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मंचीय कविता के भीष्म पितामह थे मालवा के मधुर गीतकार मोहन

लेखक संघ ने दी नगर के लाड़ले कवि को भावभीनी श्रद्धांजलि

उज्जैन(मध्यप्रदेश)।

हिन्दी और मालवी के सुप्रतिष्ठित कवि गीतकार मोहन सोनी का निधन उज्जैन की काव्य परम्परा की एक ऐसी क्षति है,जिसकी पूर्ति कभी संभव नहीं होगी। मोहन सोनी के साथ उज्जैन की काव्य परम्परा के एक युग का अंत हो गया। उन्होंने लगातार चार दशकों तक प्रदेश और देश के कवि सम्मेलनों में उज्जैन की आवाज को बुलंद किया। पेशे से शिक्षक मोहन सोनी जितने अच्छे कवि गीतकार थे,उतने ही कुशल मंच संचालक और सह्रदय इन्सान थे। वे उज्जैन की मंचीय कविता के भीष्म पितामह थे।
मध्यप्रदेश लेखक संघ द्वारा आयोजित श्रद्धांजलि सभा में वक्ताओं ने वरिष्ठ कवि मोहन सोनी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए यह उदगार व्यक्त किए। अध्यक्षता डाॅ.हरीश प्रधान ने की। श्री सोनी का मंगलवार सुबह उज्जैन में ८१ वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनके निधन का समाचार सुनते ही नगर के कवि साहित्यकारों में शोक की लहर फैल गई।
इस अवसर पर मोहन सोनी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए वरिष्ठ मालवी कवि और साहित्यकार डाॅ.देवेन्द्र जोशी ने कहा कि २३ मई सन् १९३८ को जन्मे मोहन ने कवि सम्मेलनों के एक पूरे युग को जीया है। जब तक वे मंच पर सक्रिय रहे,श्रोताओं की पहली पसंद बने रहेl अपने चुटीले हास्य,पैने व्यंग्य और मर्म मधुर गीतों के कारण वे देशभर में लोकप्रिय हो गए। लगातार 4 दशक तक वे कवि सम्मेलनों के मंच पर हिन्दी और मालवी का अलख जगाते रहे। आज के मंचीय कवि कविता की जो फसल काट रहे हैं,उसके बीज बोने वालों में मोहन सोनी अग्रिम पंक्ति में शुमार थे।
डाॅ.प्रधान ने उन्हे याद करते हुए कहा कि उनका जाना उज्जैन की मालवी और हिन्दी गीत परम्परा की एक बड़ी क्षति है। वरिष्ठ मालवी कवि और कवि सम्मेलनों मे लम्बे समय तक उनके साथी रहे डाॅ.शिव चौरसिया ने इस अवसर पर कहा कि,मोहन सोनी का जाना मेरे लिए व्यक्तिगत क्षति है। मोहन सोनी के निधन पर डाॅ.उर्मि शर्मा,डाॅ.हरिमोहन बौधौलिया,डाॅ. शैलेन्द्र शर्मा,सीमा जोशी,डाॅ.पुष्पा चौरसिया आदि ने भी दु:ख व्यक्त करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की।

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