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राष्ट्रगान ही राष्ट्र की पहचान व सम्मान

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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हमारे देश और अभी कुछ दिनों पूर्व किसी अन्य देश में राष्ट्रध्वज का अपमान किया गया, उसको पैरों से कुचला और अपने देश के निवासियों ने ही अपमान किया तथा उस पर ख़ुशी मनाई, जो हम देशवासियों के लिए लज़्ज़ा की बात हुई। राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान के लिए लाखों लोगों ने अपना बलिदान दिया, इसलिए राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान हमारा गौरव है।
    भारत वर्ष अनेक विविधाओं का देश है। हमारा देश फुरूस्तान है और यहाँ के लोग फुरसत अली हैं। किसी को कोई काम नहीं तो वही कुछ काम है। जैसे-कोई कहता है कि, हमें कोई चिंता नहीं, तो उसे वही चिंता है कि, कोई चिंता नहीं है। इसे यूँ समझिए कि, २ दोस्त एक गुरु के पास गए। दोनों सिगरेट पीते थे। गुरु से मिलने के बाद एक बोला-मुझे गुरु जी ने सिगरेट पीने से मना कर दिया। दूसरा बोला-मुझे पीने को कह दिया। तब पहले ने पूछा-वो कैसे ? दूसरा बोला-मैंने पूछा था कि, मैं भगवान का नाम लेते हुए सिगरेट पी सकता हूँ ? तो गुरु जी बोले हाँ। तब दूसरे ने पहले से पूछा-तुमने क्या कहा था ? तो पहला बोला-मैंने पूछा था कि,-सिगरेट पीते हुए भगवान् का नाम ले सकता हूँ ? तो गुरु जी बोले नहीं। जैसे-तुलसी दास जी ने कहा कि, बीज को उल्टा-पुल्टा कैसे भी बोया जाए, फसल मिलती है।
    जिस प्रकार हमारा नाम कोई पुकारता है, कभी नाम कहीं छप जाता है, या कोई भी हो, भीड़ में भी तो आप अपनी तस्वीर पहचान लेते हो;जैसे कोई आपका नाम, परिवार-जाति का नाम, मोहल्ले-शहर और देश का नाम पुकारता है तो हमारे कान खड़े हो जाते हैं। इसी प्रकार हमको स्वंत्रतता के पूर्व और बाद में मूलतः क्या अंतर मिला। देश वही था, सब-कुछ वही था, पर हमको अपना देश जो गुलाम था, उसे स्वतन्त्र कहने तथा अपना राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान की स्वतंत्रता मिली। किसी भी राज्य-देश की ध्वज पताका ‘विजय पताका’ कहलाती है। इस झंडे की शान-बान के लिए ही लाखों लोगों ने अपना बलिदान दिया। कहीं पर भी राष्ट्र ध्वज गिरने न पाए और न कोई अपमान करे, इसीलिए लोग प्राणों की आहुति दे देते हैं।
हमको या वर्तमान में  नवयुवकों को आजादी का अर्थ इसलिए नहीं मालूम कि, हमको तो आजाद देश मिला। जिनके परिवार उजाड़ दिए और जिन्होंने अपने को बलिदानी कहलाया, उनसे पूछते गुलामी का दर्द क्या होता था ? और अब हम आज़ादी का कष्ट भोग रहे हैं। जी हाँ, हम वर्तमान में स्वतंत्रता का दंश झेल रहे हैं। कारण कि, हम पूर्ण स्वछन्द हो चुके हैं, जैसे हमारे नेता और दल।
आजकल एक बहस चल रही है कि, राष्ट्रगान सिनेमाहाल में नहीं गाना चाहिए। इस पर २ विचारधारा काम कर रही है। एक कहती है कि चलना या गाना चाहिए। दूसरी कहती है कि, इसके गाने से इसका अपमान होता है। लोग चलते-फिरते रहते हैं और कोई खड़ा भी नहीं होता, यानि इससे कोई सम्मान नहीं होता है। हम सिनेमा देखने मनोरंजन के लिए आते-जाते हैं या राष्ट्रभक्ति के लिए ! मतलब हर सिक्के के २ पहलू हैं।
आज हम वर्तमान में  किसके दम पर जी रहे हैं ! यही राष्ट्रगान और ध्वज। इसके फहराने और गाने की आज़ादी न मिली होती तो संभवतः हम अभी भी गुलाम होते। यदि हम अभी भी इसका सम्मान नहीं करते तो मानकर चलो कि, मानसिक गुलाम हैं।
  हर धरम का व्यक्ति यदि वह अपने मजहब को मानने वाला है, तो मन में धरम-जाति को कोई भी प्रतीक दिख जाता है, या सुन लेता है तो

स्वाभिमान पैदा हो जाता है, क्योंकि उसमें उसकी निष्ठा और आत्मीयता होती है।

यानि राष्ट्र गान और राष्ट्रध्वज हमारी शान हैं। इनकी इज़्ज़त से हमारी इज़्ज़त है। कोई ऐसा धरम-जाति नहीं है, जो पूर्ण रूप से अपने रीति- रिवाज मानते हैं, पर हमारी पहचान विश्व में अपने गान और ध्वज से ही होती है। आज हम ७० वर्ष के उपरांत भी अपने ध्वज-गान के प्रति आत्माभिमानी नहीं हैं, तो किस वास्ते हमने आजादी ली ? क्या हम धार्मिक होकर नित्य धार्मिक पाठ, नमाज़ और प्रार्थना नहीं पढ़ते ? जब उसमें कोई कोताही नहीं बरतते, तब हम राष्ट्रगान को क्यों नहीं सम्मान देते ? उसको सम्मान देने से हमारा सम्मान बढ़ता है। वैसे, किसी के सम्मान देने या न देने से ध्वज या गान की प्रतिष्ठा कम नहीं होती, लेकिन सम्मान न देने से व्यक्ति की विदीर्ण मनोदशा का ज्ञापन होता है।
  भारत को हम कैसे विकासशील या विकसित देश कहें ? हम आधुनिकता को पसंद करते हैं, पर आधुनिक नहीं हैं। ऐसा क्यों…?जबकि हमारे देश का गौरव ही हमारा गौरव है। आज अगर उसके सम्मान में समय नहीं दे सकते, तो आगे कभी देश पर विपत्ति आएगी, तब उनसे यह उम्मीद करना बेकाफी होगा।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।