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माली

डॉ.साधना तोमर
बागपत(उत्तर प्रदेश)
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हरे-भरे उपवन,खिलखिलाते पुष्पों, मुस्काती हुई कलियों और फलों से लदे वृक्षों को देखकर रामचरण असीम आनन्द की अनुभूति कर रहा था।भावनाएं मन में हिलौरे ले रही थी-“आज मेरा स्वप्न पूरा हो गया,अब मैं इन वृक्षों की छाया में बैठकर आराम से जीवन व्यतीत करूंगा। अचानक बेटे की कर्कश ध्वनि सुनाई दी-“क्या सारा दिन स्वप्नों में खोये रहते हो ? काम-धाम तो कुछ है नहीं!काम के न काज के,ढाई सेर अनाज के।” रामचरण पर तो मानो वज्रपात हो गया।
“क्या कह रहे हो बेटा! मैंने तुम्हारे लिए क्या नहीं किया ? रात-दिन मेहनत करके तुम्हें आत्मनिर्भर बनाया,स्वयं भूखा रहकर तुम्हें किसी चीज की कमी नहीं होने दी।”
“क्या किया,सरकारी स्कूल में पढ़ाया, कभी अच्छे कपडे़ नहीं मिले,कभी जेब खर्च नहीं मिला।”
“बेटे!मैंने तो तुम्हारे लिए खून-पसीना एक कर दिया और तुम कहते कुछ नहीं किया।”
“यह तो आपका फर्ज था।”
“औलाद का कोई फर्ज नहीं?”
“कुछ भी हो,मैं अब आपको नहीं निभा सकता।” यह कहकर बेटा बाहर निकल गया।
रामचरण की आँखों में आँसू बह रहे थे,जिस वृक्ष को इतने प्यार सेअपने खून-पसीने से सींचा,विषम परिस्थितियों के ताप से रक्षा की,हर तरह से फलने-फूलने में मदद की,आज वही अपनी छाया में बैठाने से इंकार कर रहा है। अगर ऐसे ही माली द्वारा पोषित वृक्ष उसी को फल और आश्रय देने से इंकार करते रहे तो भविष्य में शायद कोई माली अपने उपवन को हरा-भरा सम्पन्न बनाने की न सोचे। रामचरण भारी मन से चल दिए। उनका पन्द्रह वर्षीय पोता दौड़कर आया और बोला-“दादाजी आप कहीं नहीं जायेंगे। यह घर आपका है,यहीं रहेंगे हमारे साथ।”
“पर बेटे तुम्हारे पिताजी नहीं चाहते।” इतने में रामफल की कर्कश आवाज सुनाई दी-“राहुल अन्दर चलो,जाने दो अपने दादाजी को।”
“नहीं पापा! दादाजी कहीं नहीं जायेंगे और हाँ सुन लीजिए अगर आपने दादाजी को घर से निकाला तो आपको बुढ़ापे में मैं भी एक दिन ऐसे ही बाहर निकालूँगा।”
“शर्म नहीं आती तुम्हें ऐसा कहते,इसी दिन के लिए तुझे पाला-पोसा और पढ़ा-लिखा रहा हूँ ?”
“अपने अन्दर भी तो झांककर देखिए पापा! क्या दादाजी ने आपको इसी दिन के लिए पाला-पोसा और पढ़ाया-लिखाया था कि एक दिन आप उन्हें घर से बाहर निकालेंगे। आप यदि काँटे बोओगे तो आपको काँटे ही मिलेंगे, फूल नहीं।” रामफल को काटो तो खून नहीं, भौंचक्का-सा बेटे को देखता रह गया।

परिचय-डॉ.साधना तोमर का साहित्यिक नाम-साधना है। २९ दिसम्बर १९६७ क़ो पन्तनगर (नैनीताल) में जन्मीं साधना तोमर वर्तमान में उत्तर प्रदेश स्थित बड़ौत (बागपत) में स्थाई रूप से बसी हुई हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली डॉ.तोमर ने एम.ए.(हिन्दी), एम.एड.,नेट,पी-एच.डी. सहित डी.लिट्.की शिक्षा हासिल की हुई है। आपका कार्यक्षेत्र-बागपत स्थित महाविद्यालय में सह प्राध्यापक (हिन्दी विभाग)का है। सामाजिक गतिविधि में आप राष्ट्रीय सेवा योजना प्रभारी होकर विविध साहित्यिक मंचों से जुड़ी हुई हैं।लेखन विधा-गीत,कविता,दोहा,लेख और लघुकथा आदि है। प्रकाशन में ३ पुस्तकें(एक सन्दर्भ पुस्तक-कवि शान्ति स्वरूप कुसुम:व्यक्तित्व एवं कृतित्व,जीवन है गीत-गीत संग्रह और साधना सतसई-दोहा संग्रह) सहित २९ शोध- पत्र आपके खाते में हैं। प्राप्त सम्मान- पुरस्कार में काव्य रचनाओं पर ३१ राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय सम्मान,पुरस्कार तथा उपाधि प्राप्त हैं। लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक विसंगतियों को दूर करने का प्रयास तथा मानवीय मूल्यों की स्थापना के साथ ही आध्यात्मिक चेतना का विकास करना है। पसन्दीदा हिन्दी लेखक-छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद और प्रेरणापुंज-गुरु डॉ.सुभाषचंद्र कालरा हैं। आपकी रचनाएँ विभिन्न समाचार-पत्रों और संग्रह में छपी हैं। जीवन लक्ष्य-अपनी रचनाओं के माध्यम से मानवीय मूल्यों का विकास करना है। देश के प्रति विचार-
“राष्ट्र-धर्म अब यही है कहता,
दुश्मन को दिखला दें हम।
अलग नहीं हम एक सभी है,
सबक उसे सिखला दें हम।

हिन्दी हिन्द की आत्मा,
इस बिनु नहीं विकास।
अस्मिता यह राष्ट्र की,
जन-जन का विश्वास॥”

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