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पर्यटन: मालदीप क्यों बौखलाया ?

ललित गर्ग

दिल्ली
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नववर्ष पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लक्षद्वीप की यात्रा पर क्या गए, चीन की कठपुतली बने मालदीव को मिर्ची लग गई। वहां की नई सरकार और तमाम लोगों ने इसे अपने पर्यटन उद्योग के लिए गंभीर खतरा मानते हुए भारत एवं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर आपत्तिजनक एवं गैर-जिम्मेदार टिप्पणियां कर दी, नासमझी में की गई ये टिप्पणियां मालदीप के लिए इतनी भारी पड़ गई कि भारतीय पर्यटकों ने जहां अपनी मालदीप की यात्रा को रद्द किया, वहीं भारत सरकार की तरफ से भी ऐतराज जताया गया। भारत की त्वरित कार्रवाई को देखकर मालदीप सरकार घबरा गई और उसने अपने मंत्रियों के बयान से किनारा कर लिया, लेकिन साफ है कि भारत और मालदीव के बीच सदियों पुराने प्रेम एवं सौहार्द के रिश्ते एकाएक तल्ख होते दिखाई दे रहे हैं। मालदीव की तरफ से लगातार तनाव बढ़ाने वाले बयान आ रहे हैं, लेकिन भारत की तरफ से फिर भी संतुलित नीति अपनाई जा रही है। लक्षद्वीप यात्रा का उद्देश्य कतई किसी भी देश के पर्यटन को नुकसान पहुंचाना नहीं है, बल्कि अपने देश में पर्यटन की नई संभावनाओं को तलाशना है।
भारत ऐतिहासिक, सामाजिक-सांस्कृतिक-प्राकृतिक पर्यटन से समृद्ध देश है। लुप्तप्रायः भारत के पर्यटन को नया जीवन एवं ऊर्जा मिल रही है। श्री मोदी ने लक्षद्वीप दौरे के साथ ही वहां के पर्यटन को प्रोत्साहित किया। इसकी कई तस्वीरें साझा करते हुए कहा कि, हमारे पास भी खूबसूरत समुद्र तट है। जो लोग रोमांच को पसंद करते हैं, लक्षद्वीप उनकी शीर्ष सूची में होना चाहिए। इसके बाद यह बहस चल पड़ी कि जब देश में इतनी खूबसूरत जगह है तो अपनी छुट्टी मनाने कहीं और क्यों जाएं ? लोगों को मालदीव की बजाय लक्षद्वीप जाना चाहिए। इससे खफा होकर मालदीव के ३ मंत्रियों ने जो आपत्तिजनक टिप्पणी की, उसके बाद वहां की सरकार को स्थिति की गंभीरता को देखते हुए इन तीनों को हटाना पड़ा है। पर्यटन ही मालदीव की आय का सबसे बड़ा स्रोत है। भारत से करीब २ लाख से ज्यादा लोग हर साल मालदीव की यात्रा करते हैं। ऐसे में यदि लक्षद्वीप जैसे भारत के द्वीपों को प्रोत्साहित किया जाता है, तो जाहिर है कि भारत से मालदीव जाने वाले लोगों की संख्या में कमी आएगी, जिसका विपरीत असर वहां के पर्यटन एवं आर्थिक व्यवस्था पर पड़ेगा।
असल में भारत के लोग सैर-सपाटे के शौकीन हैं और इसके लिए वे विदेश जाते हैं तो इससे देश की आर्थिक व्यवस्था पर व्यापक प्रतिकूल प्रभाव पड़ते हैं। बड़ी मात्रा में देश की धनराशि तत्काल बाहर जाती है। स्थानीय पर्यटन को प्रोत्साहन देकर यह धनराशि देश में ही रोकी जा सकती है, इससे स्थानीय उद्यमों को प्रोत्साहन, रोजगार सृजन और अंततः सकल घरेलू उत्पाद को बढ़ावा दिया जा सकता है। विदेशी पर्यटन पर खर्च से व्यापार घाटा भी बढ़ सकता है, वहीं घरेलू पर्यटन स्थलों