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अब बरस भी जाओ…

डॉ. वंदना मिश्र ‘मोहिनी’
इन्दौर(मध्यप्रदेश)
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बादल का एक टुकड़ा मेरी खिड़की से गुजरा,
कभी छुपता,कभी बिखरता
हवा से अठखेलियाँ करता,
मेरे आँगन में आ रुका।
खिड़की पर टिकी रात धीरे से झपकियां लेने लगी,
ऐसा लगा इस बदली से डर कर चाँद
किसी पेड़ की शाख पर जा छुपा हो…
क्यों इतना इतराते हो,
या फिर इस चाँद से कतराते हो…l
कभी सहम कर,कभी डर कर,थम कर,
इठलाती ये बरसात
अल्हड़-सी दरवाजे पर खड़ी है,
बचपन के सपनों-सी नजर आती हो…l
रे बदला मौसम,नेह है,प्यास है,
अब बरस भी जाओ…
तुलसी,जस्मिन,रजनीगंधा,कनेर सब उदास हैं,
इस आँगन को कब से तुम्हारी ही आस है।
यह आषाढ़ मास है,या गहरी दीर्घ वेदना…
हे मेघा इसको तुम्हारी ही आस है
अब बरस भी जाओ…,
अब बरस भी जाओ…ll

परिचय-डॉ. वंदना मिश्र का वर्तमान और स्थाई निवास मध्यप्रदेश के साहित्यिक जिले इन्दौर में है। उपनाम ‘मोहिनी’ से लेखन में सक्रिय डॉ. मिश्र की जन्म तारीख ४ अक्टूबर १९७२ और जन्म स्थान-भोपाल है। हिंदी का भाषा ज्ञान रखने वाली डॉ. मिश्र ने एम.ए. (हिन्दी),एम.फिल.(हिन्दी)व एम.एड.सहित पी-एच.डी. की शिक्षा ली है। आपका कार्य क्षेत्र-शिक्षण(नौकरी)है। लेखन विधा-कविता, लघुकथा और लेख है। आपकी रचनाओं का प्रकाशन कुछ पत्रिकाओं ओर समाचार पत्र में हुआ है। इनको ‘श्रेष्ठ शिक्षक’ सम्मान मिला है। आप ब्लॉग पर भी लिखती हैं। लेखनी का उद्देश्य-समाज की वर्तमान पृष्ठभूमि पर लिखना और समझना है। अम्रता प्रीतम को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाली ‘मोहिनी’ के प्रेरणापुंज-कृष्ण हैं। आपकी विशेषज्ञता-दूसरों को मदद करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिन्दी की पताका पूरे विश्व में लहराए।” डॉ. मिश्र का जीवन लक्ष्य-अच्छी पुस्तकें लिखना है।

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