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भाजपा को पुनर्विचार की जरूरत

अमल श्रीवास्तव 
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)

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एक लंबे अंतराल के बाद २०१४ और २०१९ में केंद्र में पूर्ण बहुमत से भाजपा की सरकार बनी, साथ ही कई राज्यों में भी जीत हासिल हुई। पिछले ७ वर्ष में भाजपा ने कुछ अच्छे काम भी किए, जिसमें धारा ३७०,राम मंदिर,तीन तलाक,सीएए प्रमुख हैं,परंतु एस सी-एससी अधिनियम में उच्चतम न्यायालय के फैसले को पलटने,बिना समीक्षा के जातिगत आरक्षण को १० साल हेतु बढ़ाने, पदोन्नति में आरक्षण की वकालत करने तथा सवर्ण आयोग के गठन मे आना-कानी करने के कारण उसकी छवि मात्र सवर्ण विरोधी और दलित तुष्टिकरण की रह गई है।
भाजपा शायद ऐसा सोचती है कि जिस तरह कांग्रेस ने ६० वर्षों तक मुस्लिम तुष्टिकरण के दम पर शासन किया है,उसी तरह भाजपा भी दलित तुष्टिकरण करके लगातार जीत हासिल करती जाएगी,परंतु ऐसा नहीं हैं ।
कुछ सालों से सामाजिक जनसंचार माध्यम का बढ़ता प्रभाव,शिक्षा की बढ़ती दर आदि कारणों से सभी वर्ग में जागरूकता बढ़ी है। अब न तो दलित मत बैंक बचा है,न ही मुस्लिम मत बैंक। दलितों के कई अलग-अलग दल बन गए हैं। इसके अलावा दलितों का एक वर्ग लगातार भय और प्रलोभन देकर धर्मांतरण करवाने में भी लिप्त है। ऐसी स्थिति में दलितों को मत बैंक समझना किसी भी राजनीतिक दल के लिए दिवा स्वप्न ही कहा जाएगा । इसी तरह मुस्लिम मत बैंक भी किसी एक का नहीं रहा है।
अगर दलित अभी भी मत बैंक होते तो ४ बार की मुख्यमंत्री मायावती की इतनी दुर्गति नहीं होती। ऐसे ही बिहार में एलजेपी की इतनी करारी हार नहीं होती या मप्र और छग मे गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की सरकारें होती, लेकिन ऐसा नहीं है,क्योंकि दलित वर्ग के लोग अब जागरूक हो गए हैं। वे यह समझ गए हैं कि,असली वंचित,शोषित अभी भी रोज कमाना-रोज खाना की ही स्थिति में गुजारा कर रहे हैं। इसी तरह मुस्लिम समुदाय भी यह समझ गया है। कांग्रेस,सपा और अन्य कुछ दल अभी भी मुस्लिमों को मत बैंक समझ रहे हैं,इसलिए धीरे-धीरे इनका अस्तित्व मृत प्रायः हो चुका है। इसी तरह भाजपा को अभी भी भ्रम है कि दलित तुष्टिकरण से उसे सफलता मिलेगी,लेकिन मप्र,छत्तीसगढ़, राजस्थान,झारखंड और बंगाल चुनाव से यह स्पष्ट हो जाता है कि,अब तुष्टिकरण की नीति नहीं चलेगी ।
वास्तव में सवर्ण ही भाजपा के मुख्य मददगार हैं। लगभग ५० फीसदी सवर्ण भाजपा के मतदाता हैं,शेष कांग्रेस आदि में बँटे हुए हैं। भाजपा की वर्तमान दलित तुष्टिकरण और सवर्ण विरोधी कुटिल नीति के चलते सवर्ण मतदाता निराश और उदासीन होते दिख रहे हैं। वे या तो मत डालने जाते ही नहीं,या फिर ‘नोटा’ को मत दे रहे हैं। पिछले कुछ चुनावों मे ‘नोटा’ के प्रभाव से ही भाजपा कई जगह जीतते-जीतते हार गई है।
भाजपा को यह खतरा भी नजर आ रहा है कि, सवर्णों की बात मानने पर दलित नेता नाराज हो सकते हैं,और इधर वर्तमान नीति के चलते सवर्ण मतदाता खिसक रहे हैं। ऐसी स्थिति में शास्त्र कहता है कि,जब दोनों पलड़े बराबर दिख रहे हों,तो सत्य और न्याय का साथ देना चाहिए। आज का सत्य और न्याय यही है कि,सभी नागरिक एक बराबर हैं।
भारत में पिछले सत्तर साल से दलितों और मुस्लिमों को तो विशेष सुविधाएं मिल रहीं हैं लेकिन सवर्ण और ओबीसी का शोषण हो रहा है। ओबीसी की स्थिति सवर्णों की अपेक्षा कुछ ठीक ही है,परंतु सवर्ण तो दोयम दर्जे के नागरिक की ही तरह जीवन यापन करने को मजबूर हैं।
अस्तु,भाजपा से यही अपेक्षा की जाती है कि, देश हित में सत्य और न्याय का पक्ष लेकर जातिगत आरक्षण और अधिनियम की समीक्षा करे। वैसे भी भाजपा ‘सबका साथ,सबका विश्वास,सबका विकास और सबका प्रयास’ के नारे हमेशा लगाती है,तो अब इस नारे पर अमल करने का समय आ गया है।

