कुल पृष्ठ दर्शन : 317

You are currently viewing प्यार की परिभाषा

प्यार की परिभाषा

दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
*******************************************

प्यार एक ऐसी चीज है,
जिसे सभी जानते हैं, पसंद करते हैं
प्यार की जरूरत सभी को होती है,
क्या मानव, क्या जानवर, क्या पशु-पक्षी।

सभी प्यार की भाषा समझते हैं,
हर कोई चाहता है उसे प्यार करे
प्यार कोई शारीरिक चीज नहीं है,
प्यार आत्मिक, भावनात्मक चीज है।

प्यार किसी से भी हो सकता है,
चाहे वो निर्जीव हो या सजीव हो
प्यार भगवान से भी होता है,
प्यार पशु-पक्षी से भी होता है
प्यार आदमी से भी होता है,
प्यार अपने समाज व देश से होता है।

प्यार किसी वस्तु से भी होता है,
शारीरिक प्यार क्षणभंगुर होता है
रूप का प्यार अस्थाई होता है,
आत्मिक प्यार शाश्वत होता है
अपनों से तो सभी प्यार करते हैं,
गैरों से प्यार महान होता है।

आजकल सब स्वार्थवश प्यार करते हैं,
स्वार्थ वाला प्यार टिकता नहीं है
स्वार्थ पूर्ण हुआ, प्यार खत्म हुआ,
प्यार निः स्वार्थ होता है
प्यार का मतलब भोग-विलास नहीं,
प्यार का मतलब त्याग होता है।

प्यार का मतलब जिसे हम प्यार करें,
उसकी सारी बातें अच्छी लगे
उसकी सारी गतिविधियां अच्छी लगे,
चाहे वो कोई भी हो, मानव या जानवर
चाहे नदियाँ सागर जंगल पहाड़ आदि,
माँ हो या धरती माँ अपना या पराया।

प्यार बहुत गहरा होता है,
प्यार बहुत निर्मल होता है
प्यार जाति-धर्म-ऊंच-नीच नहीं होता,
प्यार से दुश्मन भी अपने हो जाते हैं।
‘दीनेश’ प्यार बहुत प्यारा होता है,
आओ हम सब प्यार से प्यार करें॥

Leave a Reply