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पापियों के विनाश तथा धर्म स्थापना के लिए हर युग में प्रकट होते हैं जगद्गुरु

विनोद वर्मा आज़ाद
देपालपुर (मध्य प्रदेश) 

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कृष्ण जन्माष्टमी स्पर्धा विशेष……….


श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाने का आरंभ पुरातन काल से ही है। भादौ माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर इसे मनाया जाता है। इस दिन मटकी फोड़ प्रतियोगिता करने के साथ-साथ विभिन्न स्पर्धाएं भी की जाती है। चल समारोह का आयोजन किया जाता है,प्रसाद भी वितरित की जाती है।
भारत के साथ नेपाल व कई विदेशी राष्ट्रों में भारतीय प्रवासी भी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी धूमधाम से मनाते हैं। अनादिकाल से भगवान योगेश्वर के उपदेश जनमानस के लिए जीवन दर्शन प्रस्तुत करते रहे हैंl भगवान श्रीकृष्ण ने अत्याचारी राजा कंस का वध करने के लिए अवतरण लिया। जन्माष्टमी के अवसर पर मथुरा नगरी रंगों से सराबोर हो उठती है। जन्माष्टमी के पावन पर्व पर भगवान कान्हा की छवि देखने के लिए दूर-दूर से भक्त मथुरा नगरी में पधारते हैं। इस दिन मंदिरों को विशेष तौर से सजाया जाता है। इस दिन महिला-पुरुष दोनों उपवास रखते हैं व रात में ही भोजन प्रसादी ग्रहण करते हैं। कई घरों में भगवान कृष्ण का पालना झुलाया जाता है। कई स्थानों पर रास लीला का भी आयोजन किया जाता है।
#अवतरण-भादौ मास के कृष्ण पक्ष की मध्य रात्रि में रोहिणी नक्षत्र में देवकी-वासुदेव के पुत्र रूप में कृष्ण का अवतरण हुआ था। उस समय काली घटा छाने के साथ घनघोर वर्षा हो रही थी। घने अंधकार में नन्द बाबा के घर वासुदेव जी बालकृष्ण को लेकर गए। यशोदा से एक कन्या ने जन्म लिया था। कृष्ण को यशोदा मैया के पास लिटा कर उनकी कन्या को वासुदेव जी लेकर चल दिए। कन्या को कंस ने देवकी की संतान मानकर उसे पटक-पटक कर मारने का प्रयास किया। कन्या कंस के हाथ से छूटकर यह कहते हुए आकाश मार्ग की ओर चली गई-“कि कंस तुझे मारने वाले ने जन्म ले लिया है।”
‘मदनरत्न’ में जन्माष्टमी के विषय में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि-“जो उत्तम पुरुष होते हैं,वे निश्चित रूप से जन्माष्टमी व्रत करते हैं। वे सदैव धन-धान्य से पूर्ण होते हैं। इस व्रत को करने से उनके समस्त कार्य सिद्ध होते हैं।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को मोहरात्रि भी कहा जाता है। कृष्ण की छवि मन मोह लेती है। उनकी चाल और उनके नयनों का बांकपन देखकर लोग घायल हो जाते हैं। उनकी बाँसुरी की तान सुनकर गोपियाँ ऐसी खो जाती है कि,उन्हें घर का रास्ता भी याद नहीं रहता। उनके माथे पर लगा चंदन का बड़ा-सा तिलक और मोर-मुकुट की आभा देख कर तथा उनका मुख और नेत्र कमल की शोभा के समान लगने लगते हैं।उनकी चंचल चितवन देखते ही ह्रदय में धड़कन पैदा कर देती है, जबकि नज़रें मोर मुकुट पर अटक जाती है। मोहन गोपियों पर गज़ब का जादू कर देते हैं।
#श्रीमदभगवत गीता-इस ऐतिहासिक ग्रन्थ ने भारतीय इतिहास को नई दिशा दी है। यह व्यवहार शास्त्र होकर लोक व्यवहार की सम्पूर्ण शिक्षा इसमें समाहित है। जीवन जीने की कला,प्रेरणा से व्यक्तित्व विकास भी सम्भव कर सकते हैं।
#उपदेश-पलायन से पुरुषार्थ की ओर की यात्रा है-गीता। अर्जुन युद्ध से भागने की बात कर रहे थे,भगवान ने उन्हें बहादुरी से युद्ध लड़ने की प्रेरणा दी और अर्जुन के सुप्त हो रहे पुरुषार्थ को जगाया। यानी पलायन से पुरुषार्थ की ओर की यात्रा है-गीता।
