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फिल्मकार ने सच्चाई दिखाई है समाज को

अंतुलता वर्मा ‘अन्नू’ 
भोपाल (मध्यप्रदेश)
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मुद्दा: ‘आर्टिकल-१५’……………..
‘आर्टिकल-१५ फ़िल्म निर्माता की जीभ काटने वाले को सात लाख का ईनाम’…, शीर्षक पढ़कर आपके मन में भी कई प्रश्न उठ रहे होंगे..पर एक दैनिक अखबार के अनुसार युवा ब्राह्मण महासभा ने कहा है कि ब्राह्मणों को फिल्म ‘आर्टिकल-१५’ ने ठेस पहुँचाई है,जीभ काटने वाले को ईनाम देंगे,जो व्यक्ति फ़िल्म निर्माता की जीभ काटकर लाएगा,उसे सात लाख रुपये का ईनाम देंगें।
ये फ़िल्म देखकर आई हूँ,मुझे नहीं लगता कि फ़िल्म निर्माता ने ऐसा कुछ दिखाया है, जिसकी वजह से समाज के पढ़े-लिखे लोगों से ऐसी प्रतिक्रिया की उम्मीद की जा सके।
निर्माता ने एक-एक चीज़ को ध्यान में रख के समाज के अहम पहलू को फ़िल्म के माध्यम से दर्शकों के सामने परोसा है। एक फ़िल्मकार ने तंत्र की सच्चाई समाज को दिखाने की हिम्मत जुटाई है। जो समाज में होता आया है और अभी भी हो रहा है,बडी बख़ूबी से फिल्माया है। जब फ़िल्म देख रही थी एक-एक दृश्य सीधा आत्मा को झकझोर रखता रहा….।
किस प्रकार उच्च वर्ग(स्वर्ण) दलितों पर अत्याचार और उनका शोषण करते आए हैं। यदि कोई इस व्यवस्था-तंत्र के खिलाफ अपनी आवाज़ उठाना चाहता भी है तो उसे उच्च स्तर से कुचल दिया जाता है।
फ़िल्म में दिखाया गया हर एक दृश्य समाज की सच्चाई को उजागर करता है,परंतु एक दृश्य अभी तक विचलित कर रहा है। फ़िल्म में एक पुलिस वाला गलियों के कुत्तों को बिस्किट खिलाता है,उनसे बहुत प्यार करता है,उन्हें चोट लगने पर सहानुभूति रखता है,परंतु दलित वर्ग से नफ़रत करता है,उन्हें हीन भाव से देखता है…। समझ ही नहीं पा रही कि ये कैसा समाज है,जहां एक कुत्ते का दर्जा एक दलित से कहीं ऊँचा है…।
आखिर ऐसा क्यों…? क्यों है ये व्यवस्था….?आज़ादी के ७० साल बाद भी हमारा देश आजाद नहीं,आज भी हम सामाजिक कुरीतियों से उभर नहीं पाए हैं। दलित होने पर अपमान कभी न कभी कहीं न कहीं इस वर्ग के प्रत्येक इंसान ने महसूस किया होगा, और स्वर्ण वर्ग का प्रत्येक व्यक्ति जिम्मेदार है इसका,क्योंकि वह कितनी भी उच्च शिक्षा प्राप्त कर ले या उच्च पद पर आसीन हो, परन्तु जात-पात का भेद कभी अपने मन से निकाल नहीं पाया। समाज में पैदा होते ही जात-पात,भेद-भाव (उच्च वर्ग)का बीज बो दिया जाता है,जो बड़ा होकर वृक्ष बनता है और अपनी मजबूत जड़ जमा लेता है। यह पूरी सामाजिक व्यवस्था फिर उन्हीं के हाथों चलती है,जिसका शिकार होता है दलित वर्ग।
क्या हम इससे वाकई में आज़ाद हो पाएंगे…? आखिर कब…? हमारे देश में हमारा संविधान तय नहीं करता कि निम्न वर्ग कैसे जीए,ये हमारे समाज का स्वर्ण वर्ग तय करता है कि उनको कैसे जीने दिया जाएगा। ये सच्चाई हमें रोज अखबारों के किसी कोने में पढ़ने को मिल जाती है। ये फ़िल्म उसी सामाजिक व्यवस्था की एक झलक मात्र है, जिस पर इस प्रकार की टिप्पणी की जा रही है।

परिचय-श्रीमती अंतुलता वर्मा का साहित्यिक उपनाम ‘अन्नू’ है। ११ मई १९८२ को विदिशा में जन्मीं अन्नू वर्तमान में करोंद (भोपाल)में स्थाई रुप से बसी हुई हैं। हिंदी,अंग्रेजी और गुजराती भाषा का ज्ञान रखने वाली मध्यप्रदेश की वासी श्रीमती वर्मा ने एम.ए.(हिंदी साहित्य),डी.एड. एवं बी.एड. की शिक्षा प्राप्त की है।आपका कार्यक्षेत्र-नौकरी (शास. सहायक शिक्षक)है। सामाजिक गतिविधि में आप सक्रिय एवं समाजसेवी संस्थानों में सहभागिता रखती हैं। लेखन विधा-काव्य,लघुकथा एवं लेख है। अध्यनरत समय में कविता लेखन में कई बार प्रथम स्थान प्राप्त कर चुकी अन्नू सोशल मीडिया पर भी लेखन करती हैं। इनकी विशेष उपलब्धि-चित्रकला एवं हस्तशिल्प क्षेत्र में कई बार पुरस्कृत होना है। अन्नू की लेखनी का उद्देश्य-मन की संतुष्टि,सामाजिक जागरूकता व चेतना का विकास करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महादेवी वर्मा,मैथिलीशरण गुप्त, सुमित्रा नन्दन पंत,सुभद्राकुमारी चौहान एवं मुंशी प्रेमचंद हैं। प्रेरणा पुंज -महिला विकास एवं महिला सशक्तिकरण है। विशेषज्ञता-चित्रकला एवं हस्तशिल्प में बहुत रुचि है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हमारे देश में अलग-अलग भाषाएं बोली जाती है,परंतु हिंदी एकमात्र ऐसी भाषा है जो देश के अधिकांश हिस्सों में बोली जाती है,इसलिए इसे राष्ट्रभाषा माना जाता है,पर अधिकृत दर्जा नहीं दिया गया है। अच्छे साहित्य की रचना राष्ट्रभाषा से ही होती है। हमें अपने राष्ट्र एवं राष्ट्रीय भाषा पर गर्व है।

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