मनोहरी पावन सावनी मन औ आँगन
डॉ. आशा गुप्ता ‘श्रेया’जमशेदपुर (झारखण्ड)******************************************* पावन सावन-मन का आँगन... सावन! श्रावण! श्रावण ? ओ अच्छा सावन। क्या सावन ? हाँ जी, मैं सावन की ही बात कर रही हूँ। और…
डॉ. आशा गुप्ता ‘श्रेया’जमशेदपुर (झारखण्ड)******************************************* पावन सावन-मन का आँगन... सावन! श्रावण! श्रावण ? ओ अच्छा सावन। क्या सावन ? हाँ जी, मैं सावन की ही बात कर रही हूँ। और…
उमेशचन्द यादवबलिया (उत्तरप्रदेश) *************************************************** पावन सावन-मन का आँगन... रिमझिम-रिमझिम सावन बरसे,पिया मिलन को जियरा तरसेमैं तो बनी योगिन के जैसे,छोड़ पिया गए जब घर से।रिमझिम-रिमझिम सावन बरसे,पिया मिलन को जियरा तरसे॥…
दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)******************************************* मणिपुर की घटना,घटना नहीं, कलंक हैतृष्णा नहीं दरिंदगी है,एक ऐसी दरिंदगी जो-मानवता को शर्मसार करती है। बदले की भावना में मनुष्य,इतना नीचे गिर सकता…
डॉ.अनुज प्रभातअररिया ( बिहार )**************************** पावन सावन-मन का आँगन.... सावन का नाम सुनते ही मन के भीतर कई तरह की तरंगें अंगड़ाईयां लेने लगती हैं। मन मस्ती में झूम उठता…
रत्ना बापुलीलखनऊ (उत्तरप्रदेश)***************************************** हे देवों के देव महादेव, करो मेरा नमन स्वीकार,दे दो आशीष मुझे ऐसा, महिमा लिखूँ मैं अपरम्पार। हे सृष्टिकर्ता महादेव, गुण गाऊँ मैं बारम्बार,रचित हुआ है तेरे…
डॉ.अशोकपटना(बिहार)********************************** उम्र की अपनी फितरत है,वह किसी से गुफ्तगू नहीं करती हैकिसी ख़ास से भी,मशवरा नहीं करती हैसांझ की आहटों से ही,कुछ-कुछ पता चलता हैख्वाहिशों को अब पंख न मिलें,की…
संजय सिंह ‘चन्दन’धनबाद (झारखंड )******************************** नर-नारी अब एक समान,दोनों के ही एक परिधान,सिंदूर न टीके का ध्यान,दिन और रात एक समान। बदला जीवन विधि-विधान,माता-पिता को है संज्ञानविश्व में चलन चढ़ा…
डॉ. श्राबनी चक्रवर्तीबिलासपुर (छतीसगढ़)************************************************* क्या सोचा था,क्या है पायाक्या कहना है,समझ ना आया। संयम से धागे को पिरोना,टूट ना जाए रिश्तों का कोनाबाद में नहीं पडे़ पछताना,यह बात है खुद…
भाषा और संस्कृति के अंर्तसंबंधों पर भारतीय मनीषियों ने हर एक समय-काल में चिंतन किया है। उस चिंतन को अपने वक्तव्यों, विमर्शों, लेखन और संवादों द्वारा समाज तक पहुँचाने की…
अजय जैन ‘विकल्प’इंदौर(मध्यप्रदेश)****************************************** बड़ा गुनाहमिले ऐसी सजाना दें पनाह। कैसा समयतार-तार अस्मितातोड़ा सम्मान। ये लोक-तंत्र!बुरा विचार-आगस्त्री कब तक? ये कैसी हिंसा ?लूट रहे अमनभूले अहिंसा। जरूरी न्यायना हो हैवानियतना हो…