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कृष्ण

वन्दना पुणताम्बेकर
इंदौर (मध्यप्रदेश)
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जन्माष्टमी विशेष……….
कृष्ण एक तुम ही थे,
जिसने राधा के दर्द को समझा।
राम मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाये,
पर सीता की पीर को ना समझ पाये।
मीरा की पीर भी किसी ने ना जानी,
वह भी तो थी,कृष्ण की दीवानी।
लक्ष्मण को भाया भाई का साथ,
ऊर्वशी की तड़प उन्होंने कहाँ जानी।
यदा-यदा ही धर्मस्य का,
जब-जब आव्हान हुआ।
द्रोपदी के लिए कृष्ण दौड़े आये,
युधिष्ठिर ये बात कहां जान पाये।
युगों-युगों से नारी अबला ही कहलाई,
कोई नहीं मिला कृष्ण-सा मीत,कृष्ण-सा भाई।
नारी की भावना जिसने क्षितिज से जानी,
युगों-युगों तक कृष्ण की महिमा सबने मानी।
प्रेम त्याग किया कृष्ण ने,
राधा,मीरा तभी तो थी कृष्ण की दीवानी।
कृष्ण से अच्छी जगत की महिमा किसी ने ना जानी,
युगों-युगों तक याद रहेगी,श्री कृष्ण की वाणी।
नारी सम्मान में उनकी गाथा,
हम सबने जानी॥

परिचय: वन्दना पुणतांबेकर का स्थाई निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। इनका जन्म स्थान ग्वालियर(म.प्र.)और जन्म तारीख ५ सितम्बर १९७० है। इंदौर जिला निवासी वंदना जी की शिक्षा-एम.ए.(समाज शास्त्र),फैशन डिजाईनिंग और आई म्यूज-सितार है। आप कार्यक्षेत्र में गृहिणी हैं। सामाजिक गतिविधियों के निमित्त आप सेवाभारती से जुड़ी हैं। लेखन विधा-कहानी,हायकु तथा कविता है। अखबारों और पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हुई हैं,जिसमें बड़ी कहानियां सहित लघुकथाएं भी शामिल हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-रचनात्मक लेखन कार्य में रुचि एवं भावनात्मक कहानियों से महिला मन की व्यथा को जन-जन तक पहुँचाने का प्रयास है। प्रेरणा पुंज के रुप में मुंशी प्रेमचंद जी ओर महादेवी वर्मा हैं। इनकी अभिरुचि-गायन व लेखन में है।

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