राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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मेरा विद्यार्थी जीवन स्पर्धा विशेष ……..
तन में मस्ती,मन में मस्ती
दिनभर खेल-कूद में जाता,
ना भविष्य की चिंता कोई-
सुखमय समय बीतता जाता।
राम-रहीम नहीं था कोई
भेदभाव की बात नहीं थी,
मिल-जुल कर सब खाते-पीते-
राव रंक की जात नहीं थी,
छीना-झपटी होती रहती
कोई रूठता कोई मनाता।
ना भविष्य की चिंता कोई,
सुखमय समय बीतता जाता…॥
साइकिल दौड़ती फर्राटे से
गली-मोहल्ले नाप के आते,
समारोह हो या कोई दंगल-
संगी साथी सारे जाते
पढ़ना-लिखना भी होता पर,
पढ़ते कम थे सोते ज्यादा।
ना भविष्य की चिंता कोई,
सुखमय समय बीतता जाता…॥
कभी कक्षा से गायब होता
दोस्तों के संग पिक्चर जाता,
शिक्षक को जब मालूम चलता-
सजा और मार भी खाता,
कुछ भी दिल पर ना लेता था
हँस कर सारी बात भुलाता।
ना भविष्य की चिंता कोई,
सुखमय समय बीतता जाता…॥
ईर्ष्या-द्वेष नहीं जाना था
मान-अपमान नहीं माना था,
भाईचारे से रहते सब-
सबको अपना ही माना था,
मौज भरे दिन थे उजियारे
रात सुनहरे सपन सजाता।
ना भविष्य की चिंता कोई,
सुखमय समय बीतता जाता…॥
कितने उलझन भरे हैं दिन अब
समस्याओं से जूझ रहा हूँ,
काश! वो दिन वापस आ जाएं-
फिर से विद्यार्थी बन जाएं,
न कोई चिंता,फिकर न कोई,
ऐसा जादू-यन्त्र आता।
ना होती भविष्य की चिंता कोई,
सुखमय समय बीतता जाता…॥
परिचय– राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।