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शरणार्थियों का हाल कोई हमसे पूछे

सारिका त्रिपाठी
लखनऊ(उत्तरप्रदेश)
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अंतरराष्ट्रीय शरणार्थी दिवस विशेष………..


जो कभी शरणार्थी नहीं रहे,
वे हैं शरणार्थी होने के
दर्द से नितांत छूछे,
शरणार्थियों का क्या हाल होता है…
कोई हमसे पूछे।

शरणार्थी नाम सुनते ही,
याद आ जाता है
१९४७ का खौफ़नाक नज़ारा,
पल भर में ही क्या हाल हुआ
अपना देश ही नहीं रहा,
जब अपना हमारा।

त्रिशंकु जैसी हो गई हालत हमारी,
न इधर की रही न उधर की…
निरपराध जनता बेचारी।

ऐसी थी हालत जनता की क्या कहें!
जैसे साँप के मुँह में फंसा मेंढक,
न निगलते बने
न उगलते बने।

समझ नहीं आता था,
क्या करें कहां जाएं!
किस पर विश्वास रखें,
किसको अपना दुखड़ा सुनाएं।

कहीं पर अपनी जाति वालों ने,
अपनी ही जाति वालों को मारा
कहीं पर दूसरी जाति वालों ने,
दूसरी जाति वालों को
छिपाकर दिया सहारा।

कहीं लोगों ने दूसरों की,
माँ-बहन-बेटी की
इज़्ज़त लूटने में कोताही नहीं की,
कहीं लोगों ने दूसरों की
माँ-बहन-बेटी की,
इज़्ज़त बचाने में देरी नहीं की।

कहीं लोगों ने अपनी ही,
माँ-बहन-बेटी को
इज़्ज़त लुटने के भय से,
बंदूक की गोली का
निशाना बनाया,
किसी ने किसी तरह
स्वयं अपने को
और, …
अपने परिवारवालों को बचाया।

हमारे अभिभावक भी थे,
वहां से निकल भागने की तैयारी में
इतने में संदेशा आया,
यहां से रेलगाड़ी में
बचने की उम्मीद से बैठे मनुष्यों की,
लाशें-ही-लाशें पहुंचीं…
भारत की फुलवारी में।

जो अच्छी किस्मत वाले थे,
वे सुरक्षित भारत पहुंच पाए
वहीं के होकर रह गए,
जहां जिसके सींग समाए।

उससे भी अच्छी अधिक किस्मत वालों ने,
वहां ज़मीन-जायदाद होने का सबूत
था या नहीं,
दावे में ज़मीन-जायदाद का
तोहफ़ा पा लिया,
मंद किस्मत वालों ने
वहां ज़मीन-जायदाद होने का सबूत
होते हुए भी,
पटरी पर रातें काटकर
पटरी पर ही सुई-बटन बेचकर…
किसी तरह निभा लिया।

कहने को बहुत कुछ है,
क्या-क्या बताएं!
भुलाकर जिसको शान से जी रहे हैं,
शिकवे-शिकायतों में
उस सुकून को क्यों गंवाएं ?

जो कभी शरणार्थी नहीं रहे,
वे हैं शरणार्थी होने के
दर्द से नितांत छूछे,
शरणार्थियों का क्या हाल होता है…
कोई हमसे पूछे॥

परिचय-सारिका त्रिपाठी का निवास उत्तर प्रदेश राज्य के नवाबी शहर लखनऊ में है। यही स्थाई निवास है। इनकी शिक्षा रसायन शास्त्र में स्नातक है। जन्मतिथि १९ नवम्बर और जन्म स्थान-धनबाद है। आपका कार्यक्षेत्र- रेडियो जॉकी का है। यह पटकथा लिखती हैं तो रेडियो जॉकी का दायित्व भी निभा रही हैं। सामाजिक गतिविधि के तहत आप झुग्गी बस्ती में बच्चों को पढ़ाती हैं। आपके लेखों का प्रकाशन अखबार में हुआ है। लेखनी का उद्देश्य- हिन्दी भाषा अच्छी लगना और भावनाओं को शब्दों का रूप देना अच्छा लगता है। कलम से सामाजिक बदलाव लाना भी आपकी कोशिश है। भाषा ज्ञान में हिन्दी,अंग्रेजी, बंगला और भोजपुरी है। सारिका जी की रुचि-संगीत एवं रचनाएँ लिखना है।

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