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भाजपा की राह आसान बनाता गठबंधन

ललित गर्ग

दिल्ली
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इंडिया गठबन्धन लगातार कमजोर होता हुआ दिखाई दे रहा है, जबकि केंद्र की सत्ता पर काबिज राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में नए दलों के जुड़ने की खबरों से उसके बड़े लक्ष्य के साथ जीत की राह आसान होती जा रही है। लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने सहयोगी दलों के साथ ४०० सीट जीतने का लक्ष्य निश्चित किया है। भाजपा जहां इस बडे़ लक्ष्य तक पहुंचने के लिए पुराने सहयोगियों को फिर से साध रही है, तो दूसरे दलों के नेताओं को अपने पाले में करने पर भी दल का जोर है और वह इसमें बड़ी सफलताओं को प्राप्त कर रही है। ओडिशा में बीजेडी और आंध्र में टीडीपी से गठबंधन पक्का माना जा रहा है। त्रिपुरा का मुख्य विपक्षी दल टिपरा मोथा भी अब भाजपा सरकार में शामिल हो गया है। भाजपा पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक चुनावी समीकरण स्थापित करने एवं विभिन्न दलों को एनडीए में शामिल करने की रणनीति में जुटी है। निश्चित रूप से भाजपा की यह मजबूत होती स्थिति विपक्ष की एकता के लिए अच्छी नहीं कही जा सकती, क्योंकि इंडिया गठबन्धन विभिन्न मजबूत क्षेत्रीय दलों का ही गठबन्धन माना जाता है, जिसमें कांग्रेस एकमात्र राष्ट्रीय दल है। समाजवादी पार्टी एवं आम आदमी पार्टी के अलावा अन्य क्षेत्रीय दलों में उतना दम नहीं है, या अनेक मजबूत दल एनडीए के साथ जुड़ चुके हैं या उन्होंने स्वतंत्र चुनाव लड़ने की घोषणा करके इंडिया गठबन्धन की साँसें छीन ली है। इन नए गठजोड़ों से बनता राजनीतिक परिदृश्य इंडिया गठबन्धन के लिए चिन्ता का कारण है।
वर्ष २०२४ के लोकसभा चुनाव ऐतिहासिक होंगे। ऐसी संभावनाएं हैं कि, भाजपा शानदार एवं ऐतिहासिक जीत को सुनिश्चित करने के लक्ष्य को लेकर सक्रिय है। नरेन्द्र मोदी चाहते हैं कि इन चुनावों के परिणाम उनके लक्ष्य को हासिल करें। इसलिए एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए गठबंधन में क्षेत्रीय दलों को जोड़ा जा रहा है, तो दूसरी तरफ खड़ा है इंडिया गठबंधन। कांग्रेस के नेतृत्व में इंडिया गठबंधन ने भी कुछ राज्यों में अपने सहयोगी दलों के साथ सीट साझेदारी पर बात बना ली है।इंडिया गठबन्धन एवं एनडीए रूठे नेताओं को मनाने, गठबंधन का गणित बनाने और पुराने सहयोगियों को फिर से साथ लाकर कुनबा बढ़ाने की कोशिशों में जुटे हैं। ओडिशा में बीजू जनता दल और भाजपा का गठबंधन होता है, तो राज्य में दोनों को बढ़िया चुनाव परिणाम मिल सकते हैं। कारण कि, पिछले लोकसभा चुनाव में यहाँ कांग्रेस को मात्र १ सीट पर जीत मिली थी और वर्तमान में यहाँ की राजनीति पर नवीन पटनायक की मजबूत पकड़ बताई जाती है। लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में दोनों दल ११ साल तक गठबंधन में रहे। इस दौरान दोनों दलों का राज्य की राजनीति पर दबदबा बना रहा। पटनायक राजनीति के महारथी हैं, उनको भाजपा के साथ गठबंधन करना ही दल एवं राज्य की जनता के हित में प्रतीत हो रहा है।
बीजू जनता दल की पिछले २५ वर्ष से ओडिशा में सरकार है। १९९८ में जब एनडीए का गठन हुआ था, तो बीजू जनता दल स्व. अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में इसमें शामिल हुआ था, मगर २००८ में ओडिशा के कन्धमाल में भीषण साम्प्रदायिक दंगे के बाद २००९ में जनता दल एनडीए से बाहर आ गया था। अब पुनः १५ वर्ष बाद आम चुनाव में ही यह पुनः एनडीए में शामिल हो रहा है और श्री मोदी के नेतृत्व में राज्य को विकास की नई ऊँचाइयाँ देना चाहते हैं। नवीन बाबू की वरीयता राज्य शासन पर काबिज और भाजपा का लक्ष्य केन्द्र की सरकार पर आरूढ़ रहना है। दोनों दल एक-दूसरे के लक्ष्य को पूरा करने में एक-दूसरे की सहायक हो सकती हैं। अतः इससे विपक्ष का यह विमर्श भी निस्तेज पड़ता है कि, श्री मोदी के सत्ता में आने के बाद से देश में भाजपा विरोध का समां बंधा है, जबकि प्रभावी नेतृत्व का ही परिणाम है कि, अनेक क्षेत्रीय दल भाजपा का समर्थन करते हुए न केवल अपनी राजनीति को जीवंत रखना चाहते हैं, बल्कि नया भारत-सशक्त भारत बनाने में खुद को शामिल करना चाहते हैं।
ओडिशा की ही तर्ज पर बिहार में भी नीतीश को मोदी के नेतृत्व में हित दिखाई दिया है। यही कारण है कि, लोकसभा चुनाव के पहले बिहार में राजनीतिक बदलाव करते हुए नीतीश एनडीए से जुड़ गए। इस बदलाव से राज्य में भाजपा और नीतीश कुमार को इस चुनाव में बड़ा फायदा होने की संभावनाएं है।
उधर आंध्र प्रदेश में भाजपा और तेलुगु देशम पार्टी का गठबंधन हो सकता है। मुलाकात के बाद गठबंधन की अटकलों को बल मिल गया है। राज्य में भाजपा, टीडीपी और जन सेना के बीच गठबंधन को लेकर बातें तय हो चुकी हैं। विभिन्न गैर भाजपा राज्यों में भाजपा की स्थिति अनुकूल बनती जा रही है, जिससे उसका ४०० के पार का लक्ष्य हासिल होता हुआ दिखाई दे रहा है, जबकि कांग्रेस उलझनों में उलझी हुई है। ये उलझनें ही भाजपा की राह को आसान बना रही हैं।