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सिर्फ एक दिन…? ?

गंगाप्रसाद पांडे ‘भावुक’
भंगवा(उत्तरप्रदेश)
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सिर्फ आज का दिन
मित्रता के नाम,
कल से फिर वही शत्रुता
का काम,
जैसे सिर्फ महिला दिवस
पर महिला सम्मान,
बकाया दिन महिला अपमान,
जैसे मातृ दिवस पर माँ को
प्रणाम,
बकाया दिन पत्नी सम्मान,
आज हम कितने प्रगतिशील
हो गये हैं,
सिर्फ विशेष निर्दिष्ट दिवसों पर
ही विशेष भावनाओं में
बहते हैं,
शेष दिन भावना शून्य रहते हैं,
जैसे हिन्दी दिवस पर
हिन्दी सम्मान,
शेष दिन अंग्रेजी को सलाम,
स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगे का
अभिमान,
शेष दिन पड़ा तिरंगा कूड़ेदान,
ये कैसी मजबूरी है,
सच्चाई से कितनी दूरी है,
हम किश्तों में भावनाएं
प्रदर्शित करते हैं,
रोज जीते हैं
रोज मरते हैं,
क्या हम रोज माँ
का सम्मान नहीं कर सकते ???
दोस्त को दोस्त नहीं मान सकते,
क्या हमारी राष्ट्रीय भावना
मर चुकी है ??
हिन्दी प्रेम क्या एक दिन का ही है ???
ये कैसी विसंगति है,
आज की यही रंगत है,
हर तरफ आधा तीतर
आधा बटेर है,
हर तरफ हाय पैसे
के लिये अंधेर है,
माई न बप्पा,न भैय्या
न अइय्या,
सबसे बड़ा है आज
रुपय्या,
सोच वो माँ ही थी जिसने
तुझे जना,
आज तू धरा का सुख
चखने लायक बना,
वही माँ हो गयी
परायी,
ये कैसी अशुभ घड़ी
आयी ??
जब तू निज जननी
का न हुआ,
तो भारत माँ का
क्या होगा ??
अभी भी समय है
सुधर जा,
मातृ ऋण से
उऋण हो जा,
खुशी-खुशी माँ
को घर ला,
उल्लासपूर्वक
मातृ दिवस मना।

परिचय-गंगाप्रसाद पांडेय का उपनाम-भावुक है। इनकी जन्म तारीख २९ अक्टूबर १९५९ एवं जन्म स्थान- समनाभार(जिला सुल्तानपुर-उ.प्र.)है। वर्तमान और स्थाई पता जिला प्रतापगढ़(उ.प्र.)है। शहर भंगवा(प्रतापगढ़) वासी श्री पांडेय की शिक्षा-बी.एस-सी.,बी.एड.और एम.ए. (इतिहास)है। आपका कार्यक्षेत्र-दवा व्यवसाय है। सामाजिक गतिविधि के निमित्त प्राकृतिक आपदा-विपदा में बढ़-चढ़कर जन सहयोग करते हैं। इनकी लेखन विधा-हाइकु और अतुकांत विधा की कविताएं हैं। प्रकाशन में-‘कस्तूरी की तलाश'(विश्व का प्रथम रेंगा संग्रह) आ चुकी है। अन्य प्रकाशन में ‘हाइकु-मंजूषा’ राष्ट्रीय संकलन में २० हाइकु चयनित एवं प्रकाशित हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक एवं राष्ट्रीय ज्वलंत समस्याओं को उजागर करना एवं उनके निराकरण की तलाश सहित रूढ़ियों का विरोध करना है। 

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