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बौखलाहट है हिंदी पट्टी के राज्यों को ‘गौमूत्र राज्य’ की संज्ञा

ललित गर्ग

दिल्ली
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३ राज्यों (राजस्थान, मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़) में भारतीय जनता पार्टी की शानदार जीत से ‘इंडिया गठबंधन’ के विभिन्न राजनीतिक दलों एवं उनके नेताओं की बौखलाहट बढ़ती जा रही है। इसी बौखलाहट का नतीजा है तमिलनाडु के सत्ताधारी दल डीएमके पार्टी के सांसद डीएनवी सेंथिलकुमार द्वारा संसद में हिंदी पट्टी के राज्यों को ‘गौमूत्र राज्य’ की संज्ञा देना। उनके ऐसा बोलते ही संसद से लेकर बाहर के राजनीतिक गलियारों में हंगामा खड़ा हो गया। भाजपा ने सेंथिलकुमार के इस बयान का विरोध किया तो सांसद ने माफी मांग ली और लोकसभा की कार्यवाही से उनका बयान अब हटा दिया गया है। कांग्रेस ने भी इस बयान से पल्ला झाड़ लिया है, पर राजनीतिक स्वार्थों एवं संकीर्णताओं के चलते भारत की हजारों साल पुरानी संस्कृति एवं परम्परा को धुंधलाने एवं झुठलाने के ये षड़यंत्र राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता की बड़ी बाधा है।
गाय न केवल भारत की सनातन परम्परा, बल्कि आम जनजीवन में आस्था का सर्वोच्च केन्द्र है। भारतीय गोवंश को माता का दर्जा दिया गया है, इसलिए उन्हें ‘गौमाता’ कहते हैं, हमारे शास्त्रों में गाय को पूजनीय बताया गया है। न केवल गाय का दूध, बल्कि समस्त गौ-उत्पाद भी अमूल्य है। इन दिव्य अमृत पंचगव्य का उपयोग यज्ञ, आध्यात्मिक अनुष्ठानों, बीमारी से निजात पाने और संपूर्ण मानवता के कल्याण के लिए किया जाता है। इसलिए, गौमाता कोे आधार बनाकर भाजपा की जीत पर हमला करने की यह कुचेष्टा न केवल मानसिक दिवालियापन है, बल्कि इससे भारत की जनभावनाएं आहत एवं लहूलुहान हुई हैं। ऐसी कुचेष्टाएं एवं साजिशें पूर्व में भी हुई है। तब भी गौमाता की तरह ही सनातन धर्म पर आपत्तिजनक बयानों से देश को तोड़ने का षडयंत्र हुआ। तब तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे और खेल मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने विवादास्पद बयान में सनातन धर्म की तुलना डेंगू, मच्छर, मलेरिया, और कोविड से करते हुए असंख्य सनातनधर्मियों की आस्था पर कुठाराघात किया था। उनकी ही पार्टी डीएमके के सांसद ए. राजा ने तो हदें ही लांघते हुए हिंदू धर्म को ‘न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया के लिए अभिशाप तक कह दिया था।’ इन नेताओं के बयानों से जब विवाद संभला नहीं तो उन्होंने सफाई दी, माफी मांग ली। अपनी कहीं बातों से किनारा पाने की इस बार भी तरह पूर्व में चेष्टा हुई, ये स्थितियां भारतीय राजनीति की विडम्बना एवं विसंगति है। कांग्रेस की हार का कारण ऐसी विसंगतियां ही बनती रही है। प्रश्न है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी क्या उत्तर भारतीयों के खिलाफ अपने सहयोगी दल के अपमानजनक बयानों से सहमत हैं ? ३ में से २ राज्यों राजस्थान एवं छत्तीसगढ़ में ही इन चुनावों से पहले उसी की सरकारें थी। क्या हिन्दी राज्यों का अपमान एवं तिरस्कार करते हुए कांग्रेस आगे बढ़ने की सोच भी सकती है ? कांग्रेस कब तक देश को विघटित करने की राजनीति करती रहेगी ?, क्योंकि कांग्रेस के दबदबे वाली इंडिया गठबंधन में भी डीएमके एक अहम साझेदार है।
उत्तर भारत मे ‘गौमाता’ पर की गई आपत्तिजनक टिप्पणी से कांग्रेस को किनारा करना, उसकी सूझबूझ से ज्यादा विवशता है। यही कारण है कि, महाराष्ट्र कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री मिलिंद देवड़ा ने इस टिप्पणी पर नाराजगी जताई और इसे अफसोसजनक बताया। उन्होंने खुद को सनातनी कहा है। कांग्रेस सांसद राजीव शुक्ला ने भी कहा कि डीएमके की राजनीति अलग है। कांग्रेस उनकी राजनीति से सहमत नहीं है। कांग्रेस ‘सनातन धर्म’ और ‘गौमाता’ में भी विश्वास करती है।’ क्या कांग्रेस का यह विश्वास सच्चा विश्वास है या मत हासिल करने का हथियार मात्र है। इंडिया गठबंधन से जुड़े एक खास दल ने सनातनी परम्परा एवं हिन्दू भाषी राज्यों का बहुत बड़ा निरादर किया है। सनातनी परम्परा, सनातनियों एवं हिन्दू राज्यों का इस तरह का अपमान देश कैसे बर्दाश्त करेगा ? निश्चित ही देश की आस्था के साथ खिलवाड़ करने वाले दलों एवं नेताओं को जनता मुँहतोड़ जवाब देती है और देती रहेगी। आखिर सवाल यह भी है कि, हिंदी या हिंदी भाषी राज्यों के विरोध में डीएमके पार्टी एवं उसके नेता किस हद तक गिरेंगे। हिंदी भाषी राज्यों को लेकर मन में यह दुराग्रह से आखिर क्या हासिल होने वाला है ? डीएमके नेता सीधे-सीधे हिंदी भाषी प्रांतों में रहने वाले लोगों का अपमान कर रहे हैं।
भाजपा की जीत जनभावनाओं की जीत है और जीत का यह विजय रथ हिन्दी भाषी राज्यों के साथ-साथ दक्षिण भारत में भी विजय-पताका फहराते हुए आगे बढ़ रहा है। तेलगांना में १ सीट से ८ तक आगे बढ़ी है, केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में भाजपा अपने होने का अहसास करा रही है। कोई आश्चर्य नहीं कि, वहां पैर जमाते हुए भाजपा की सरकारें भी बनने लगे। भाजपा एवं मोदी की सोच, नीतियां, योजनाएं एवं दृष्टिकोण की जीत पर विपक्षी दलों की ये ओछी प्रतिक्रियाएं उसे अधिक बलशाली ही बनाएगी। देश को आगे बढ़ाना है तो तुष्टिकरण, धर्म एवं संस्कृति को आहत करने की विकृत मानसिकता और भ्रष्टाचार से मुक्त होना आवश्यक है। नरेन्द्र मोदी ने अपनी जगह दल एवं देश की जनता को ही प्रमुखता दी, जनता को हमेशा आगे रखा है। निश्चित ही इस बार के चुनाव परिणाम सनातन भारत को मजबूती देने वाले है, सनातन का अर्थ सच्चा भारत, सच्ची मानवीयता एवं उदात्त जीवन मूल्य। यही कारण है कि, इसी सनातन के शिखर गौमाता को आधार बनाकर डीएमके ने अपनी बौखलाहट को उजागर कर राजनीतिक अपरिपक्वता को दर्शाया है।

