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सार्वजनिक कार्यक्रम में ‘डीजे’ मतलब मौत को निमंत्रण

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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चिंतन…

हमारे देश में ७ वार और ९ त्यौहार मनाए जाते हैं तथा देश स्वतंत्र होने से स्वच्छंदता से भरपूर है। धर्म के नाम पर इतने कट्टर हैं कि, धर्मस्थल के सामने आवाज़ बंद हो जाती है, पर जीवित इंसानों की कोई कीमत नहीं है। ऐसे ही मरणोपरांत सम्मान और इज़्ज़त मिलती है, जब वह स्वयं अपना सम्मान नहीं देख पाता है। आजकल त्योहारों में शक्ति-प्रदर्शन के साथ अत्यधिक दिखावा होता है, पर उस दौरान जो भोंडा शोर-शराबा होता है, वह मृत्यु कारक है, किन्तु इससे आयोजकों को कोई फर्क नहीं पड़ता है। कारण कि चंदा उगाही से ही कार्यक्रमों के साथ उनके भी कार्यक्रम जैसे शराब-नशा आदि करते हैं। उस कारण जिनसे चंदा लेते हैं, उनकी उन्हें परवाह नहीं होती है। कुछ सालों से मौत के जितने भी सजीव वीडियो सामने आए हैं, उनमें ज्यादातर १ चीज सामान्य है-लाउड डीजे और लाउड म्यूजिक। जो डीजे दरवाजे- खिड़कियों के शीशे तोड़ सकता है, वह नाजुक हृदय को तो आसानी से तोड़ सकता है। डीजे के स्थान पर पारंपरिक ढोल-नगाड़ों का प्रयोग हो तो सुनने में भी आनन्द आता है और आवाज भी एक सीमा में होती है।

यदि जिंदा रहना चाहते हैं, तो डीजे से दूरी बनाएं, क्योंकि डीजे (डिस्को जॉकी) की तेज आवाज और उस पर नाचते-गाते युवा अचानक हृदयाघात से मर रहे हैं। डीजे की भारी आवाज और धमक से हृदय के ऊपरी २ खानों में खून सही तरीके से नहीं पहुंच पाता है, जिससे निचले खाने का रक्त प्रवाह भी गड़बड़ा जाता है। इससे हृदयाघात का जोखिम बढ़ जाता है। इसी वजह से गुजरात में डांडिया में बजता डीजे २४ घंटे में १० लोगों की जान ले चुका है।
एक अध्ययन के अनुसार हमारे कान सन्नाटे तक की आवाज सुन सकते हैं, जो ० से ५ डेसिबल तक होती है। ७० डे. तक आवाज परेशान नहीं करती है, लेकिन इसमें ५ डे. की बढ़त से हृदयाघात और स्ट्रोक का खतरा ३४ फीसदी तक बढ़ जाता है। दरअसल, इससे दिल की धड़कनें अनियमित हो जाती हैं, जो अचानक हृदयाघात
का कारण बन सकती हैं। इसलिए, तेज आवाज से धर्म जागता है या नहीं, लेकिन आप मौत के आस-पास अवश्य टहल रहे होते हैं। धार्मिक पागलपन के माहौल में सभी धार्मिक कार्यक्रमों में डीजे पर पूर्णतः प्रतिबंध लगना चाहिए, और इसके स्थान पर पारंपरिक ढोल का प्रयोग हो।
डीजे के कारण हृदयाघात के साथ मानसिक रोगी को पागलपन का दौरा पड़ने लगता है। चूंकि, ध्वनि प्रदूषण का जनक मानसिक प्रदूषण है, इसलिए आयोजकों को डीजे हृदय रोग अस्पताल और मानसिक रुग्णालय के आस-पास बजाना चाहिए, जिससे बीमार बढ़ाने में उनका योगदान महत्वपूर्ण होगा, साथ ही आयोजकों के घरों में कोई रोगों से पीड़ित हो तो उन्हें तेज़ आवाज़ में डीजे सुनाना ही चाहिए, तब ही उनको तेज़ आवाज़ के दुष्परिणामों का अहसास होगा।
गुजरात में हुई मौत में सबसे कम उम्र का युवा १७ वर्ष का था, इसलिए डीजे सामान्य आवाज पर बजाइए, अन्यथा क्या उसके न बजने से उत्सव फीका होगा ?
उत्सव आनंद का प्रतीक हैं, पर उसके कारण किसी की गमी होना उत्सव की गरिमा नहीं बढ़ाएगा। तेज़ आवाज़ करना अपराध है और

अपराधियों को दण्डित किया जाना जरुरी है। मनोरंजन होना जरुरी है, पर वह भी मर्यादित।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।