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सिविल सेवा परीक्षा में इस बार, हिंदी माध्यम की गूंज जोरदार

हिंदी भाषा-माध्यम….

◾कृष्ण प्रकाश (अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक, फ़ोर्स वन व वी.आई.पी.सुरक्षा, महाराष्ट्र)
⚫हिन्दी माध्यम से संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में उत्तीर्ण होने वालों की संख्या में पिछले वर्ष की तुलना में दोगुनी से भी कहीं ज़्यादा बढ़ोतरी एक बेहद सुखद एहसास है। २०२३ में जारी संघ लोक सेवा आयोग के परीक्षाफल में हिंदी माध्यम के ५४ प्रत्याशियों की सफलता एक नया कीर्तिमान बन गया है। यह आयोग के इतिहास में हिंदी माध्यम का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन रहा है। इस बार ६६वीं, ८५वीं, ८९वीं, १०५ वीं और १२५ वीं स्थिति लाकर हिन्दी भाषी उम्मीदवारों ने जिस शानदार सफलता का प्रदर्शन किया है, वह निःसंदेह अभूतपूर्व है।
इन नतीजों में सबसे खास बात यह है कि, ५४ उम्मीदवारों में से २९ ने वैकल्पिक विषय के रूप में हिंदी भाषा और साहित्य लेकर यह कामयाबी हासिल की है। ५-५ उम्मीदवार ऐसे भी सफल हुए हैं, जिन्होंने इतिहास, भूगोल व राजनीति विज्ञान विषय लिया था।
साहित्य, इतिहास, भूगोल व राजनीति जैसे विषय सीधे-सीधे मानवीय, वैश्विक, राष्ट्रीय और सामाजिक परिदृश्य एवं सरोकारों से संबद्ध हैं। हिन्दी भाषा एवं साहित्य वैकल्पिक विषय रखकर बड़ी संख्या में उत्तीर्ण होना इस तथ्य को रेखांकित और आश्वस्त भी करता है कि, संवेदनशील प्रशासकों की कमी के कारण जनता और प्रशासन के बीच जो दूरी निर्मित होती है, उसे साहित्यिक संवेदना से परिपूर्ण, अनुभूति की प्रामाणिकता से संपृक्त इन नए प्रशासकों द्वारा कम किया जा सकेगा। यह सफलता राजभाषा हिन्दी की क्षमता और सार्वजनिक-सरकारी व्यवहार में उसकी उपादेयता को भी पुनर्स्थापित करती है। लोक सेवकों को बहुधा मात्र बुद्धिमत्ता की नहीं, अपितु भावप्रवणता, परिपक्वता, सहनशीलता, संवेदनशीलता, दृढ़ता, निष्पक्षता की उससे भी कहीं अधिक आवश्यकता होती है। और साहित्य से अनुस्यूत लोक सेवक इन मानदंडों पर बहुत हद तक खरे उतर सकते हैं, इसमें संदेह नहीं। जनसंवाद प्रशासन को सुचारू रूप से चलाने हेतु आज के सामासिक किंतु विरोधाभासी घटकों के कारण एक अनिवार्य शर्त बन गई है। इस दिशा में भी हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के माध्यम से आए हुए जनसेवकों से भारतीयों से प्रशासन को जनोन्मुख बनाने में सहायता मिलेगी। यहाँ एक बात को अधोरेखित करना आवश्यक जान पड़ता है कि, नागरिक सेवकों से ये अपेक्षित होता है कि जड़ हो गई समस्याओं का अमुलाग्र निराकरण करें, रूढ़ हो गई जटिल पद्धतियों का सरलीकरण करें, अनुपयोगी हो चुके नियमों, अधिनियमों, सरकारी परिपत्रों से निज़ात दिलाएं और नित नए उभरते आयामों पर नए प्रभावी सुझावों का प्रणयन करें। और ऐसा समझने, सोचने, शुरुआत करने के लिए अभिजात्य नहीं, बल्कि सामान्य अभिरुचियों की परख और पहचान हिन्दी और अन्य स्थानीय भारतीय भाषाओं के माध्यम से बेहतर तरीक़े से हो सकती है। अस्तु; इन होनहार नवनिहाल जनसेवकों को मेरी शतशः शुभकामनाएँ, लेकिन इस संदेश के साथ कि…-

“आँख में हो स्वप्न लेकिन पाँव धरती पर टिके हों! ”

◾अतुल कुमार माथुर (सेवा. पुलिस महानिदेशक, जयपुर, राजस्थान)
⚫यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ है कि इस वर्ष संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा परीक्षा में हिंदी माध्यम वाले परीक्षार्थियों के उत्तीर्ण होने का प्रतिशत बहुत ही अच्छा है। अधिक से अधिक लोग हिंदी या अन्य भारतीय भाषाओं को परीक्षा का माध्यम बनाकर आगे बढ़ रहे हैं। यह अपनी भाषाओं का ही नहीं, अपने देश का भी सम्मान है। आशा है कि यह सिलसिला यूँ ही आगे भी जारी रहेगा। आशा है कि भविष्य में और अधिक परीक्षार्थी भारतीय भाषाओं को परीक्षा का माध्यम बनाएँगे। इससे इन भाषाओं में अधिक पुस्तकें उपलब्ध होने लगेंगी और प्रशासन में भारतीय भाषाओं को जानने और उपयोग करने वालों की संख्या बढ़ेगी। इन भाषाओं के प्रयोग में खासकर राजकीय कार्यों में बढ़ोतरी होगी और उनकी प्रतिष्ठा भी बढ़ेगी।

