डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)
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रात दिवस रत खेत में,लघुकिसान कर काम।
सुविधा जो सरकार दी,उन्हें मिले न दामll
रैयत जो हैं खेत के,उठा रहे हैं लाभ।
कामगार मज़बूर हैं,आशा में अरुणाभll
नेता जो किसान आज,सुख-सुविधा से लैस।
मर्सिडीज में घूमते,ऋण लेते हैं कैशll
खुले चरण तन चीर बिन,रहे शीत बरसात।
आग उगलती ग्रीष्म जब,लघु किसान अनुतापll
क्षतविरत शिक्षाविहीन,भौतिक सुख से दूर।
जीवनदाता आज तक,अन्न-अन्न मज़बूरll
हलधर है सुकीर्तिफलक,धरा हुई अभिराम।
अन्नपूर्णा जिससे बनी,बदहाली की शामll
सब किसान के नाम पर,राजनीति कर लूटl
मुफ़्तख़ोर का पाठ दे,ठगते हैं दे छूटll
लघुकर कृषक वजूद क्या,जो लेंगे वे कर्ज।
खाने के लाले पड़े,कर्ज चुका वे फ़र्जll
लूटा है नेता यहाँ,खेल कृषक का खेल।
ऋण माफ़ लॉलिपॉप दे,लूटे कर गठमेलll
बड़े कृषक में आज तक,न ख़ुदकशी का केश।
आत्महनन बस वे करे,भूखे रह ऋण शेषll
मानसून की ताक में,आशान्वित निशि रैन।
उमड़ रही काली घटा,चमक कृषक हो नैनll
दीन-दुःखी आहत हृदय,जय किसान बेहाल।
धोखे से कुछ भीख पा,समझे ख़ुद ख़ुशहालll
कृषि प्रधान भारत बना,अन्न कोष परिपूर्ण।
बाढ़ ग्रीष्म शीताकुलित,कृषक मनोरथ चूर्णll
परिपालक संसार का,निर्धारक जो देश।
आर्थिक मानक जो वतन,वही सहे इह क्लेशll
राजनीति दलदल फँसे,निकले जभी किसान।
बीज खाद सिंचन मिले,पूरण हो अरमानll
सही मोल उत्पाद का,मिले सदा सम्मान।
संसाधन सरकार का,मिले बचे अभिमानll
अन्नदान करता किसान,सब-कुछ तज निज चैन।
कवि निकुंज
करता नमन,साश्रु पूर्ण नित नैनll
जय जवान सीमान्त पर,जाग्रत नित बलिदान।
जय किसान करता सबल,अन्नदान दे ज़ानll
कृषक धरा शस्य श्यामला,नवपादप नवरंग।
सुखद शान्त विपदा रहित,चारु सुखद मकरंदll
राष्ट्र समुन्नत हो तभी,उन्नत हो विज्ञान।
अमन प्रेम सदभावना,दें किसान सम्मानll
परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