कुल पृष्ठ दर्शन : 465

You are currently viewing भागम-भाग वाली जिन्दगी में प्रेमपूर्वक होली

भागम-भाग वाली जिन्दगी में प्रेमपूर्वक होली

 

जीवन और रंग,…

बीते साल होली के अवसर पर मुम्बई वाले भवन-समूह में आयोजित सभी कार्यक्रमों में भागीदारी निभाने का अवसर मिला। उसी को याद कर बता रहा हूँ कि, जनवरी माह में वहाँ उद्यान के चारों तरफ लगे नारियल के पेड़ से नारियल के साथ उसकी अनउपयुक्त डालियाँ उतार नारियल तो बाजार से कम दाम में रहवासियों को बेच दी गई, जबकि डालियाँ सम्भाल कर होलिका दहन के लिए रख ली गई। बाद में इन्हीं डालियों से होलिका दहन वाला कार्यक्रम हुआ। मुम्बई की भागम-भाग वाली जिन्दगी में होलिका दहन वाले समय उस भवन-समूह के सभी सदस्य न केवल उपस्थित थे, बल्कि सभी ने अपनी अपनी प्रचलित प्रथानुसार पूजा सम्पन्न कर आपस में एक-दूसरे को तिलक लगा प्रसाद बाँटा।
दूसरे दिन सभी सदस्यों ने तरह-तरह के रंगों से आपस में प्रेमपूर्वक होली खेली। बुजुर्गों से गुलाल लगवाना और उनके भाल पर भी गुलाल लगा आशीर्वाद ले फिर अपने हमउम्र वालों के बीच पहुँच आपस में खूब बतियाते भी रहे और एक-दूसरे को रंग से सराबोर करने के पश्चात फव्वारे के नीचे पकड़-पकड़ लाते भी रहे।
उस दिन सभी आयोजन बहुत ही बढ़िया क्रम से अर्थात सबसे पहले ठण्ड़ाई के साथ बड़ा पाव वगैरह की व्यवस्था थी। फिर नहा-धोकर आयोजित सह भोज में सभी ने एक-दूसरे की खूब मान-मनव्वल भी की।
कूल मिलाकर सभी ने पूरा-पूरा सहयोग करते हुए कार्यक्रम को सफल बना दिया। अन्त में किसी सदस्य ने हम बुजुर्गों से आग्रह किया कि यहाँ उपस्थित अनेक बच्चे इस पर्व के विषय में थोड़ा-बहुत अवश्य जानते हैं, परन्तु जो छोटे हैं उनको आप में से कोई संक्षेप में, रोचकतापूर्ण तरीके से समझा दें कि यह पर्व हम क्यों मनाते हैं और कैसे मनाना चाहिए।
मैंने उस मौके का फायदा उठाते हुए एकदम संक्षेप में उन सभी को बताया कि, भक्त प्रहलाद दैत्यराज हिरण्यकश्यप का पुत्र था।भक्त प्रह्लाद अंतर्मुखी होकर, सच्चिदानंद स्वरूप नारायण की उपासना करते थे। राम नाम का कीर्तन करते थे। हिरण्यकश्यप को हरि भक्ति अच्छी नहीं लगती थी। उसने भक्ति का विरोध किया। भक्त प्रह्लाद ने अपने पिताजी से कहा बिना भक्ति के यह मानव जीवन बेकार हो जाता है। हिरण्यकश्यप ने भक्त प्रहलाद को मारने के कई यत्न किए, लेकिन भगवान् के भक्त का बाल भी बांका नहीं हुआ।
हिरण्यकश्यप की होलिका राक्षसी नाम की एक बहन थी। होलिका राक्षसी को ब्रह्मदेव से यह वरदान मिला हुआ था कि, अग्नि उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी अर्थात अग्नि में जलेगी नहीं। वही होलिका एक बार भक्त प्रहलाद को मारने के उदेश्य से अपने साथ ले कर अग्नि में बैठ गई। होलिका जल गई। नारायण की कृपा से भक्त प्रह्लाद सुरक्षित बच गए। भक्त और भगवान् की महिमा को धारण करने का यह पर्व है।
हम भगवान् की भक्ति और हरि प्रेम के गीत बन्धुभाव से गाकर, हर्ष उल्लास के साथ नाचते हुए होली का त्योहार मनाते है।उपरोक्त पूरे घटनाक्रम से जीवन और रंग का सही मायने में सम्बन्ध के साथ-साथ महत्व अपने आप स्पष्ट होता है।

Leave a Reply