कुल पृष्ठ दर्शन : 288

You are currently viewing वो कहीं रूठ न जायें..

वो कहीं रूठ न जायें..

संजय जैन 
मुम्बई(महाराष्ट्र)

****************************************

इस बात का डर है,वो कहीं रूठ न जायेंI
नाजुक से हैं अरमान मेरे,कहीं टूट न जायें।

फूलों से भी नाजुक है,उनके होंठों की नरमी,
सूरज झुलस जाये,ऐसी साँसों की गरमी।
इस हुस्न की मस्ती को,कोई लूट न जाये,
इस बात का डर है,वो कहीं रूठ न जायें…॥

चलते हैं तो नदियों की, अदा साथ ले के वो,
घर मेरा बहा देते हैं,बस मुस्कुरा के वो।
लहरों में कहीं साथ,मेरा छूट न जाये,
इस बात का डर है,वो कहीं रूठ न जायें…॥

छत पे गए थे सुबह,तो दीदार कर लिया,
मिलने को कहा शाम को,तो इनकार कर दिया।
ये सिलसिला भी फिर से,कहीं टूट न जाये,
इस बात का डर है,वो कहीं रूठ न जायें…॥

इस बात का डर है,वो कहीं रूठ न जायें,
नाजुक से हैं अरमान मेरे,कहीं टूट न जायें॥

परिचय– संजय जैन बीना (जिला सागर, मध्यप्रदेश) के रहने वाले हैं। वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। आपकी जन्म तारीख १९ नवम्बर १९६५ और जन्मस्थल भी बीना ही है। करीब २५ साल से बम्बई में निजी संस्थान में व्यवसायिक प्रबंधक के पद पर कार्यरत हैं। आपकी शिक्षा वाणिज्य में स्नातकोत्तर के साथ ही निर्यात प्रबंधन की भी शैक्षणिक योग्यता है। संजय जैन को बचपन से ही लिखना-पढ़ने का बहुत शौक था,इसलिए लेखन में सक्रिय हैं। आपकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। अपनी लेखनी का कमाल कई मंचों पर भी दिखाने के करण कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इनको सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के एक प्रसिद्ध अखबार में ब्लॉग भी लिखते हैं। लिखने के शौक के कारण आप सामाजिक गतिविधियों और संस्थाओं में भी हमेशा सक्रिय हैं। लिखने का उद्देश्य मन का शौक और हिंदी को प्रचारित करना है।

Leave a Reply