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आह विवाह! वाह विवाह…

राजकुमार अरोड़ा ‘गाइड’
बहादुरगढ़(हरियाणा)
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‘शादी वह लड्डू,जो खाये वो पछताये, जो न खाये, वो भी पछताये’, ‘शादी न बाबा न,शादी तो बर्बादी है,खो जाती आज़ादी है’, ‘आत्महत्या करने की हिम्मत न जुटा सका,तो शादी कर ली’,
पिता जी,क्या गधे भी शादी करते हैं, “हाँ बेटा,गधे ही तो शादी करते हैं”, “मन शान्ति कब महसूस करता है,जब शांति मायके में होती है”, “शादी तो उम्रकैद है, जिंदगीभर की हथकड़ी,सब कुछ भूले, बस याद रही,नून तेल लकड़ी”, “मेरे तो कर्म ही फूट गए,तुमसे शादी करके,मैं भी तो गले पड़ा ढोल ही बजा रहा हूँ”,”पत्नी वही,जो पति पर तनी रहे और पति बेचारा पत्ता बन बस फड़-फड़ करता रहे”,”हसबैंड का अर्थ है,जो हँसते हँसते बजता रहे,बजना तो उसे है ही, बज कर ही मजे का जीवन जी लो,क्या बुराई है”, “शादी को लड़की का दूसरा जन्म कहते हैं,पर लड़के के लिये तो तीसरा जन्म हो जाता है,वह माँ की तरफ जाये तो पत्नी कहे,माँ का लाड़ला,पिछलग्गू और पत्नी की तरफदारी करे तो,जोरू का गुलाम फतवा मिल जाये”, “विवाह के बाद का जीवन उस तालाब जैसा,ऊपर तो सुंदर कमल का फूल,पर नीचे गहराई का जाल बना बबूल,एक बार फंसे तो
गये निकलना भूल”, “शादी तो पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही गलती है,फिर भी क्या आप शादी से बच पाएंगे”…जी हाँ,
आज हर लड़का-लड़की युवावस्था में आते ही सपनों का संसार बुनने लगते हैं। माँ-बाप आस लगाये रहते हैं कि बेटा बहू लायेगा,हमारी सेवा करेगी,बेटा बुढ़ापे में सहारा बनेगा ,पर आज चलन तो ऐसा है,माँ बाप चार बच्चे पाल सकते हैं,पर चार बच्चे माँ-बाप को नहीं पाल सकते,पर कुछ अपवाद भी हैं,और यही तो सुख व सकून देते हैं,और यही तो विवाह वाह-वाह है! आसमान से उतरा मीठा सन्देश है।
“शादी के बाद की चुहलबाजी भी मर्यादा में हो तो जीवन में नया रंग भर देती है”,”जो विवाह से भयभीत हो कर पीछे हटता है,वह उसी के समान है,जो युद्धभूमि से पलायन करता है”, “विवाह स्त्री पुरूष के आपसी अधिकार भाव का नाम है”, “विवाह जीवन एक तपोभूमि है,सहनशीलता व सयंम खो कर इसमें कोई सुखी नहीं रह सकता”,
“विवाह के अनेक दुखड़े हैं,पर कुँआरे रहने का भी कोई सुख नहीं”, “विवाह अवश्य करना चाहिए,अच्छी पत्नी
मिलेगी तो सुखी हो जाओगे,बुरी मिली तो तत्वज्ञानी बन जाओगे,ये भी क्या बुरा है!”,”परस्पर मधुर व्यवहार हो तो जिंदगी गुलाब जामुन की तरह मिठास से भरी लगती है”,”मनमुटाव नित्य प्रति की बात हो जाये तो समय बिताना गुलाब के काँटों-सा लगता है और जिंदगी जामुन की तरह खट्टी”,”विवाह हानिकारक नहीं है,केवल वह कमजोरी हानिकारक है,जो इस जीवन में अधिकार जमा लेती है”,”एक अच्छी महिला से शादी जीवन के झंझावात में बंदरगाह है और बुरी महिला से शादी बंदरगाह में ही झंझावात है”,”विवाह प्रेम की वह व्यवस्था है जो हमारी शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक शक्तियों के विकास का द्योतक है”,”विवाह एक आवश्यक बुराई है,मन की अच्छाई है, यथार्थ के धरातल पर आपसी समझौता ही जीवन की सच्चाई है”,”विवाह की लोकप्रियता इसी में है कि वह सबसे अधिक आनंद का,सबसे अधिक अवसर से मेल कराता है।”
शादी-विवाह-ब्याह-गठबंधन,यह सब आकाश में पहले से बन कर आते हैं। इसी से पूर्णता आती है,बस जरूरत है परस्पर एक-दूसरे को अधूरा न समझने की,न अधूरा साबित करने की।फिर देखिए आप कह उठेंगें-‘वाह विवाह! वाह विवाह!’ और चाहेंगे-‘चट मंगनी,पट ब्याह।”

