कुल पृष्ठ दर्शन : 151

You are currently viewing पानी के बिना क्या करेंगे ? कहानी

पानी के बिना क्या करेंगे ? कहानी

राधा गोयल
नई दिल्ली
******************************************

“इस दुनिया से जाने से पहले मैं १ लाख झीलों में दोबारा जान फूँकना चाहता हूँ।” यह कहने वाला कौन था ?” दादी ने अपने पोते-पोतियों से पूछा
“पता नहीं दादी! आप ही बताओ। आपको ऐसी चीजों की बहुत जानकारी रहती है।” बच्चे बोले।
“अच्छा बताती हूँ। ‘लेक मैन’ के बारे में जानते हो ?”
“नहीं दादी! आप बताओ।”
“अच्छा तो सुनो। बात २०१७ की है। अब वो ‘लेक मैन’ के नाम से मशहूर है। २०१७
में वह आदमी ऑफिस के पास झील किनारे टहल रहा था। संतुलन बिगड़ने से झील में जा गिरा। दोस्तों की मदद से बाहर आया। उसने मन में सोचा कि, ऐसी झील में डूबने से तो नहीं, पर बदबू से जरूर मर जाऊँगा। घर पहुँचा तो बदबू के मारे सुरक्षाकर्मी ने घुसने नहीं दिया। अगले ही दिन उसने अपनी कंपनी (संसेरा इंजीनियरिंग) में ३६ एकड़ में फैली झील को दोबारा जिंदा करने का प्रस्ताव रखा।”
“तो क्या उसके मालिकों ने उसका यह प्रस्ताव मान लिया ?”
“नहीं, पहले नहीं माने। उसके लिए उसे बहुत जद्दोजहद करनी पड़ी। मालिकों को यह प्रस्ताव मूर्खता भरा लगा। वे उस पर हँसे, पर वह अपने फैसले पर कायम रहा।”
“वो कौन ? उस लेक मैन का नाम क्या था ? और वह कहाँ का रहने वाला था ?” बच्चों ने बहुत उत्सुकता से पूछा।
“उनका नाम है आनंद मल्लीगावड़। वो देश के ‘लेक मैन’ के रूप में चर्चित हैं। बेंगलुरु में रहते हैं।”
“किस तरह से उन्होंने यह काम किया ? क्या उनका यह सपना पूरा हो पाया ? उस परियोजना को पूरा करने के लिए बहुत शोध भी करना पड़ा होगा। वो अध्ययन सामग्री और पैसा कैसे जुटा पाए ?”
“जब निश्चय दृढ़ हो तो इंसान असंभव को भी संभव बना देता है। उन्होंने २०२५ तक बेंगलुरु की ४५ झीलों को दोबारा जिंदा करने का लक्ष्य रखा था और अब तक ३५ झीलों को जिंदा कर चुके हैं।”
“कैसे ?”
“चोल वंश के तरीकों से।उन्होंने ४ माह तक १५ साल पुराने चोल वंश के तरीकों का अध्ययन किया, जिनसे कीचड़ और गाद को आसानी से निकाला जा सकता है।”
“तालाब और झीलों से कीचड़ और गाद निकालने के क्या तरीके थे चोल वंश के ?”
“चोल वंश के तरीकों का अध्ययन करने से उन्हें पता चला कि, कीचड़ और गाद को नक्काशीदार पत्थरों में फंसा कर दूर कर सकते हैं। चोल वंश ने सिंचाई और झीलों का विशाल व आत्मनिर्भर जाल बनाया था।यह अध्ययन करके उन्होंने कम्पनी को बताया और परियोजना के लिए कंपनी से ही ‘सीएसआर’ फंड के तहत ८३ लाख रुपए मिले। ४५ दिनों में १ दर्जन उत्खननकर्ताओं व सैंकड़ों मजदूरों की मदद से क्यालासनहल्ली झील से गंदगी, कचरा और प्लास्टिक हटाए। इसके बंद पड़े चैनलों को खोला। खोदी गई मिट्टी से ही ५ द्वीप बनाए और मानसून का इंतजार किया। ६ माह बाद तो वो झील के साफ पानी में दोस्तों के साथ नौकायन कर रहे थे।”
