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मित्रता

श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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मित्रता की अजब कहानी है,थोड़ी-सी भी आहट पाकर दुख की घड़ी में मित्र तुरन्त चले जाते हैं।
‘मित्र’ शब्द केवल नाम का नहीं है,मित्र ही तो हैं जो दु:ख की घड़ी में कहते हैं-मत घबराओ मित्र मैं हूॅ॑ ना,और हरदम रहूॅ॑गा साथ में,अपने-आपको अकेला मत समझना।
मित्रता में कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। निस्वार्थ प्रेम-दोस्ती हो,वही सही मायने में मित्रता है।
१० मित्रों की भीड़ से बढ़िया कि एक मित्र हो,जिसे देखते ही आँखों से बहता हुआ आँसू सूख जाए,वही सच्चा मित्र है,और उसी तरह मित्रता में होना भी चाहिए।
अनुभव की बात है कि,परिवार में सगे भाई-भाई अलग हो जाते हैं,रिश्ते-नाते कभी भी छोड़ देते हैं, पति-पत्नी एक-दूजे को त्याग देते हैं,लेकिन एक मित्र ही है जो हमेशा साथ रहता है।
मित्र चाहे पास हों,चाहे दूर हों,उनकी बातों से उनके आगमन से,मित्र के बगल में बैठने से,जो भी समस्या हो,वह आधी हो जाती है। मित्र-मित्रता की कोई उम्र नहीं,यह उम्र से सम्बन्धित नहीं है,बस दिल का रिश्ता है।
मित्र वही है,जो कंधे पर हाथ रखकर कहता है- बोलो मित्र,क्या है तुम्हारी समस्या,और मेरे रहते तुमने चिंता क्यों की। इसी का नाम मित्रता है

परिचय-श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है।

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