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बैकुंठ चतुर्दशी पर हरिहर मिलन का अदभुत नजारा

संदीप सृजन
उज्जैन (मध्यप्रदेश) 
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भारतीय संस्कृति व्रतों,त्यौहारों और पर्वों की संस्कृति है। हर तिथि किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित है और इन तिथियों के अनुसार देवी-देवताओं को श्रद्धासुमन अर्पित करने के लिए पर्वों का आयोजन किया जाता है। उनकी उपासना करते हुए हर्षोल्लास के साथ त्यौहारों को मनाया जाता है। कार्तिक मास की चतुर्दशी तिथि को बैकुंठ चतुर्दशी कहा जाता है और इस दिन भगवान विष्णु के साथ महादेव की पूजा का विधान है। बैकुंठ चतुर्दशी की पूजा मध्य रात्री यानी निशिथ काल में की जाती है। मान्यता है कि बैकुंठ चतुर्दशी को श्रीहरी और महादेव की उपासना करने से पापों का नाश होता है और पुण्य फल का प्राप्ति होती है।
महाकाल की नगरी में बैकुंठ चतुर्दशी पर हरिहर मिलन का अदभुत समागम होगा। साल में केवल एक दिन ऐसा आता है जब बिल्व पत्र की माला पहनने वाले शिव तुलसी की माला पहनते हैं,और हमेशा तुलसी माला पहनने वाले विष्णु बिल्व पत्र की माला धारण करेंगे। यह नजारा केवल वैकुंठ चतुर्दशी की रात बड़े गोपाल मंदिर में होता है। उज्जैन में रात ११ बजे बाबा महाकाल की सवारी निकलती है,जो द्वारकाधीश गोपाल मंदिर जाती है। गोपालजी के सामने महाकाल विराजते हैं,दोनों मंदिरों के पुजारी पूजन अभिषेक करते हैं। संकल्प के माध्यम से शिव यानी महाकाल चार महीने तक पृथ्वी की देखभाल के बाद गोपालजी यानी विष्णु को फिर से जिम्मेदारी देते हैं। वर्ष में एक बार भगवान महाकाल चांदी की पालकी में बैठकर रात में हरि यानी विष्णु से मिलने जाते हैं। इस अदभुत मिलन को देखने हजारों लोग उमड़ते है। हरिहर मिलन बाद शिव विष्णु को तुलसी व विष्णु शिव को बिल्व-पत्र की माला पहनाकर सृष्टि का भार सौंपते हैं। रात में पुन: सवारी महाकाल मंदिर लौटती है। मान्यता है देवशयनी एकादशी पर जब विष्णु शयन के लिए क्षीरसागर में जाते हैं तो वे पृथ्वी को संभालने का भार शिव को दे जाते हैं। चातुर्मास के चार माह सृष्टि का संचालन भगवान शिव द्वारा किया जाता है।
दूसरे दिन कार्तिक पूर्णिमा का स्नान शिप्रा के रामघाट पर किया जाता है। इसी दिन शिप्रा में दीपदान भी होता है जो देखने लायक नजारा होता है।

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