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स्त्रियों के लिए एक बेहतर समाज बनाने की चुनौती को स्वीकारे पुरुष समाज

डॉ. स्वयंभू शलभ
रक्सौल (बिहार)

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बीते दिनों हैदराबाद में जिस प्रकार एक संभ्रांत महिला पशु चिकित्सक के साथ हैवानियत की गई,उसे सुनकर हर किसी की रूह कांप गई…इस नृशंस घटना ने एक बार फिर पूरे देश को झकझोर दिया…। देश में बहुत कुछ बदला,लेकिन लड़कियों के लिए असुरक्षा का वातावरण नहीं बदला…। देश में भौतिक विकास के आँकड़ों पर गौर किया गया,पर समाज में पनपते मनोरोगियों की वृद्धि पर चिंता नहीं की गई…। २०१२ की ‘निर्भया’ सामूहिक दुष्कर्म की दिल दहला देने वाली घटना को हम शायद ही भूल पाए हों…। दिल्ली की उस वारदात ने भी पूरे देश को हिला दिया था…। देश के हर हिस्से में इस घटना को लेकर गुस्सा देखने को मिला…लोग सड़क पर उतरे…अपने-अपने तरीके से अपना दुःख और आक्रोश व्यक्त किया तथा उस लड़की की सलामती की दुआएं मांगी…।थोड़े दिनों के लिए उस लड़की का दर्द मानो हरेक देशवासी का दर्द बन गया…। लगा कि इस देश में अब लड़कियों के लिए असुरक्षा का वातावरण खत्म हो जाएगा,लेकिन कुछ नहीं बदला…। इस घटना के साथ भी हम सबने जुड़ाव महसूस किया था,क्योंकि यह खबर लगातार सोशल मीडिया में छायी रही…जबकि ऐसी कितनी ही घटनाएं हर रोज घटित होती हैं,जो इस तरह चर्चा में नहीं आतीं…जिनकी खबर नहीं बनती,लेकिन यह आँकड़े भयभीत करते हैं…। छेड़छाड़,जबरदस्ती,घरेलू हिंसा और बलात्कार के अधिकांश मामले लोक-लाज और समाज के भय के कारण दबा दिए जाते हैं…। हमारा सामाजिक परिवेश और कानून व्यवस्था के प्रति अविश्वास ऐसी घटनाओं को चुपचाप सहन करने के लिए मजबूर कर देता है…। इस घटना के ६ साल बाद ‘आसिफा’ को लेकर भी फिर शोर-शराबा हुआ…। इस बार यह जघन्य घटना एक मासूम बच्ची के साथ हुई,जिसे जाति,बिरादरी और धर्म में फर्क तक पता नहीं था…। एक बार फिर टी.वी. पर लोग बहस में उलझे…कुछ लोगों ने गुनहगारों को बचाने के लिए आवाज उठाई…कुछ लोगों ने उस मासूम के लिए इंसाफ की मांग की…यह सब भी कुछ दिन चला…। कुछ ही दिनों में कोई दूसरी सनसनीखेज खबर आ गई और ये लोग नई बहस में उलझ गए…। दो हफ्ते तक जिंदगी से जंग लड़ने के बाद निर्भया की मौत हो गई थी…आसिफा को भी निर्मम तरीके से मार दिया गया…,और अब ‘दिशा’ भी इंसानी जानवरों की भेंट चढ़ गई…। ऐसी मौत किसी एक बेबस इंसान की मौत नहीं,बल्कि व्यवस्था पर देश के भरोसे और विश्वास की मौत होती है…। सभ्य समाज में जीने का दावा करने वाले हरेक इंसान की मौत होती है…मानवता को तार-तार करने वाली ऐसी घटनाएं सरकार और पुलिस प्रशासन के साथ समाज को भी कठघरे में खड़ा करती हैं…। प्रताड़ना से जुड़े ऐसे अपराधों के लिए सख्त कानून बनाये जाने,नाबालिग के साथ दुष्कर्म पर फाँसी की सजा का प्रावधान किये जाने, फास्ट ट्रैक कोर्ट की संख्या बढ़ाकर पीड़िता को शीघ्र न्याय और अपराधी को सजा दिलाए जाने,ऐसे मामलों की सुनवाई महिला न्यायाधीश द्वारा कराए जाने,पीड़ित महिला के बयान के शपथ को प्रामाणिक सबूत मानकर प्रति परीक्षण की प्रक्रिया को खत्म करने और ऐसी घटनाओं में संलिप्त व्यक्तियों की पहचान सार्वजनिक किए जाने की दिशा में कुछ कदम तो सरकार ने उठाए,लेकिन बहुत कुछ है जो करना बाकी है…और वह सब कुछ समाज के लोगों को मिलकर करना होगा…। पुरुष समाज को स्त्रियों के लिए एक बेहतर समाज बनाने की चुनौती को स्वीकारना करना ही होगा…। जब तक देश के किसी भी कोने में किसी भी बेटी के सामने भय का यह साया बना रहेगा,तब तक हम एक सभ्य समाज में जीने का दावा नहीं कर सकते…। बेटियों के लिए भी यह जरूरी हो गया है कि, वे आत्मरक्षा के तरीके को सीखें…,इसके लिए माँ-बाप बचपन से ही उन्हें प्रोत्साहित करें…। आज जरूरत ‘कैंडल मार्च’ निकालने की नहीं,बल्कि कुछ ऐसा काम करने की है जो बेटियों और महिलाओं को तन और मन से मजबूत बनाएं..उनका आत्मसम्मान बढ़ाएं, …और यही उन दिवंगत बेटियों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी…।

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