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पहचान है ये हिंदी

सुश्री अंजुमन मंसूरी ‘आरज़ू’
छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश)
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हिंदी  दिवस स्पर्धा विशेष………………..


माँ शारदे का न्यारा,वरदान है ये हिंदी।
इस हिंद देश की तो,पहचान है ये हिंदी॥

हिंदी है गंगा-यमुना,सी एक नदी पावन।
स्वर और व्यंजनों की,लहरें है जिसमें बावन॥
नव पीढ़ी आओ आगे,निज शक्तियां संभालो।
पाना है संस्कृति तो,इस नीर में नहा लो॥
संस्कृत-सी प्यारी माँ की,संतान है ये हिंदी।
इस हिंद देश की तो,पहचान है ये हिंदी॥

हिंदी किरीट अपना,हिंदी है माथ बिंदी।
हिंदी की लोरियां सुन,बचपन में पाई निंदी॥
हिंदी बिछा के सोऊँ,हिंदी ही ओढ़ती हूँ।
इस हिंदी के सहारे,मैं हिंद जोड़ती हूँ॥
एका के वास्ते इक,अभियान है ये हिंदी।
इस हिंद देश की तो,पहचान है ये हिंदी॥

केशव कबीर मीरा,रसलीन ने संवारा।
हम नव कवि हैं अब ये,दायित्व है हमारा॥
हिंदी के शब्द मोती,लिक्खेंगे लिपि नागर।
और बूंद-बूंद करके,भर देंगे हिंदी गागर॥
गोते जरा लगा लो,रसखान है ये हिंदी।
इस हिंद देश की तो,पहचान है ये हिंदी॥

हिंदी है मातृ भाषा,भाषा न मात्र करना।
दुनिया की श्रेष्ठ भाषा,है इसको ही तू वरना॥
शोभा विहीन वरना,ये देश होगा अपना।
उत्थान उन्नति का,ना सत्य होगा सपना॥
अपना के इसको देखो,कल्याण है ये हिंदी।
इस हिंद देश की तो,पहचान है ये हिंदी॥

माँ भारती को उसका,सम्मान तो दिलाओ।
भारत के नाम को अब,अनुवाद से बचाओ॥
कहे इंडिया न कोई, ‘भारत’ कहे जमाना।
सार्थक तभी तो होगा, ‘हिंदी दिवस’ मनाना॥
भारत के लाड़लों का,अभिमान है ये हिंदी।
इस हिंद देश की तो,पहचान है ये हिंदी॥

माँ शारदे का न्यारा,वरदान है ये हिंदी।
इस हिंद देश की तो,पहचान है ये हिंदी॥

परिचय-सुश्री अंजुमन मंसूरी लेखन क्षेत्र में साहित्यिक उपनाम ‘आरज़ू’ से ख्यात हैं। जन्म ३० दिसम्बर १९८० को छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) में हुआ है। वर्तमान में सुश्री मंसूरी जिला छिंदवाड़ा में ही स्थाई रुप से बसी हुई हैं। संस्कृत,हिंदी एवं उर्दू भाषा को जानने वाली आरज़ू ने स्नातक (संस्कृत साहित्य),परास्नातक(हिंदी साहित्य,उर्दू साहित्य),डी.एड.और बी.एड. की शिक्षा ली है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक(शासकीय उत्कृष्ट विद्यालय)का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप दिव्यांगों के कल्याण हेतु मंच से संबद्ध होकर सक्रिय हैं। इनकी लेखन विधा-गीत, ग़ज़ल,हाइकु,लघुकथा आदि है। सांझा संकलन-माँ माँ माँ मेरी माँ में आपकी रचनाएं हैं तो देश के सभी हिंदी भाषी राज्यों से प्रकाशित होने वाली प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं तथा पत्रों में कई रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। बात सम्मान की करें तो सुश्री मंसूरी को-‘पाथेय सृजनश्री अलंकरण’ सम्मान(म.प्र.), ‘अनमोल सृजन अलंकरण'(दिल्ली), गौरवांजली अलंकरण-२०१७(म.प्र.) और साहित्य अभिविन्यास सम्मान सहित सर्वश्रेष्ठ कवियित्री सम्मान आदि भी मिले हैं। विशेष उपलब्धि-प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई के शिष्य पंडित श्याम मोहन दुबे की शिष्या होना एवं आकाशवाणी(छिंदवाड़ा) से कविताओं का प्रसारण सहित कुछ कविताओं का विश्व की १२ भाषाओं में अनुवाद होना है। बड़ी बात यह है कि आरज़ू ७५ फीसदी दृष्टिबाधित होते हुए भी सक्रियता से सामान्य जीवन जी रही हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-अपने भावपूर्ण शब्दों से पाठकों में प्रेरणा का संचार करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महादेवी वर्मा तो प्रेरणा पुंज-माता-पिता हैं। सुख और दु:ख की मिश्रित अभिव्यक्ति इनके साहित्य सृजन की प्रेरणा है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-
हिंदी बिछा के सोऊँ,हिंदी ही ओढ़ती हूँ।
इस हिंदी के सहारे,मैं हिंद जोड़ती हूँ॥ 
आपकी दृष्टि में ‘मातृभाषा’ को ‘भाषा मात्र’ होने से बचाना है।

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