परिचय–प्रख्यात कवि,वक्ता,गायत्री साधक,ज्योतिषी और समाजसेवी `एस्ट्रो अमल` का वास्तविक नाम डॉ. शिव शरण श्रीवास्तव हैL `अमल` इनका उप नाम है,जो साहित्यकार मित्रों ने दिया हैL जन्म म.प्र. के कटनी जिले के ग्राम करेला में हुआ हैL गणित विषय से बी.एस-सी.करने के बाद ३ विषयों (हिंदी,संस्कृत,राजनीति शास्त्र)में एम.ए. किया हैL आपने रामायण विशारद की भी उपाधि गीता प्रेस से प्राप्त की है,तथा दिल्ली से पत्रकारिता एवं आलेख संरचना का प्रशिक्षण भी लिया हैL भारतीय संगीत में भी आपकी रूचि है,तथा प्रयाग संगीत समिति से संगीत में डिप्लोमा प्राप्त किया हैL इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ बैंकर्स मुंबई द्वारा आयोजित परीक्षा `सीएआईआईबी` भी उत्तीर्ण की है। ज्योतिष में पी-एच.डी (स्वर्ण पदक)प्राप्त की हैL शतरंज के अच्छे खिलाड़ी `अमल` विभिन्न कवि सम्मलेनों,गोष्ठियों आदि में भाग लेते रहते हैंL मंच संचालन में महारथी अमल की लेखन विधा-गद्य एवं पद्य हैL देश की नामी पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती रही हैंL रचनाओं का प्रसारण आकाशवाणी केन्द्रों से भी हो चुका हैL आप विभिन्न धार्मिक,सामाजिक,साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़े हैंL आप अखिल विश्व गायत्री परिवार के सक्रिय कार्यकर्ता हैं। बचपन से प्रतियोगिताओं में भाग लेकर पुरस्कृत होते रहे हैं,परन्तु महत्वपूर्ण उपलब्धि प्रथम काव्य संकलन ‘अंगारों की चुनौती’ का म.प्र. हिंदी साहित्य सम्मलेन द्वारा प्रकाशन एवं प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री सुन्दरलाल पटवा द्वारा उसका विमोचन एवं छत्तीसगढ़ के प्रथम राज्यपाल दिनेश नंदन सहाय द्वारा सम्मानित किया जाना है। देश की विभिन्न सामाजिक और साहित्यक संस्थाओं द्वारा प्रदत्त आपको सम्मानों की संख्या शतक से भी ज्यादा है। आप बैंक विभिन्न पदों पर काम कर चुके हैं। बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. अमल वर्तमान में बिलासपुर (छग) में रहकर ज्योतिष,साहित्य एवं अन्य माध्यमों से समाजसेवा कर रहे हैं। लेखन आपका शौक है।

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