“क्या सच में ?”
“एकदम सच। तभी तो झीलों को लेकर उनके समर्पण ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाई है, लेकिन ???”
“लेकिन क्या दादी ? क्या फिर उनके रास्ते में कोई मुश्किल पैदा हो गई ?”
“हाँ बेटा, ऐसा ही हुआ। इसके कारण कुछ लोग उनके दुश्मन भी बन गए।”
“मगर क्यों ? उन्होंने तो एक अच्छा काम किया था, फिर कुछ लोग उनके दुश्मन क्यों बन गए ?”
“बेटा हर अच्छा काम करने वाले के कुछ लोग दुश्मन जरूर बन जाते हैं। मैंने तुम्हें कितने ही महान लोगों की कहानियाँ सुनाई हैं और तुमने किताबों में भी पढ़ी होंगी। चाहे राम हों, चाहे श्री कृष्ण या स्वामी दयानंद सरस्वती… जिन्होंने भी समाज के लिए कुछ अच्छा करना चाहा, बहुत से लोग उनके दुश्मन भी बन गए। ऐसा ही यहाँ भी हुआ। इसने उन लोगों के साथ उनका टकराव बढ़ाया, जो झीलों पर अवैध कब्जा करते हैं।”
“पर वह तो एक अच्छा काम कर रहे थे। वह तो बदबूदार झीलों को साफ कर रहे थे। वो झीलें, जिसमें कोई नहा भी नहीं सकता था, अब उनको इतना साफ कर दिया था कि उसमें लोग नौकायन कर रहे हैं। फिर लोग उनके दुश्मन क्यों बने ?”
“बच्चों, वही तो बात है। आजकल कुछ लोगों की धनलिप्सा इतनी बढ़ गई है कि, वह झीलों, कुओं, बावड़ियों और तालाबों को पाट कर उन पर बहुमंजिला इमारतें खड़ी कर रहे हैं। उनके सपने तो धराशाई हो गए ना। और पता है कि ऐसे लोगों ने ‘लेक मैन’ के साथ क्या किया ?”
“क्या किया ?”
“झीलों की सफाई के दौरान कुछ लोग लाठी व हथियार लेकर पहुँचे। उन्हें धमकी दी कि, आप नहीं रुके तो हम आपको मार देंगे। उन्होंने उनसे कहा-“तुम मुझे मार दोगे, तो कुछ साल बाद एक गिलास पानी भी पीने को नहीं मिलेगा। ‘आप दूध के विकल्प ढूँढ सकते हो, पर पानी के बिना क्या करोगे’ ?”
जल्द ही भीड़ तितर-बितर हो गई। उनका सफर जारी है। हाल में लैंडफिल से १०० गज नीचे १ झील को जीवित किया है। लोग उस पर बहुमंजिला इमारत बनाने की तैयारी में थे। कभी कचरे- सीवेज का भंडार रही यह झील अब प्रवासी पक्षियों के साथ आयुर्वेदिक पौधों को उर्वर कर रही है।”
“दादी! अबकी छुट्टियों में बेंगलुरु चलेंगे। उनसे भी मिलेंगे। उनके बारे में और भी कुछ बताओ ना।”
“पता है एक दिन क्या हुआ। बेंगलुरु की चर्च स्ट्रीट पर छात्रों के समूह ने उन्हें घेर लिया। एक छात्रा बोली-“लेक मैन! आप जबर्दस्त काम कर रहे हैं। हम अपनी झीलें वापस चाहते हैं। तब युवाओं में ऐसी जागरूकता देखकर वो बहुत खुश हुए और बोले कि, इस दुनिया से जाने से पहले मैं १ लाख झीलों में दोबारा जान फूँकना चाहता हूँ।”

“दादी! फिर तो उन बच्चों ने भी मन ही मन यही संकल्प किया होगा। मैंने तो कर लिया है। कहीं घूमने जाऊँगा तो न तो खुद नदी या झीलों में कचरा फेंकूँगा, न ही किसी को फेंकने दूँगा, क्योंकि ऐसा नहीं करेंगे तो तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिए ही होगा। हमारे इतने छोटे से प्रयास से कुछ तो फर्क पड़ेगा।”