कुल पृष्ठ दर्शन : 39

You are currently viewing भ्रष्टाचार:बड़ी चुनौती, जन-समर्थन जरूरी

भ्रष्टाचार:बड़ी चुनौती, जन-समर्थन जरूरी

ललित गर्ग

दिल्ली
**************************************

विश्व भ्रष्टाचार निरोधी दिवस (९ दिसम्बर) विशेष…

 

दुनियाभर में ९ दिसम्बर को ‘अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी दिवस’ मनाया जाता है। इस दिवस का उद्देश्य भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों में जागरूकता फैलाना है। ३१ अक्टूबर २००३ को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रस्ताव पारित कर यह दिवस मनाए जाने की घोषणा की थी।
भ्रष्टाचार के खिलाफ सम्पूर्ण राष्ट्र एवं दुनिया का इस जंग में शामिल होना एक शुभ घटना कही जा सकती है, क्योंकि भ्रष्टाचार आज किसी एक देश की नहीं, बल्कि सम्पूर्ण विश्व की समस्या है। जैसे-जैसे इस दिवस को मनाने की सार्थकता एवं व्यापकता सफलता की ओर बढ़ी, वैसे-वैसे एक शंका जोर पकड़ती जा रही है कि, एक शुभ शुरुआत का असर बेअसर न हो जाए, क्योंकि यह समस्या कम होने की बजाय दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। शंका बेवजह भी नहीं है, क्योंकि जंग उन भ्रष्टाचारियों से हैं जो एक बड़ी ताकत बन चुके हैं। यह असल में राजनीतिक दुर्बलता के कारण ही बढ़ती है। सब जानते हैं कि, सत्ता में बैठे कुछ व्यक्ति, आम जनता के साथ भ्रष्ट-व्यवहार करते हैं और उनकी स्वतंत्रता, स्वास्थ्य, जीवन और भविष्य छीन लेते हैं, जिसके बाद भ्रष्टाचार हर देश, क्षेत्र, समुदाय को प्रभावित करता है। कोई भी इस अपराध से अछूता नहीं है, जिसके लिए भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में हमें भाग लेना चाहिए। असल में भ्रष्टाचार से लड़ना एक बड़ी चुनौती है, उसके विरुद्ध जन-समर्थन तैयार किया जाना जरूरी है। सभी गैर-राजनीतिक एवं राजनीतिक शक्तियों को उसमें सहयोग देना चाहिए। भ्रष्टाचार क्या है ? सार्वजनिक जीवन में स्वीकृत मूल्यों के विरुद्ध आचरण को भ्रष्ट आचरण समझा जाता है। आम जन- जीवन में इसे आर्थिक अपराधों से जोड़ा जाता है। भ्रष्टाचार में मुख्य हैं-घूस (रिश्वत), चुनाव में धांधली, शारीरिक भोग के बदले पक्षपात, हफ्ता वसूली, जबरन चन्दा लेना, अपने विरोधियों को दबाने के लिए सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग, न्यायाधीशों द्वारा गलत या पक्षपातपूर्ण निर्णय, ब्लैकमेल करना, कर चोरी, झूठी गवाही, झूठा मुकदमा, परीक्षा में नकल, परीक्षार्थी का गलत मूल्यांकन-सही उत्तर पर अंक न देना और गलत-अलिखित उत्तरों पर भी अंक दे देना, पैसे लेकर संसद में प्रश्न पूछना, पैसे लेकर मत देना, मत के लिए पैसे और शराब आदि बाँटना, पैसे लेकर रिपोर्ट छापना, अपने कार्यों को करवाने के लिए नगद राशि देना, विभिन्न पुरस्कारों के लिए चयनित लोगों में पक्षपात करना, आदि। भारत में भ्रष्टाचार की समस्या इतनी उग्र है कि, हर व्यक्ति इससे पीड़ित एवं प्रताड़ित है।
