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महापुरोधा शिक्षाविद

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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महापुरोधा शिक्षाविद वह, जीरादेई गाँव सपूत था,
भारत माँ का राज दुलारा, देशरत्न नैयायिक प्रभूत था।

सदा गुरुओं का महागुरु बन, स्वयं परीक्षक छात्र श्रेष्ठ था,
स्वर्णिम गाथा लिखी ज्ञान की, परीक्षकों से छात्र श्रेष्ठ था।

परास्नातक अर्थशास्त्र में, अंग्रेजी सर्वोच्च पदक था,
न्यायशास्त्र बैरिस्टर उत्तम, मेधावी उद्योग सतत था।

शान्त धीर गंभीर संयमित, स्वाभिमान हर रोम लिप्त था,
अंग्रेजों से लखि आहत भारत, सत्य अहिंसा भाव सिक्त था।

गांधी से हो हुआ प्रभावित, असहयोग आन्दोलन रत था,
चम्पारण से सत्याग्रह में, क्रान्ति दूत बन वह अविरत था।

ब्रिटिश हुकूमत अत्याचारों को, सहा सलाखों को वर्षों था,
तन मन धन निज दिया देश को, जीवन अपना भारतमय था।

विधिवेत्ता योद्धा प्रखर राष्ट्र, सौम्य सहज नित शान्त प्रकृति था,
मितभाषी अनुशासित जीवन, जनमानस बीच अनुरक्ति था।

संघर्षों से फलीभूत जब भारत देश स्वतंत्र हुआ था,
स्वाधीन देश राष्ट्रपति चयन, राजेन्द्र प्रसाद प्रथम बना था।

गौरवमय था अखिल राष्ट्र-जन, पा प्रथम राष्ट्रपति डॉ. प्रसाद था,
संविधान सभा सभापति प्रथम, संविधान नव-निर्माणक था।

दश वर्षों तक महामहिम बन, राजमुकुट सिर राजतिलक था,
देशरत्न नीतिज्ञ महारथी, परम सादगी देशभक्त था।

किया समर्पण जीवन भारत, फलाहार रविवार नियत था,
निर्लोभी संतोष सुखी बस, अरुन्धती अर्धांग मुदित था।

राष्ट्रवाद का महाचिन्तक वह, महादार्शनिक सम्मानक था,
मर्यादित जीवन सद्विचार, स्वर्णिम अअतीत जन नेता था।

है कृतज्ञ जन गण मन भारत, स्वतंत्रता महासेनानी था।
विनत भाव करबद्ध नमन नित, अद्वितीय सत्पथगामी था॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