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प्रेम पगा उपहार

डोली शाह
हैलाकंदी (असम)
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एक सप्ताह बाद ‘वैलेंटाइन-डे’ है। नरेश मन ही मन सोच रहा था कि, इस साल पत्नी नेहा को क्या तोहफा दे, जिससे वह खुश हो जाए। इसी उधेड़बुन में वह दफ्तर से लौटकर भोजन-पानी से निवृत होकर आराम कर ही रहा था कि, नेहा बोल पड़ी-“वैलेंटाइन-डे आ रहा है पॉकेट गर्म रखिएगा!”
“क्या, वो क्यों ?”
“मुझे इस बार करीना स्टाइल वाला हार चाहिए।”
“उससे क्या होगा अब ? अरे! हैं तो तुम्हारे पास कितने ही हार!”
“हैं। सारे पुराने स्टाइल के हो गए हैं!”
“तुम औरतों को ना, बस चाहिए तो चाहिए!”
नरेश मन ही मन सोचने लगा कि, यदि नेहा को गले का हार दूँ तो माँ को क्या दूंगा ? माँ को कम से कम एक अंगूठी तो देनी ही होगी। आज तक हमेशा जो भी लाया हूँ, दोनों के लिए लाया हूँ, तो अब…।
चलो, उन्हीं से ही एक बार पूछ कर देखता हूँ। “माँ, वैलेंटाइन-डे आ रहा है, क्या तोहफा चाहिए तुम्हें ?”
माँ हँस पड़ी, “अरे! बेटा, मुझे कुछ नहीं चाहिए ! यह सब तो तुम नए लोगों के लिए है।”
“नहीं माँ, बताओ ना!
“माँ! नए और पुराने क्या! जहां रिश्ते में प्यार-मोहब्बत हो, उसी के लिए ही ये दिन समर्पित है। चाहे एक माँ-बेटे का प्यार हो, भाई-बहन का, या पति-पत्नी का प्यार हो।”
“अरे! बेटा वह तो ठीक है, लेकिन मुझे कुछ नहीं चाहिए।”
“नेहा गले का हर मांग रही है।” तो नरेश ने पापा की तरफ इशारा करते हुए कहा,”माँ के लिए भी एक अंगूठी ले आऊंगा।”
पापा ने झट से कहा,-“बेटा, नेहा को जरूर-जरूर ला दो, लेकिन तुम्हारी माँ इस उम्र में अंगूठी लेकर क्या करेगी !” उन्होंने नम स्वर से कहा,- “बिस्तर से उठना ही इतना मुश्किल हो गया है।”
“पापा फिर भी आप तो जानते हैं कि, मैं आज तक कभी भी माँ को छोड़कर कुछ नहीं लाता।”
“बेटा यह सब-कुछ तो ठीक है, लेकिन हमें इस उम्र में सिर्फ थोड़ी-सी खुशी चाहिए! अपनी रोजमर्रा की जरूरतें पूरी हो जाएं, वही बहुत है। हमें सोने-चाँदी से ज्यादा खुशी तुम्हारी खुशी से मिलेगी। लाना ही चाहते हो तो माँ के लिए एक स्लीपवेल चप्पल ला देना, थोड़ी घिस गई है…। अब हमारी जो बची हुई जिंदगी है, वह सुरक्षित एवं स्वस्थ रहे, खुशी से बीत जाए, वही काफी है। जाओ बेटा, बहू को लेकर ज्वेलरी शॉप चले जाओ। पैसे की जरूरत हो तो बताना बेटा।” मन में खुशी का फव्वारा लिए नरेश ने इतना ही कहा,- “पापा… जरूर पापा…।”
नेहा अपना करीना हार पसंद कर माँ के लिए कुछ देख ही रही थी कि, नरेश बोला- “और क्या चाहिए तुम्हें!”
“नहीं मुझे नहीं, माँ के लिए देख रही थी।”
“नेहा रहने दो, पापा ने कहा है माँ के लिए एक जोड़ चप्पल ले आना।”
“नरेश यह कैसे! मेरे लिए हार और माँ के लिए चप्पल!” नेहा का माँ के प्रति सम्मान देख नरेश भावुकता से गद-गद हो गया। दोनों ने मिलकर प्यारी- सी चप्पल खरीदी।
नेहा तोहफा लेकर ज्यों घर पहुंची, नरेश ने माँ को चप्पल दिखाईं। वहीं नेहा अपना हार माँ को पहनाते हुए बोली,”माँ यह आपके लिए।”
माँ की खुशी का ठिकाना ना रहा। अपने छोटे से परिवार को देख उनका रोम-रोम खुशी से आशीर्वाद दे रहा था ।
“बहुत सुंदर है बेटा…! नरेश जरा बहू को पहना कर दिखा ।”
“मम्मी…!”
“क्या…!”
“”पहना ना…!।”
नरेश ने शर्म की चादर लिए माँ की इच्छा देख नेहा के गले में हार पहना दिया।
“अरे जी, एक फोटो तो क्लिक करो!”-माँ बोली,- “अब हुआ ना असली वैलेंटाइन-डे!”

नेहा ने पापा के पास जाकर कहा,-“अरे पापा, आप वहां क्यों ? यहां पास आईए ना…” कहते हुए पापा को अपने पास ले आई। माँ के मुँह से सिर्फ एक ही वाक्य निकला- “यह हुआ ना मेरा छोटा-सा संसार।” चारों एक-दूसरे के गले लग गए। खुशी की आभा लिए, मुँह से सिर्फ यही दुआ निकली,-“सदा खुश रहो बच्चों, स्वस्थ रहो…।”