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वसंत की सुवास

सुश्री अंजुमन मंसूरी ‘आरज़ू’
छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश)
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रश्मि चाय-नाश्ते के साथ, जब बैठक में आई, तो देखा पतिदेव गाजर कीस रहे हैं। उसके चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान तैर गई। उसने उनकी और ट्रे बढ़ाई व स्वयं भी चाय की चुस्कियाँ लेते हुए अतीत के गलियारों में विचरने लगी। केंद्रीय विद्यालय में उसका पहला दिन था। क्या छात्र, क्या शिक्षक, सभी की नज़रें उसे ही निहार रहीं थीं। सलीके से पहनी गुलाबी साड़ी में वह किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी। छात्र-छात्राओं को उसकी विषय पर पकड़, पढ़ाने का अंदाज़, तो सहकर्मियों को उसके बात करने की अदा, व्यवहारिकता, सादगी भा रही थी। इस तरह वह धीरे-धीरे सबकी प्रिय बनती जा रही थी। वहीं विवेक भी था, जो इन सबसे परे उसमे यौवन का वसंत निहार रहा था। रश्मि उसकी आँखों को पहचान कर बचने लगी थी। एक दिन जब वह पीली साड़ी में थी, विवेक ने आगे बढ़कर उससे कहा था-“क्या तुम अपने इस ‘वसंत की सुवास’ का अधिकार मुझे दोगी..?” उसके गालों में जो पीले रंग का प्रभाव था, वह गुलाबी रंगत लेने लगा। उसने सँकुचाते, लजाते, मुस्काते हुए कहा था- “यदि आप इस अधिकार में कर्तव्य की सुवास घोल दें तो…मेरे पिताजी से…।” वाक्य पूरा किए बिना ही वह आगे बढ़ गई थी। दोनों परिवारों की सहमति के बाद विवेक रश्मि का बहुत ख़याल रखने लगा। रश्मि भी भविष्य के सपने संजोने लगी, कि यदि ये इतना ही ध्यान रखेंगे, तो कामकाजी होने की थकान कुछ कम ही होगी।

विवाह के बाद विद्यालय का पहला दिन था। परीक्षाओं का दौर था, काम की अधिकता ने दोनों को ही मानसिक और शारीरिक रूप से थका दिया था। घर लौटकर रश्मि ने चाय बनाई तो रसोई से ही आवाज़ लगाई- “सुनो! यहीं आ जाओ ना, मैं थक गई हूँ बहुत”। विवेक ने बैठक से ही कहा-“यहीं ले आओ, मैं लेट चुका हूँ”। रश्मि के आने पर वह कड़क आवाज़ में बोला-“बाहर भी मैं तुमसे बड़े पद पर हूँ, और इस बात का हमेशा ध्यान रखना, कि मैं पति हूँ तुम्हारा, जाओ पानी भी लेकर आओ मेरे लिए”। “रश्मि पहले आँखों में, और फिर ग्लास में पानी ले आई। वह सोच रही थी, जब दोनों का कार्य बराबर, थकान भी बराबर, तो फिर ये पुरुष का अभिमान…।
कुछ समय बाद प्राचार्य पद हेतु विभागीय परीक्षा हुई, जिसमें दोनों ने कोशिश की। रश्मि का प्रयास सफलता में बदल गया। उसने उसी विद्यालय में प्राचार्य का पदभार ग्रहण किया। परिणाम आने के बाद ही पतिदेव के व्यवहार में अंतर समझ में आने लगा था। आज प्राचार्य का पदभार ग्रहण करने के बाद घर में उसकी पहली शाम थी।
उसने चाय खत्म करते हुए कहा- “गाजर कीस रहे हो… ?? क्यों आपके अभिमान का क्या हुआ…???”
विवेक में पश्चाताप के भाव से कहा- “तुम्हारे स्वाभिमान के सामने ढह गया…बौना पड़ गया…रश्मि क्या तुम मुझे माफ़ नहीं कर सकतीं, क्या हमारे बीच की वो पुरानी दरार,..?”
रश्मि ने बीच में ही उसे रोकते हुए कहा-“लाओ ये किसनी और गाजर मुझे दो, और हाँ, दांपत्य जीवन में पतझड़ सहित कई मौसम आते हैं, परंतु दांपत्य के वसंत की सुवास हमेशा रहती है।” इस तरह वह विवेक की रश्मियाँ बिखेती हुई गाजर किसने में लग गई।

