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स्वाधीन भारत बनाम रक्ष्य वचन पर्व

अवधेश कुमार ‘अवध’
मेघालय
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थाल सजाकर बहन कह रही,आज बँधा लो राखी।
इस राखी में छुपी हुई है,अरमानों की साखी॥
चंदन रोरी अक्षत मिसरी,आकुल कच्चे-धागे।
अगर नहीं आए तो समझो,हम हैं बहुत अभागे॥

क्या सरहद से एक दिवस की,छुट्टी ना मिल पायी ?
अथवा कोई और वजह है,मुझे बता दो भाई ?
अब आँखों को चैन नहीं है और न दिल को राहत।
एक बार बस आकर भइया,पूरी कर दो चाहत॥

अहा! परम सौभाग्य कई जन,इसी ओर हैं आते।
रक्षाबंधन के अवसर पर,भारत की जय गाते॥
और साथ में ओढ़ तिरंगा,मुस्काता है भाई।
एक साथ मेरे सम्मुख हैं,लाखों बढ़ी कलाई॥

बरस रहा आँखों से पानी,कुछ भी समझ न आये।
किसको बाँधूं,किसको छोड़ूं,कोई राह बताए ?
उसी वक्त बहनों की टोली,आई मेरे द्वारे।
सोया भाई गर्वित होकर,सबकी ओर निहारे॥

अब राखी की कमी नहीं है और न कम हैं भाई।
अब लौटेगी नहीं यहाँ से,कोई रिक्त कलाई॥
लेकिन मेरे अरमानों को, कौन करेगा पूरा ?
राखी के इस महापर्व में,वचन रहे न अधूरा॥

गुमसुम आँखों को पढ़ करके,बोल उठे सब भाई।
पहले वचन सुनाओ बहनों,कुर्बानी ऋतु आई॥
बहनों ने समवेत स्वरों से,कहा सुनो रे वीरा!
“धरती पर कोई भी नारी,न हो दुखी अधीरा॥”

दु:शासन की वक्र नजर से,छलनी ना हो नारी।
रक्षा करना चक्र उठाकर,केशव कृष्ण मुरारी॥
इसी वचन के साथ चलो सब,राखी पर्व मनायें।
मानवता के हेतु गर्व से,नाते-धर्म निभायें॥

नारी का सम्मान जगत में,होना बहुत जरूरी।
दुखी ना रहे कोई नारी,ना हो अब मजबूरी॥
भाई की कुर्बानी पर तब,होगा असली तर्पण।
‘अवध’ देश की हर नारी रक्षार्थ वीर हो अर्पण॥

परिचय-अवधेश कुमार विक्रम शाह का साहित्यिक नाम ‘अवध’ है। आपका स्थाई पता मैढ़ी,चन्दौली(उत्तर प्रदेश) है, परंतु कार्यक्षेत्र की वजह से गुवाहाटी (असम)में हैं। जन्मतिथि पन्द्रह जनवरी सन् उन्नीस सौ चौहत्तर है। आपके आदर्श -संत कबीर,दिनकर व निराला हैं। स्नातकोत्तर (हिन्दी व अर्थशास्त्र),बी. एड.,बी.टेक (सिविल),पत्रकारिता व विद्युत में डिप्लोमा की शिक्षा प्राप्त श्री शाह का मेघालय में व्यवसाय (सिविल अभियंता)है। रचनात्मकता की दृष्टि से ऑल इंडिया रेडियो पर काव्य पाठ व परिचर्चा का प्रसारण,दूरदर्शन वाराणसी पर काव्य पाठ,दूरदर्शन गुवाहाटी पर साक्षात्कार-काव्यपाठ आपके खाते में उपलब्धि है। आप कई साहित्यिक संस्थाओं के सदस्य,प्रभारी और अध्यक्ष के साथ ही सामाजिक मीडिया में समूहों के संचालक भी हैं। संपादन में साहित्य धरोहर,सावन के झूले एवं कुंज निनाद आदि में आपका योगदान है। आपने समीक्षा(श्रद्धार्घ,अमर्त्य,दीपिका एक कशिश आदि) की है तो साक्षात्कार( श्रीमती वाणी बरठाकुर ‘विभा’ एवं सुश्री शैल श्लेषा द्वारा)भी दिए हैं। शोध परक लेख लिखे हैं तो साझा संग्रह(कवियों की मधुशाला,नूर ए ग़ज़ल,सखी साहित्य आदि) भी आए हैं। अभी एक संग्रह प्रकाशनाधीन है। लेखनी के लिए आपको विभिन्न साहित्य संस्थानों द्वारा सम्मानित-पुरस्कृत किया गया है। इसी कड़ी में विविध पत्र-पत्रिकाओं में अनवरत प्रकाशन जारी है। अवधेश जी की सृजन विधा-गद्य व काव्य की समस्त प्रचलित विधाएं हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी भाषा एवं साहित्य के प्रति जनमानस में अनुराग व सम्मान जगाना तथा पूर्वोत्तर व दक्षिण भारत में हिन्दी को सम्पर्क भाषा से जनभाषा बनाना है। 

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