भारतीय न्याय व्यवस्था ने भी समय-समय पर ऐसे विवादास्पद व आपत्तिजनक मामलों में कहा है कि, जब धर्म एवं आस्था को लेकर कोई टिप्पणी की जाती है तो उसमें ध्यान रखना चाहिए कि उससे किसी की भावनाएं आहत नहीं होनी चाहिए। संविधान में बोलने की आजादी मिली हुई है, लेकिन बोलने की आजादी नफरत में नहीं बदलनी चाहिए। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता घृणित भाषण नहीं हो सकती। गौमाता एवं सनातन धर्म पर विवाद निरर्थक है। ऐसा प्रतीत होता है कि, ऐसे समाज एवं राष्ट्र को तोड़ने वाली कुचेष्टाएं करने वालों की आँखों में किरणें आंज दी जाएं तो भी वे यथार्थ को नहीं देख पाते, क्योंकि उन्हें उजाले के नाम से एलर्जी है। तरस आता है समाज में बिखराव करने वाले ऐसे लोगों की बुद्धि पर, जो सूरज के उजाले पर कालिख पोतने का असफल प्रयास करते हैं, आकाश में पैबन्द लगाना चाहते हैं और सछिद्र नाव पर सवार होकर सागर की यात्रा करना चाहते हैं।