परिचय-सुश्री अंजुमन मंसूरी लेखन क्षेत्र में साहित्यिक उपनाम ‘आरज़ू’ से ख्यात हैं। जन्म ३० दिसम्बर १९७७ को छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) में हुआ है। वर्तमान में सुश्री मंसूरी जिला छिंदवाड़ा में ही स्थाई रुप से बसी हुई हैं। संस्कृत, हिंदी एवं उर्दू भाषा को बराबरी से जानने वाली आरज़ू ने संस्कृत साहित्य के साथ स्नातक, हिंदी साहित्य एवं उर्दू साहित्य से परास्नातक, डी.एड. और बी.एड. की शिक्षा ली है। आपका कार्यक्षेत्र-उच्च मा. शिक्षक (व्याख्याता) का है, आप शा. उत्कृष्ट विद्यालय में पदस्थ हैं। सामाजिक गतिविधि में आप दिव्यांगों के कल्याण हेतु कुछ मंचों से संबद्ध होकर सक्रिय हैं। इनकी लेखन विधा-मुख्यतः ग़ज़ल है, साथ ही यह गीत, कविता, हाइकु, लघुकथा आदि भी लिखती हैं। इस दौर की ग़ज़लें, माँ माँ माँ मेरी माँ, देश की ११ लोकप्रिय कवयित्रियाँ, भारत को जानें जैसे अनेक सांझा संकलन में रचना हैं तो देश के सभी हिंदीभाषी राज्यों से प्रकाशित प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं सहित अंतर्राष्ट्रीय में भी कई रचनाएंँ प्रकाशित हैं। मप्र साहित्य अकादमी सम्मान से विभूषित वेबसाइट हिंदीभाषा डॉट कॉम तथा उर्दू साहित्य की प्रतिष्ठित वेबसाइट रेख़्ता में भी आरज़ू की ग़ज़लें प्रकाशित हैं । समय-समय पर आपकी रचनाओं का प्रसारण आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से होता रहता है। आपके ग़ज़ल-संग्रह ‘रौशनी के हमसफ़र’ और ‘अनवर से गुफ़्तगू’ प्रकाशित हो चुके हैं तथा कुछ प्रकाशनाधीन हैं। बात सम्मान की करें तो सुश्री मंसूरी को-‘पाथेय सृजनश्री अलंकरण’ सम्मान (म.प्र.), ‘अनमोल सृजन अलंकरण’ (दिल्ली)२०१७, काव्य भूषण सम्मान २०१८, साहित्य अभिविन्यास सम्मान, दी ग्लोबल बुक ऑफ लिटरेचर अवॉर्ड २०१९, विश्व की सर्वाधिक लोकप्रिय १११ महिला साहित्यकारों में शीर्ष प्रथम स्थान प्राप्त, हिंदुस्तानी अकादमी से महादेवी वर्मा सम्मान २०२०, युगधारा फाउंडेशन से साहित्य रत्न सम्मान २०२१, मध्य रेलवे नागपुर मंडल से राजभाषा विभाग द्वारा हिंदी रचनाकार सम्मान २०२३ सहित अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सर्वश्रेष्ठ कवियित्री सम्मान प्राप्त हैं। विशेष उपलब्धि-प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई के शिष्य पंडित श्याम मोहन दुबे की शिष्या होना एवं कुछ कविताओं का विश्व की १२ भाषाओं में अनुवाद होना है। बड़ी बात यह है कि आरज़ू ८० फीसदी दृष्टिबाधित होते हुए भी सक्रियता से सामान्य जीवन ही नहीं जी रही , बल्कि रचनाधर्मिता में सक्रियता से सेवारत हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-अपने भावपूर्ण शब्दों से पाठकों में प्रेरणा का संचार करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महादेवी वर्मा तो प्रेरणा पुंज-माता-पिता हैं। सुख और दु:ख की मिश्रित अभिव्यक्ति इनके साहित्य सृजन की प्रेरणा है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-
‘हिंदी बिछा के सोऊँ, हिंदी ही ओढ़ती हूँ।
इस हिंदी के सहारे, मैं हिंद जोड़ती हूँ॥
आपकी दृष्टि में ‘मातृभाषा’ को ‘भाषा मात्र’ होने से बचाना है।’