#निडरता सीखो-अध्याय २ के श्लोक ३ में कौरव-पांडवों के युद्ध की कथा सब जानते हैं। अन्याय अगर होता है तो उसका डटकर मुकाबला करना चाहिए,पीठ नहीं दिखानी चाहिए। कोई हमारे अधिकारों को छीने तो उसे अपने आत्मसम्मान के साथ जोड़कर संघर्ष करना चाहिए,डरपोक नहीं बनना चाहिए। कायरता,कायरता है,चाहे वह भय जनित हो या करुणा जनित।
#कर्मठ बनो-अध्याय २ में श्लोक ४७-मनुष्य कर्म द्वारा प्रगति पथ प्राप्त कर सकता है,उपलब्धियों के कीर्तिमान रच सकता है। मनुष्य प्रत्येक पल,क्षण,निमिष का उपयोग कर समाज व राष्ट्र का उत्थान कर सकता है।
#अपना उद्धार स्वयं करें-अपने उत्कर्ष और अपकर्ष के लिए मनुष्य स्वयं उत्तरदायी है,मनुष्य चाहे तो उन्नति करे और चाहे तो अपना पतन।
संसार में जितने भी महापुरुष हुए हैं,उन्होंने स्वयं की प्रगति अपने दम पर की है। आत्मबल व आत्मविश्वास के सहारे ही उन्होंने उपलब्धियों के कीर्तिमान रचे हैं।
श्रीमदभगवद गीता में दुर्गुणों को आसुरी वृत्तियां और सद्गुणों को दैवीय वृत्तियाँ कहा गया है। पाखंड,घमंड,अभिमान,क्रोध,कठोर वाणी,अज्ञान इन सबसे दूर रहने का कहा गया है। जीवन में दिव्यता लाने के लिए अनेक गुण बताये हैं,जैसे- दान,यज्ञ,परायणता,सरलता,सत्यता,त्याग शांति,लज्जा,संकल्प तेज,धैर्य,पवित्रता,ईर्ष्या,अभिलाषा,क्रोध,अनुशीलन आदि-आदिl
भगवान कृष्ण ने गीता में ३ प्रकार के तप बताए हैं-
शरीर,वाणी और मन।
“अनुद्वेगकरं वाक्यं सत्यं प्रियहितं च यत।
सवाध्यायाभ्यसनं चैव वाकद्मयम तप उच्यते।”
अर्थात दूसरों को उद्दिग्न,दुःखी करने वाले वाक्य नहीं बोलना,अच्छा साहित्य पढ़ना यही वाणी का तप है। बोली में मधुरता,रस और मिठास होना चाहिए।
“ऐसी वाणी बोलिये,मन का आपा खोए।
वाणी से व्यक्ति सारे संसार को अपना मित्र बना सकता है, और चाहे तो शत्रु।
भगवान ने गीता में मन को एकाग्र करने की कला बताई है-
“असंशंय महाबाहो मनोदुर्नीग्रहं चलं।
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैश्राग्येण च गृखतेll”
है अर्जुन मन चंचल है। इसको अभ्यास के द्वारा वश में किया जा सकता है। अभ्यास का मतलब उद्देश्य प्राप्ति के लिए प्रयास। संगीतज्ञ संगीत में निमग्न हो जाता है,लेखक अपनी रचना को आकार देने में सुध-बुध भूल जाता है।
श्रीकृष्ण जी कहते हैं-
“वर्तमान के लिए जियो,भूत-भविष्य के लिए नहींl”
-चिंता तनाव न पालो,मस्त रहो-उत्साहित रहो।
-कर्म पथ पर तेजी से नहीं बढ़ने पर उत्साह मंद पड़ जाता है।
-ज्ञान का मार्ग पकड़ें,ज्ञान की महिमा है कि सदा सीखने के लिए तैयार रहो।
-योग्य गुरु के सामने जिज्ञासा प्रकट करेंगे तो उनसे ज्ञान मिलेगा, सत्य से साक्षात्कार होगा,लक्ष्य दिखाई देगा।
-मिल-बांटकर खाओ,संग्रह की आदत त्यागो,सबको साथ लेकर चलो।
-भगवान कहते हैं-तुम मेरे प्यारे बनना चाहते हो तो इसका कुछ भाग परोपकार में लगाओ।
-कर्म में इतनी श्रेष्ठता लाओ कि वह कर्म पूजा बन जाये,भगवान को समर्पित कर सके। चाहे कार्य छोटा हो या बड़ा।
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं-
“यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहमll
परित्राणाय साधनां विनाशाय च दुष्कृतां।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भामि युगे युगेll”
अर्जुन से भगवन कहते हैं-जब-जब धर्म और धरा पर अधर्म की वृद्धि होती है,तब-तब मैं ही अपने रूप को रचता हूँ। सज्जन पुरुषों का उपकार और पापियों का विनाश करने तथा धर्म की स्थापना के लिए मैं हर युग में प्रकट हुआ करता हूँ।
जगद्गुरु श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव निःसन्देह पूरे विश्व के लिए आनन्द मंगल का संदेश देता है।

