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व्यस्त है हिंदी

अरुण कुमार पासवान
ग्रेटर नोएडा(उत्तरप्रदेश)
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मनुष्य की स्वाभाविक आदत है रोना,
हँसने,गुस्साने,प्यार करने की ही तरह।
इसीलिए,रोने का प्रयोजन
हमेशा दु:ख-दर्द ही नहीं होता…।
अतृप्ति कभी-कभी
सकारात्मक भी होती है,
गति बनी रहती है अतृप्ति से,
विकास में निरन्तरता रहती है।
सम्भवतः इसी लिए,
देश-विदेशों में,चारों दिशाओं में
फैलने के बाद भी,
सिमटी दिखती है हमें
हमारी अपनी हिंदी,
और हम रोते हैं।
रोते हैं कि ‘हिंदी दिवस’ और पखवाड़ा,
इतने पर ही है अधिकार
हमारी अपनी हिंदी का…,
जबकि लिखने,छपने,प्रसारित होने
विवेचित होने,चर्चित होने में,
निरन्तर व्यस्त है हिंदी;
यहाँ तक कि
व्यवसाय और रोटी भी देने लगी है।
रोते हैं कि पितृपक्ष है हिंदी पखवाड़ा,
जबकि,पितरों के प्रति श्रध्दा
सम्मान का पक्ष होता है पितृपक्ष…।
ओ हमारी सम्मानित,प्रतिष्ठित हिंदी,
मत जाना हमारे रोने पर
दुनिया जानती है,
हिंदुस्तानी जहाँ होंगे,हिंदी वहाँ होगी।
हमें आदतन रोने दो,
तुम अपना विकास होने दो॥

परिचय:अरुण कुमार पासवान का वर्तमान निवास उत्तरप्रदेश के ग्रेटर नोएडा एवं स्थाई बसेरा जिला-भागलपुर(बिहार)में है। इनकी जन्म तारीख १७ दिसम्बर १९५८ और जन्म स्थान-भागलपुर है। हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री पासवान ने ३ विषय में एम.ए.(इतिहास,हिंदी व अंग्रेज़ी) और विधि में स्नातक की शिक्षा प्राप्त की है। आपका कार्य क्षेत्र-सहायक निदेशक, कायर्क्रम सेवा(सेवानिवृत्त-आकाशवाणी)का रहा है। कविता,कहानी,नाटक,लेख में निपुण श्री पासवान के नाम प्रकाशन में-पितृ ऋण (गद्य),अल्मोड़ा के गुलाब (काव्य संग्रह),७ सम्पादित काव्य संग्रह,३ पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित है। आप एक पत्रिका के सह-सम्पादक होने के साथ ही पोर्टल पर लेखन में सक्रिय हैं। लेखन का उद्देश्य-साहित्य सेवा और पसंदीदा हिंदी लेखक-निराला,दिनकर हैं। आपके लिए प्रेरणापुंज- दिनकर हैं। देश और हिंदी भाषा पर आपकी राय-“भारत सामाजिक समन्वय में विश्वास रखता रहा है। इसकी सांस्कृतिक विरासत का कोई सानी नहीं है। हिंदी भाषा को भारतीय संस्कृति की परिचायक और प्रतिनिधि भाषा कहना उपयुक्त होगा। सहिष्णुता हिंदी भाषा का प्रधान चरित्र है।”

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