसक पालन किया है,
परंतु लज्जाजनक है
तेरा वह व्यवहार,
जब तूने
औपचारिकता
और निज स्वार्थवश,
अमीर-गरीब भाई में फर्क कर
बस दिखावे के लिये,
अटूट बंधन में
बांधने का प्रयास किया है।

गर्व है मुझे
तेरे उस रूप पर,
जब अर्धांगिनी
और सहचरी बन,
मुझे अपना सीतामय
प्रेम दिया है,
तो मैंने भी राम बन
सदा तुम्हें अपने हृदय में
स्थान दिया है
परन्तु तेरे उस रूप
को देख कर
मैं स्तब्ध हूँ,
जब आत्ममुग्ध रह
पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो,
नित-नये बहाने
और किस्से गढ़,
मुझे
तुम्हारे और माँ के बीच
असहाय-सा बना,
पिसने को
मज़बूर
कर देती हो।

मैं सत्य ही
अभिमानी होता हूँ,
जब तुम बेटी बन
शालीनता की सीमा
में रह
अपना यौवन
गुजारती हो,
तो मैं भी
जनक बन,
हर सम्भव कोशिश
और जांच-परख से
उपयुक्त वर को सौंप
गर्वित हो जाता हूँ।
परन्तु हाय…!
निंदनीय है
तेरा वह रूप
जब तुम
मेरी आँखों में
धूल झोंक,
पुरूषमित्र की
कमर से कमर सटाये,
क्लबों और पबों में
नाचा
घूमा करती हो।

सुखद है
तेरा वह रूप भी,
जब मित्र
सहयोगी
सहकर्मी
के रूप में,
समाज
साहित्य
खेल
सिनेमा
और यहाँ तक कि,
राजनीति में भी
अपना भरपूर
गरिमापूर्ण,शानदार
योगदान दिया है,
परन्तु बहुत ही
दुखद और
आश्चर्यजनक
हो जाता है
जब तुम,
इन रूपों में
किसी को भी
अपने फायदे के लिये,
यौन शोषण
‘मी टू’ के
झूठे आरोप गढ़
फँसा देती हो।

‘नारी ही नारायणी’
नारी ही अन्नपूर्णा
नारी ही दो परिवारों के
माथे का चंदन,
करते हैं हम सब
मिल कर
अभिनन्दन,
सरोजिनी,अमृता,महाश्वेता
साक्षी,सिंधु,दीपा
मिताली,गीता,बबिता
सुपर मॉम मेरी कॉम
बन नारी ने ही तो,
भारत का मान बढ़ाया है।
मस्तक शान से
ऊंचा उठाया है,
तब हमने भी
‘गाइड’ बन
इनका
सत्कार
सदा
सत्कार ही,
सत्कार किया है॥

परिचय-राजकुमार अरोड़ा का साहित्यिक उपनाम `गाइड` हैl जन्म स्थान-भिवानी (हरियाणा) हैl आपका स्थाई बसेरा वर्तमान में बहादुरगढ़ (जिला झज्जर)स्थित सेक्टर २ में हैl हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री अरोड़ा की पूर्ण शिक्षा-एम.ए.(हिंदी) हैl आपका कार्यक्षेत्र-बैंक(२०१७ में
सेवानिवृत्त)रहा हैl सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत-अध्यक्ष लियो क्लब सहित कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़ाव हैl आपकी लेखन विधा-कविता,गीत,निबन्ध,लघुकथा, कहानी और लेख हैl १९७० से अनवरत लेखन में सक्रिय `गाइड` की मंच संचालन, कवि सम्मेलन व गोष्ठियों में निरंतर भागीदारी हैl प्रकाशन के अंतर्गत काव्य संग्रह ‘खिलते फूल’,`उभरती कलियाँ`,`रंगे बहार`,`जश्ने बहार` संकलन प्रकाशित है तो १९७८ से १९८१ तक पाक्षिक पत्रिका का गौरवमयी प्रकाशन तथा दूसरी पत्रिका का भी समय-समय पर प्रकाशन आपके खाते में है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। प्राप्त सम्मान पुरस्कार में आपको २०१२ में भरतपुर में कवि सम्मेलन में `काव्य गौरव’ सम्मान और २०१९ में ‘आँचलिक साहित्य विभूषण’ सम्मान मिला हैl इनकी विशेष उपलब्धि-२०१७ में काव्य संग्रह ‘मुठ्ठी भर एहसास’ प्रकाशित होना तथा बैंक द्वारा लोकार्पण करना है। राजकुमार अरोड़ा की लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा से अथाह लगाव के कारण विभिन्न कार्यक्रमों विचार गोष्ठी-सम्मेलनों का समय समय पर आयोजन करना हैl आपके पसंदीदा हिंदी लेखक-अशोक चक्रधर,राजेन्द्र राजन, ज्ञानप्रकाश विवेक एवं डॉ. मधुकांत हैंl प्रेरणापुंज-साहित्यिक गुरु डॉ. स्व. पदमश्री गोपालप्रसाद व्यास हैं। श्री अरोड़ा की विशेषज्ञता-विचार मन में आते ही उसे कविता या मुक्तक रूप में मूर्त रूप देना है। देश- विदेश के प्रति आपके विचार-“विविधता व अनेकरूपता से परिपूर्ण अपना भारत सांस्कृतिक,धार्मिक,सामाजिक,साहित्यिक, आर्थिक, राजनीतिक रूप में अतुल्य,अनुपम, बेजोड़ है,तो विदेशों में आडम्बर अधिक, वास्तविकता कम एवं शालीनता तो बहुत ही कम है।

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