असल में भ्रष्टाचार एक विश्वव्यापी समस्या है। भारत में इसने कहर ढाया है। इसके खिलाफ लड़ाई डेढ़ अरब़ जनता के हितों की लड़ाई है, जिसे हर व्यक्ति को लड़ना होगा। ‘वही हारा जो लड़ा नहीं’- अब अगर हम नहीं लड़े तो भ्रष्टाचार की आग हर घर को स्वाहा कर देगी। नेहरू से मोदी तक की सत्ता-पालकी की यात्रा, लोहिया से राहुल-सोनिया तक का विपक्षी किरदार, पटेल से अमित शाह तक ही गृह स्थिति, हरिदास से हसन अली तक के घोटालों का आकार, बैलगाड़ी से मारुति, धोती से जीन्स, देसी घी से पाम-ऑयल, लस्सी से पेप्सी और वंदे मातरम् से गौ-धन तक होना हमारी संस्कृति का अवमूल्यन-ये सब भारत हैं। हमारी कहानी अपनी जुबानी कह रहे हैं, जिसमें भ्रष्टाचार व्याप्त है। आजादी के बाद से ही देश की जनता भ्रष्टाचार से जूझ रही है और भ्रष्टाचारी मजे कर रहे हैं। पंचायतों से लेकर संसद तक भ्रष्टाचार का बोलबाला है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सख्त चेतावनी के बावजूद सरकारी दफ्तरों के चपरासी से आला अधिकारी तक बिना रिश्वत के सीधे मुँह बात तक नहीं करते। भ्रष्टाचार के कारण जहां देश के राष्ट्रीय चरित्र का हनन होता है, वहीं देश के विकास की समस्त योजनाओं का उचित पालन न होने के कारण जनता को उसका लाभ नहीं मिल पाता। अधिकांश धन कुछ लोगों के पास होने पर गरीब-अमीर की खाई दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। समस्त प्रकार के करों की चोरी के कारण देश को भयंकर आर्थिक क्षति उठानी पड़ रही है। देश की वास्तविक प्रतिभाओं को धुन लग रहा है। भ्रष्टाचार के कारण कई लोग आत्महत्याएं भी कर रहे हैं। भ्रष्टाचार रूपी बुराई ने कैंसर की बीमारी का रूप अख्तियार कर लिया है। ‘मर्ज बढ़ता गया, ज्यों-ज्यों दवा की’ वाली कहावत इस बुराई पर भी लागू हो रही है। अब तो हालत यह हो गई है कि, विकास एवं आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर भारत भ्रष्टाचार के मामले में नित नए कीर्तिमान बना रहा है।
भले ही मोदी की भ्रष्टाचार विरोधी हुंकार के बाद देश में व्यापक बदलाव आया है। नोटबन्दी एवं जीएसटी जैसे कठोर आर्थिक निर्णयों ने आर्थिक भ्रष्टाचार पर लगाम लगाई है, लेकिन अभी भी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर एक नई राजनीतिक शक्ति को संगठित करने की जरूरत है। हर राष्ट्र के सामने चाहे वह कितना ही समृद्ध हो, विकसित हो, कोई न कोई चुनौती रहती है। हमारे राष्ट्र के सामने अनैतिकता, महंगाई, बढ़ती जनसंख्या, प्रदूषण, आर्थिक अपराध आदि बहुत-सी बड़ी चुनौतियां पहले से ही हैं, उनके साथ भ्रष्टाचार सबसे बड़ी चुनौती है। राष्ट्र के लोगों के मन में भय, आशंका एवं असुरक्षा की भावना घर कर गई है।
दुनिया के कई विकसित देशों में भ्रष्टाचार एक जायज व्यापारिक-राजनीतिक कार्रवाई है। संस्कृतियों के बीच अंतर ने भी भ्रष्टाचार के प्रश्न को पेचीदा बनाया है। नदी में गिरी बर्फ की शिला को गलना है, ठीक उसी प्रकार भ्रष्टाचार से जुड़े तत्वों को भी एक न एक दिन हटना है। यह स्वीकृत सत्य है कि, जब कल नहीं रहा तो आज भी नहीं रहेगा। उजाला नहीं रहा तो अंधेरा भी नहीं रहेगा। कभी गांधी लड़े तो कभी जयप्रकाश नारायण ने मोर्चा संभाला, अब यह चुनौती मोदी ने झेली है तो उसे उनको अंजाम तक पहुंचाना होगा और इसकी पहली शर्त है वे गांधी बनें। वह गांधी जिसे कोई राजनीतिक ताप सेक न सका, कोई पुरस्कार उसका मूल्यांकन न कर सका, कोई स्वार्थ डिगा न सका, कोई लोभ भ्रष्ट न कर सका। आज आवश्यकता केवल एक होने की ही नहीं है, केवल चुनौतियों को समझने की ही नहीं है, आवश्यकता है कि हमारा मनोबल दृढ़ हो, चुनौतियों का सामना करने के लिए हम ईमानदार हों और अपने स्वार्थ को नहीं परमार्थ और राष्ट्रहित को अधिमान दें। अन्यथा कमजोर और घायल राष्ट्र को खतरे सदैव घेरे रहेंगे।