परिचय-विनोद वर्मा का साहित्यिक उपनाम-आज़ाद है। जन्म स्थान देपालपुर (जिला इंदौर,म.प्र.) है। वर्तमान में देपालपुर में ही बसे हुए हैं। श्री वर्मा ने दर्शन शास्त्र में स्नातकोत्तर सहित हिंदी साहित्य में भी स्नातकोत्तर,एल.एल.बी.,बी.टी.,वैद्य विशारद की शिक्षा प्राप्त की है,तथा फिलहाल पी.एच-डी के शोधार्थी हैं। आप देपालपुर में सरकारी विद्यालय में सहायक शिक्षक के कार्यक्षेत्र से जुड़े हुए हैं। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत साहित्यिक,सांस्कृतिक क्रीड़ा गतिविधियों के साथ समाज सेवा, स्वच्छता रैली,जल बचाओ अभियान और लोक संस्कृति सम्बंधित गतिविधियां करते हैं तो गरीब परिवार के बच्चों को शिक्षण सामग्री भेंट,निःशुल्क होम्योपैथी दवाई वितरण,वृक्षारोपण,बच्चों को विद्यालय प्रवेश कराना,गरीब बच्चों को कपड़ा वितरण,धार्मिक कार्यक्रमों में निःशुल्क छायांकन,बाहर से आए लोगों की अप्रत्यक्ष मदद,महिला भजन मण्डली के लिए भोजन आदि की व्यवस्था में भी सक्रिय रहते हैं। श्री वर्मा की लेखन विधा -कहानी,लेख,कविताएं है। कई पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचित कहानी,लेख ,साक्षात्कार,पत्र सम्पादक के नाम, संस्मरण तथा छायाचित्र प्रकाशित हो चुके हैं। लम्बे समय से कलम चला रहे विनोद वर्मा को द.साहित्य अकादमी(नई दिल्ली)द्वारा साहित्य लेखन-समाजसेवा पर आम्बेडकर अवार्ड सहित राज्य शिक्षा केन्द्र द्वारा राज्य स्तरीय आचार्य सम्मान (५००० ₹ और प्रशस्ति-पत्र), जिला कलेक्टर इंदौर द्वारा सम्मान,जिला पंचायत इंदौर द्वारा सम्मान,जिला शिक्षण एवं प्रशिक्षण संस्थान द्वारा सम्मान,भारत स्काउट गाइड जिला संघ इंदौर द्वारा अनेक बार सम्मान तथा साक्षरता अभियान के तहत नाट्य स्पर्धा में प्रथम आने पर पंचायत मंत्री द्वारा १००० ₹ पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। साथ ही पत्रिका एक्सीलेंस अवार्ड से भी सम्मानित हुए हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-एक संस्था के जरिए हिंदी भाषा विकास पर गोष्ठियां करना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा के विकास के लिए सतत सक्रिय रहना है।

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