आयोग के परीक्षा परिणाम के माध्यम से भारतीय भाषाएँ प्रशासन से जनता की नजदीकी बढ़ाएँगी। इसके लिए मैं आपको और सभी साथियों द्वारा किए गए प्रयास सफल होने पर बहुत-बहुत बधाई देता हूँ। अपनी भाषा की सेवा केवल देश की ही नहीं, अपनी माँ की सेवा करने के समतुल्य है।

◾अतुल कोठारी (राष्ट्रीय सचिव, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, दिल्ली)

⚫संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा परीक्षा में हिंदी माध्यम के ५४ उम्मीदवार सफल हुए हैं। इस परीक्षा के इतिहास में यह प्रथम बार हुआ है। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास की ओर से इन सभी का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ। आशा करते हैं कि, यह सब महानुभाव भविष्य में सारा प्रशासनिक कार्य हिंदी अथवा वहाँ की राजभाषा में करने का प्रयास करेंगे।

◾निर्मल कुमार पाटौदी (इंदौर, मप्र)

⚫हिंदी माध्यम से भारतीय सेवाओं में आए को हिन्दी में काम करने की छूट मिलना संभव नहीं है। सभी जगह विराजित उच्च विभाग प्रमुख अंग्रेज़ी के अतिरिक्त हिंदी में काम न करते हैं और न करने देते हैं। इन शिखर पर विराजमान अधिकारियों को हिंदी में कामकाज करने के लिए कोई नियम या अनिवार्यता अथवा बाध्यता नहीं है। ऐसी दशा में नए चयनित हिंदी में काम करना भी चाहेंगे, तो उनके सामने वरिष्ठ अधिकारियों की लोहे की अभेद दीवार रहेगी। इस कठिनाई अथवा बाध्यता को मोदी जी तक सामाजिक माध्यम से पहुँचाने का अभियान चलाया जाना आवश्यक है। पहल वैश्विक हिंदी सम्मेलन समूह के सदस्यों की ओर से होना चाहिए। पहल करने वालों की प्रतीक्षा है।

◾रामवृक्ष सिंह (महाप्रबंधक, सिडबी, लखनऊ, उप्र)

⚫एक अध्ययन किया जाए। जो अभ्यर्थी हिन्दी माध्यम से अखिल भारतीय सेवाओं में आए हैं, वे प्रशिक्षण के बाद तैनाती पाने पर कितना काम हिन्दी माध्यम से करते हैं ? यदि वे हिन्दी में काम नहीं करते तो उनके परीक्षा माध्यम का उत्सव क्यों मनाया जाए ? पिछले कुछ वर्षों में हिन्दी माध्यम से आए अधिकारियों के हिन्दी कार्य विषयक आँकड़े व प्रमाण ‘सूचना का अधिकार’ के अंतर्गत लिए जा सकते हैं। एक ध्रुव सिद्धांत है-ज्ञान हो, पर रुझान ही न हो तो कोई हिन्दी में काम नहीं करता। हाँ, रुझान हो तो आदमी अपेक्षित ज्ञान अर्जित करके काम करता है।

◾डॉ. मोतीलाल गुप्ता ‘आदित्य’ (निदेशक, वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई, महाराष्ट्र)
⚫यह सही बात है कि सिविल सेवा परीक्षा हिंदी माध्यम से किसी राज्य की भाषा के माध्यम से अथवा हिंदी अथवा क्षेत्रीय भाषा का साहित्य को लेकर सफल होने वाले अनेक अभ्यर्थी नियुक्ति के पश्चात जनभाषा यानी अपने संवर्ग की भाषा और संघ की राजभाषा को भूल जाते हैं, या भुला देते हैं। पता नहीं, कहीं कोई हीन ग्रंथी भी होती है या अन्य कोई विवशता, जिसके चलते वे पाला बदलकर अंग्रेजी के पक्षधर बन जाते हैं। हालांकि, कुछ अपवादों अथवा प्रशासन में अंग्रेजी के दबदबे के अतिरिक्त कोई समस्या नहीं दिखती। इस प्रवृत्ति को क्या कहा जाए आप विचार कर सकते हैं, जबकि इसके विपरीत अंग्रेजी भाषा से आने वाले भी कुछ अधिकारी ऐसे भी हैं जो जनता की भाषाओं को अपनाते हैं और यथासंभव अधिक से अधिक क्षेत्रीय और संघ की राजभाषा को अपनाते हैं।
मुझे लगता है कि, हिंदी या अन्य किसी भारतीय भाषा माध्यम से उत्तीर्ण होने वाले विद्यार्थियों को प्रारंभ से ही इस बात के लिए प्रेरित किया जाए कि, सेवा में आने के बाद वे प्रशासन और जनसंवाद में जनभाषा यानी भारतीय भाषाओं का अधिक से अधिक प्रयोग करें। अपने संवर्ग में रहते हुए राज्य की राजभाषा और संघ में रहते हुए संघ की राजभाषा का। मुझे लगता है कि, सरकार, जनतांत्रिक अधिकारों तथा भाषा सेवी संस्थाओं को इस पर कार्य योजना बनानी चाहिए। संभव हो तो सरकार द्वारा इसके लिए कुछ दिशा-निर्देश भी जारी किए जाएँ। मुझे आशा है कि, अब नई पीढ़ी के भारतीय भाषा माध्यम से आने वाले अभ्यर्थी जनसेवा के लिए जनभाषा को अधिकाधिक ढंग से अपनाएँगे और साथी वरिष्ठ अधिकारियों और अधीनस्थ अधिकारियों को भी जनभाषा प्रयोग के लिए प्रेरित करेंगे। भारतीय भाषाओं के माध्यम से सफल सभी प्रत्याशियों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ।

(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई)

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