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समय की मांग है संयम और नैतिकता

गोवर्धन दास बिन्नाणी ‘राजा बाबू’
बीकानेर(राजस्थान)
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संयम और नैतिकता के बूते ही जीवन सुखमय तो होता ही है, साथ-साथ सम्मानजनक भी। सभी जानते हैं कि, विलासिता से अनेक अवगुण स्वत: ही अपने-आप विकसित हो जाते हैं और इनसे बचने के लिए संयम ही एक कारगर हथियार है, लेकिन हमें सुख जितना पसन्द है, उतना संयम नहीं; क्योंकि संयम के चलते हमें व्यवहार पर नियंत्रण, वाणी पर नियंत्रण, इच्छाओं पर नियंत्रण अर्थात क्रोध, लालच, द्वेष, मोह, अभिमान आदि मन की अवांछित भावनाओं पर नियंत्रण के लिए प्रयासरत रहना होगा। यदि वर्णित में से हम किसी एक को अपनाने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ होते हैं, तो बाकी सब भी हमारे में स्वत: विकसित होने लगेंगे, क्योंकि संतुलित अवस्था में रहने से संयम की पालना शुरू हो जाती है। इसलिए ही बताया गया है कि, मन का संतुलित अवस्था में रहना ही संयम है। यह माना जा सकता है कि, संयम से हमारी सोच सकारात्मक होगी ही। फलस्वरूप हमारे में बल व बुद्धि की वृद्धि होगी, क्योंकि जब हम प्रसन्नचित्त रहते हैं तो अपने-आप अंदरूनी ताकत मिलती है।
यह तो ज्ञात हो गया कि, संयम से अपार खुशियाँ व सुख सुलभ होता है लेकिन अब सवाल यह कि, संयम कैसे विकसित करें ? इसलिए सबसे पहले यह समझ लें कि, इन्द्रिय संयम से ब्रह्मचर्य विकसित होगा, वहीं वाणी के संयम से विद्वता झलकेगी और मन का संयम दोनों में सामंजस्य बैठाने में सहायक होगा, परन्तु जीवन सब तरह से सुखमय तो तभी होगा, जब हम नैतिक शिक्षा अनुसार आचरण करेंगे। इसलिए, नैतिक मूल्यों को ध्यान में रख हमें अपने आचरण में संयम बरतते हुए जीवन जीना होगा।
ध्यानार्थ कि, नैतिकता का प्रथम उद्देश्य अपने निजी हित के स्थान पर समाज के कल्याण को अधिक महत्व देना माना गया है। इसलिए, संयम और नैतिकता के चलते मनुष्य के स्वाभाविक विकार दूर होते हैं। इसके चलते मनुष्य क्षीर, गम्भीर बनता है और निर्णय लेने में गलती की सम्भावना बहुत ही कम होती है, बल्कि हम कह सकते हैं कि गलती हो पाना मुमकिन ही नहीं है।
सार यही है कि, संयम और नैतिकता के मिश्रण से-क्षमा, आत्म-नियंत्रण, चोरी न करना, पवित्रता, इन्द्रिय-संयम,
बुद्धि, विद्या, सत्य, धैर्य, क्रोध न करना
जैसे गुण स्वत: ही विकसित होंगे।
अर्थात सब पर दया करना, कभी झूठ नहीं बोलना, बड़ों का आदर करना, दुर्बलों को तंग न करना, चोरी न करना, हत्या जैसा कार्य न करना, सच बोलना, सबको समान समझते हुए उनसे प्रेम करना, सबकी मदद करना, किसी की बुराई न करना आदि कार्य अपनाते हुए जब हम जीवन जीते हैं, तो समाज में सम्मान पाते हैं और परोक्ष रूप से हम जहाँ भी रहेंगे, हमेशा भारत का गौरव बढ़ाते ही रहेंगे।