का अपेक्षित दोहन नहीं होने से उन क्षेत्रों में सभांवित निवेश प्रभावित होता है। वर्तमान केंद्र सरकार इन स्थितियों पर लम्बे समय से ध्यान दे रही है। उसने पर्यटन को प्रोत्साहन देने के लिए व्यापक योजनाएं बनाई है। ‘देखो अपना देश’ और ‘स्वदेश दर्शन योजना’ के मूल में घरेलू पर्यटन को बढ़ाना देना ही है। इसी कड़ी में ईको पर्यटन और संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए ‘अमृतं धरोहर’ जैसी पहल की गई है। राज्य सरकारों को भी इसके लिए अपने स्तर पर हर संभव प्रयास करने होंगे। स्थानीय कला, संस्कृति, हस्तशिल्प और उत्पादों के आधार पर वे पर्यटकों को आकर्षित कर सकते हैं। उन्हें सैलानियों की सुविधाओं के साथ ही सुरक्षा, विशेषकर दूर-दराज के इलाकों में उन्हें सुरक्षा कवच प्रदान करना होगा। पर्यटन के स्तर पर नागरिकों की भूमिका भी कम महत्वपूर्ण नहीं। हम विदेश में तो कड़े नियमों का पालन करते हैं, लेकिन अपने देश में नियम तोड़ते रहते हैं। याद रहे कि, सबका साथ-सबका विकास में सबका प्रयास ज्यादा महत्वपूर्ण एवं प्रभावकारी है। भारत का पर्यटन क्षेत्र विपुल संभावनाओं से भरा है। इससे जुड़ी संभावनाओं को भुनाने से न केवल हमारी विरासत सशक्त होगी, बल्कि आर्थिक वृद्धि और सांस्कृतिक संरक्षण के साथ ही राष्ट्रीय गौरव भी बढ़ेगा।
पड़ोसी देश मालदीव हिंद महासागर पर बसा है और इस कारण यह सुरक्षा की दृष्टि से भी अहम है। यहां की नई सरकार चीन के करीब दिख रही है और चीन अपने मंसूबों को पूरा करने के लिए उसे गलत रास्तों पर ढकेल रहा है। मालदीव के नए राष्ट्रपति ने तो अपने चुनाव प्रचार में ही ‘इंडिया आउट’ का नारा दिया था। चीन हमारे रिश्तों की तल्खी का फायदा उठाने की कोशिश कर सकता है, जिसका भारत खयाल रखेगा। मालदीव की तरफ से चीन की शह पर भारत को आँख दिखाने की कोशिश होती रही है, लेकिन नरेन्द्र मोदी ने उनकी इन कुचेष्टाओं को निस्तेज करने के लिए लक्षद्वीप का सहारा लिया है। लक्षद्वीप देश में सबसे शांत स्थानों में से सुंदर और एक है। यहां कुल ३६ द्वीप, १२ एटोल और ३ चट्टानें है। निश्चित ही मोदी की इस यात्रा के बाद लक्षद्वीप में बड़े पैमाने पर पर्यटन को प्रोत्साहन देने के लिए व्यापक प्रयत्न होंगे।
न सिर्फ भारत के आम लोग, बल्कि हस्तियाँ भी अब मैदान में हैं और भारत के बारे में कही गई मालदीव की टिप्पणी का पुरजोर विरोध कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि देश पहले है, देश का सम्म्मान एवं विकास पहले है। हमारा लक्षद्वीप किसी से कम नहीं है।
मालदीव की प्रमुख हस्तियों की भारतीयों पर घृणित और नस्लवादी टिप्पणियाँ विडम्बनापूर्ण एवं आश्चर्यकारी है, क्योंकि वे ऐसा उस देश के लिए कर रहे हैं जो उन्हें सबसे अधिक संख्या में पर्यटक भेजता है। भारत हमेशा अपने पड़ोसियों के प्रति अच्छा रहा है, लेकिन हम ऐसी अकारण नफरत क्यों बर्दाश्त करें ? निश्चित ही इस तरह की अपमानजनक टिप्पणियों के जरिए दोनों देशों के बीच सदियों पुरानी दोस्ती पर नकारात्मक प्रभाव ही पड़ेगा।