अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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बचाओ
प्रकृति अपनी
रोना पड़ेगा फिर
बात समझो
अभी।
अमर
आज तक
हुआ क्या कोई!
कर लो
सदकार्य।
लाचारी
तोड़ती है
इंसानियत को अक्सर
बात कड़वी
सच।
मौसम
भा गया
आज दिल को
क्या करूं
मैं ?
बढ़ना
आसान नहीं
है बड़ा कठिन
अपनों से
लड़ना॥