परिचय–राजकुमार अरोड़ा का साहित्यिक उपनाम `गाइड` हैl जन्म स्थान-भिवानी (हरियाणा) हैl आपका स्थाई बसेरा वर्तमान में बहादुरगढ़ (जिला झज्जर)स्थित सेक्टर २ में हैl हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री अरोड़ा की पूर्ण शिक्षा-एम.ए.(हिंदी) हैl आपका कार्यक्षेत्र-बैंक(२०१७ में सेवानिवृत्त)रहा हैl सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत-अध्यक्ष लियो क्लब सहित कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़ाव हैl आपकी लेखन विधा-कविता,गीत,निबन्ध,लघुकथा, कहानी और लेख हैl १९७० से अनवरत लेखन में सक्रिय `गाइड` की मंच संचालन, कवि सम्मेलन व गोष्ठियों में निरंतर भागीदारी हैl प्रकाशन के अंतर्गत काव्य संग्रह ‘खिलते फूल’,`उभरती कलियाँ`,`रंगे बहार`,`जश्ने बहार` संकलन प्रकाशित है तो १९७८ से १९८१ तक पाक्षिक पत्रिका का गौरवमयी प्रकाशन तथा दूसरी पत्रिका का भी समय-समय पर प्रकाशन आपके खाते में है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। प्राप्त सम्मान पुरस्कार में आपको २०१२ में भरतपुर में कवि सम्मेलन में `काव्य गौरव’ सम्मान और २०१९ में ‘आँचलिक साहित्य विभूषण’ सम्मान मिला हैl इनकी विशेष उपलब्धि-२०१७ में काव्य संग्रह ‘मुठ्ठी भर एहसास’ प्रकाशित होना तथा बैंक द्वारा लोकार्पण करना है। राजकुमार अरोड़ा की लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा से अथाह लगाव के कारण विभिन्न कार्यक्रमों विचार गोष्ठी-सम्मेलनों का समय समय पर आयोजन करना हैl आपके पसंदीदा हिंदी लेखक-अशोक चक्रधर,राजेन्द्र राजन, ज्ञानप्रकाश विवेक एवं डॉ. मधुकांत हैंl प्रेरणापुंज-साहित्यिक गुरु डॉ. स्व. पदमश्री गोपालप्रसाद व्यास हैं। श्री अरोड़ा की विशेषज्ञता-विचार मन में आते ही उसे कविता या मुक्तक रूप में मूर्त रूप देना है। देश- विदेश के प्रति आपके विचार-“विविधता व अनेकरूपता से परिपूर्ण अपना भारत सांस्कृतिक,धार्मिक,सामाजिक,साहित्यिक, आर्थिक, राजनीतिक रूप में अतुल्य,अनुपम, बेजोड़ है,तो विदेशों में आडम्बर अधिक, वास्तविकता कम एवं शालीनता तो बहुत ही कम है।

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